गुरु नानक देवजी सिख धर्म के संस्थापक ही नहीं, अपितु मानव धर्म के उत्थापक थे। वे केवल किसी धर्म विशेष के गुरु नहीं अपितु संपूर्ण सृष्टि के जगद्गुरु थे। भाई गुरुदासजी लिखते हैं कि इस संसार के प्राणियों की त्राहि-त्राहि को सुनकर अकाल पुरख परमेश्वर ने इस धरती पर गुरु नानक को पहