Supreme Court : बिना पहचान 2000 के नोट को बदलने के खिलाफ दाखिल याचीका पर जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

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आशीष सिन्हा
आशीष सिन्हा

Aaj Samaj (आज समाज),Supreme Court , नई दिल्ली :

1* नगालैंड सरकार को गुवाहाटी हाई कोर्ट से झटका, कुत्ते के मांस की बिक्री पर रोक लगाने के फैसले को किया रद्द 
नगालैंड सरकार को गुवाहाटी हाई कोर्ट की कोहिमा बेंच से बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने सरकार के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें रेस्तरां में कुत्तों के मांस की बाजारों में बिक्री और वाणिज्यिक (व्यापारिक) आयात पर रोक लगाई गई थी। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि नगालैंड के लोगों के बीच यह एक स्वीकृत मानदंड और भोजन है।
न्यायमूर्ति मार्ली वैंकुंग ने कहा कि व्यापारी भी अपनी आजीविका कमाने में सक्षम हैं और कुत्ते के मांस को नागाओं के बीच स्वीकार्य भोजन के रूप में मान्यता है।
न्यायमूर्ति वैंकुंग ने कहा अपने फैसले में यह भी कहा कि 2011 के खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य उत्पाद मानक और खाद्य योजक) विनियम में जानवरों की परिभाषा के तहत कुत्तों का उल्लेख नहीं किया गया है। न्यायाधीश ने कहा कि इसे लेकर आश्चर्य की कोई बात नहीं है क्योंकि कुत्तों का मांस भारत में पूर्वोत्तर राज्य के कुछ ही हिस्सों में खाया जाता है।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कुत्ते के मांस को मानव उपभोग के लिए भोजन का मानक नहीं माना जाता है और मानव उपभोग के लिए सुरक्षित जानवरों की परिभाषा से बाहर रखा गया है।
हाई कोर्ट ने कहा कि नगालैंड में अलग अलग जनजातियां कुत्ते के मांस खाती हैं। उनका विश्वास है कि यह एक औषधि (दवाई) है हालांकि इसका कोई आधार नहीं मिला है। हाई कोर्ट ने कहा कुत्ते के मांस के व्यापार और खपत पर किसी कानून के अभाव में कार्यपालिका के इस तरह के प्रतिबंध को अलग रखा जा सकता है। भले ही इसमें यह क्यों न कहा गया हो कि यह आदेश खुद कैबिनेट की मंजूरी के अनुसार जारी किया गया था।
दरसअल कोहिमा नगर परिषद के तहत लाइसेंस प्राप्त तीन व्यापारियों को जुलाई 2020 में बैन कर दिया गया था। उन्होंने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हालांकि पहले ही हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए नगालैंड सरकार के बैन वाले आदेश पर नवंबर 2020 में प्रतिबंध लगा दिया था।
2 *कॉमेडियन कपल भारती और हर्ष लिंबाचिया के खिलाफ एनसीबी की याचिका खारिज* 
एनडीपीएस एक्ट की एक विशेष अदालत ने मादक पदार्थ मामले में कॉमेडियन भारती सिंह और उनके पति हर्ष लिंबाचिया की जमानत रद्द करने की मांग वाली नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की याचिका खारिज कर दी है।
नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत मामलों के विशेष न्यायाधीश वी वी पाटिल ने योग्यता की कमी के लिए पिछले सप्ताह याचिका खारिज कर दी, लेकिन विस्तृत आदेश मंगलवार को उपलब्ध हो गया।
कथित तौर पर उनके घर में 86.5 ग्राम गांजा (भांग) पाए जाने के बाद दंपति को नवंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था। मजिस्ट्रेट की अदालत ने उन्हें 15-15 हजार रुपये के मुचलके पर जमानत दे दी।
बाद में उसी वर्ष दिसंबर में, एनसीबी ने विशेष एनडीपीएस अदालत से इस आधार पर जमानत रद्द करने की मांग की कि अभियोजन पक्ष को कोई सुनवाई नहीं दी गई थी।
अदालत ने, हालांकि, पिछले हफ्ते अपने आदेश में कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि कॉमेडियन कपल ने न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप किया या उनकी जमानत शर्तों का उल्लंघन किया।
इसलिए, न्यायाधीश ने कहा कि जमानत रद्द करने के लिए कोई आधार नहीं बनाया गया है, ।
जांच एजेंसी के अनुसार, भारती सिंह का नाम एक ड्रग पेडलर से पूछताछ के दौरान सामने आया, जब एनसीबी जून 2020 में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बॉलीवुड में कथित तौर पर ड्रग्स के इस्तेमाल की जांच कर रही थी।
3* दिल्ली में बाइक टैक्सी को लेकर दिए हाई कोर्ट के फैसले के फैसले के खिलाफ केजरीवाल सरकार की याचीका पर सुनवाई टली, शुक्रवार को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट 
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में राइड-शेयरिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से बाइक टैक्सी सेवाओं को रोकने के लिए दिल्ली परिवहन विभाग की अधिसूचना पर रोक लगाने के दिल्ली उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है। अब इस मामले पर शुक्रवार को सुनवाई होगी।
दरसअल दिल्ली सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 26 मई के फैसले को चुनौती दी है, जिसमें दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) में वाणिज्यिक संचालन जारी रखने और शहर में चलने वाले गैर-परिवहन दोपहिया वाहनों के एग्रीगेटर के रूप में कार्य करने की लाइसेंस देने की अनुमति दी गई है।
दिल्ली सरकार ने यह कहा कि उच्च न्यायालय के विवादित अंतरिम आदेश के मद्देनजर उबर और रैपिडो एकत्रीकरण और राइड पूलिंग के उद्देश्य से दोपहिया सहित गैर-परिवहन वाहनों का उपयोग जारी रखे हुए हैं जो कि नियम के तहत अस्वीकार्य है।
सरकार ने कहा है कि दिल्ली मोटर वाहन एग्रीगेटर योजना, 2023 याचिकाकर्ता राज्य द्वारा पहले ही तैयार की जा चुकी है और अब यह सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदन के लिए लंबित है।राज्य सरकार ने कहा, “प्रतिवादियों को खुद को पंजीकृत कराने और इसकी अधिसूचना में निर्धारित शर्तों का पालन करने के बाद परमिट के लिए आवेदन करने की आवश्यकता है और उसके बाद ही, उत्तरदाताओं को कानून के अनुसार अपने व्यवसाय संचालन को जारी रखने की अनुमति दी जा सकती है।”
राज्य सरकार ने कहा कि बाइक टैक्सी चलाने की अनुमति, अन्य कारणों के अलावा, सड़क सुरक्षा और यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पुलिस सत्यापन, जीपीएस डिवाइस, पैनिक बटन आदि लगाने की बाध्यताओं जैसी शर्तों के अनुपालन के बिना अनुमति नहीं दी जा सकती है।
4* बिना पहचान 2000 के नोट को बदलने के खिलाफ दाखिल याचीका पर जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार 
बिना पहचान 2000 रुपये के नोट को बदलने के खिलाफ दाखिल याचीका पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याया ने सुप्रीम कोर्ट जी वेकेशन बेंच से जल्द सुनवाई की गुहार लगाई। जिसपर कोर्ट याचिकाकर्ता को कहा आप शुक्रवार को मामले पर जल्द सुनवाई की मांग करे। उपाध्याय ने आरबीआई के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें बैकों में बिना आईडी इन नोटों को बदला जा रहा है। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि सरकार का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। पिछले दिनों हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी दलीलें सुनने के बाद इस याचीका को खारिज कर दिया था।
उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा गया कि 2000 के नोट बिना किसी पहचान प्रमाण के बैंक में जमा करना या एक्सचेंज करना मनमाना, तर्कहीन और देश के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। अश्विनी उपाध्याय ने आरबीआई और एसबीआई को निर्देश देने की मांग की है कि 2000 के नोट संबंधित बैंक खातों में ही जमा जाए, ताकि कोई भी दूसरा बैंक खातों में पैसा जमा न कर सके और कालाधन और आय से अधिक संपत्ति रखने वाले लोगों की पहचान आसानी से हो सके।
इतना ही नही याचीका में भ्रष्टाचार, बेनामी लेनदेन को खत्म करने और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए केंद्र को काले धन और आय से अधिक संपत्ति धारकों के खिलाफ उचित कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की है।
दरसअल रिजर्व बैंक ने 2000 रुपये के नोट को प्रसार से बाहर करने का ऐलान करते हुए नोटिफिकेशन में कहा था कि इन्हें 23 मई से बैंकों में बदलवाया जा सकता है। रिजर्व बैंक के अनुसार, 31 मार्च 2018 को 2000 रुपये के नोटों का प्रसार 6.73 लाख करोड़ रुपये के बराबर था, जो 31 मार्च 2023 को कम होकर 3.62 लाख करोड़ रुपये पर आ चुके हैं। ये नोट प्रसार के सभी नोटों का केवल 10.8 फीसदी हिस्सा हैं।
5 *दिल्ली दंगे 2020ः कड़कड़डूमा कोर्ट ने 5 आरोपियों को डकैती-आगजनी के आरोप से किया बरी मगर, दगों के आरोप बरकरार* 
दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने मंगलवार को 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान आगजनी, डकैती और अन्य अपराधों के आरोपी पांच लोगों को आरोपमुक्त कर दिया। मगर अन्य अपराधों में उनके खिलाफ कार्रवाई प्रचलित है।
यह मामला थाना खजूरी खास में दर्ज किया गया था। हालांकि, उन पर दंगा करने और गैरकानूनी असेंबली के अपराधों का आरोप लगाया गया है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) पुलस्त्य प्रमाचला ने महबूब आलम, मंजूर आलम उर्फ राजा, मो. नियाज, नफीस और मंसूर आलम उर्फ लाला पर आईपीसी की धारा 395 (डकैती), 427 (आग से शरारत) और 435 (आग या विस्फोटक से संपत्ति को नुकसान) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
एएसजे प्रमाचला ने कहा, “मुझे लगता है कि आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 427/435/395 के तहत दंडनीय अपराध के आरोपों के समर्थन में रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है। इसलिए, वे धारा 395 / के तहत दंडनीय अपराधों के लिए मुक्ति पाने के हकदार हैं।
न्यायाधीश ने  आदेश दिया, “हालांकि, रिकॉर्ड पर रखे गए सबूतों के आधार पर मुझे लगता है कि ये आरोपी व्यक्ति धारा 147/148 आईपीसी की धारा 149 आईपीसी के साथ-साथ धारा 188 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए मुकदमा फ़ेस के लिए उत्तरदायी हैं।
अभियोजन पक्ष के अनुसार दिनांक 28.02.2020 को मिठन सिंह द्वारा थाना खजूरी खास में लिखित परिवाद दिया गया। उसी के आधार पर और तदनुसार, इस मामले में दिनांक 04.03.2020 को धारा 147/148/149/435/427/392/34 आईपीसी के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि 25 फरवरी (मंगलवार) को दंगों के दौरान उनके पड़ोस में आगजनी के कारण खजूरी खास में उनके घर को गंभीर नुकसान पहुंचा था और उनके घर में दरारें आ गई थीं। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि दंगाइयों ने उनके घर में अलमीरा से 10 तोला सोने के आभूषण और 90,000 रुपये नकद लूट लिए थे। विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) आरसीएस भदौरिया ने तर्क दिया था कि वीडियो में सभी आरोपी व्यक्ति दिखाई दे रहे हैं, जो एक ही गली से संबंधित हैं। उन्होंने आगे तर्क दिया कि ये लोग डंडा आदि भी ले जा रहे थे।
एसपीपी ने आगे तर्क दिया था कि शिकायतकर्ता, पवन, संदीप आदि जैसे गवाहों ने इन आरोपी व्यक्तियों की विधिवत पहचान की और इसलिए, उनके खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सामग्री है।
अभियुक्त व्यक्तियों को बरी करते हुए अदालत ने कहा, “सबसे पहले आईपीसी की धारा 427/435 के तहत अपराध के आरोपों के संबंध में, मैंने पाया कि न तो रिकॉर्ड में किसी विशेष संपत्ति के संबंध में किसी गवाह का कोई ठोस बयान है, जो क्षतिग्रस्त हो गया होता या आग लगा दी गई होती।”
अदालत ने कहा, “इस संबंध में सभी बयान अस्पष्ट हैं, जिसमें बर्बरता की सामान्य शर्तों का इस्तेमाल किया गया है (पथथरबाजी वा तोड फोड करने लागे)।”
“रिकॉर्ड में किसी भी क्षतिग्रस्त संपत्ति की कोई तस्वीर नहीं है। रिकॉर्ड पर रखी गई तस्वीरें शिकायतकर्ता के घर से संबंधित हैं। कुछ क्राइम टीम के अधिकारियों द्वारा ली गई थीं और कुछ पवन कुमार (शिकायतकर्ता के बेटे) द्वारा प्रदान की गई थीं।” .
“इन तस्वीरों में दीवारों पर दरार और उसके बाद सीमेंट का प्लास्टर दिखाई दे रहा है। एक तस्वीर में एक सोफा सेट दिखाया गया है, हालांकि, यह भी क्षतिग्रस्त स्थिति में नहीं है। कोई भी सामग्री जली हुई स्थिति में नहीं दिखाई गई है।” अदालत ने देखा।
अदालत ने कहा, “जहां तक शिकायतकर्ता के घर की दीवार में दरार का सवाल है, शिकायतकर्ता और उसके बेटे पवन के अनुसार, ये दरारें उसके घर के पश्चिम में स्थित संपत्ति में आगजनी के कारण आई थीं।”
‘अदालत ने कहा, अर्थात् शिकायतकर्ता के अनुसार भी ये दरारें दंगाइयों द्वारा सीधे उसके घर के अंदर या बाहर कुछ करने से नहीं लगी थीं। इन दरारों का कारण बगल की संपत्ति में आग लगना था, जो शिकायतकर्ता के अनुमान में एक दूसरा कारण था,” । अदालत के आदेश के मुताबिक़ उपरोक्त आरोपी कुछ धाराओं से मुक्ति ज़रूर पा गए हैं लेकिन वो अभी जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे क्यों कि उनके ख़िलाफ़ धारा 147/148/149 और 188 की कार्रवाही प्रचलित है।
6* मध्य प्रदेश के चर्चित व्यापमं घोटाले में एक सिपाही को 7 साल के सश्रम कारावास की सजा और 10 हजार का जुर्माना 
ममध्य प्रदेश के चर्चित  व्यापमं (अब मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल) घोटाले  में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने एक कांस्टेबल को सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई और 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।
विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश नीतिराज सिंह सिसोदिया ने कांस्टेबल देवेंद्र रघुवंशी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 419, 420, 467, 468, 471 और मध्य प्रदेश मान्यता प्राप्त शिक्षा (एमपीआरई) अधिनियम की धारा 3(डी)/4 के तहत दोषी ठहराया।
व्यापमं (अब एमपीपीईबी) द्वारा आयोजित सिपाही भर्ती परीक्षा 2013-द्वितीय में सिपाही पद पर चयनित देवेन्द्र रघुवंशी के संबंध में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) भोपाल को शिकायत मिली थी कि उसनेएक सॉल्वर की मदद से परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
उक्त शिकायत की जांच के बाद आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471 भादवि और एमपीआरई अधिनियम की 3(डी)/4 के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद मामले में चालान कोर्ट में पेश किया गया। मंगलवार को सुनवाई के दौरान जज नीतिराज सिंह सिसोदिया ने विशेषज्ञ गवाहों के बयानों और मिले सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी करार दिया। न्यायाधीश ने दोषी देवेंद्र रघुवंशी को सात साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई और 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया।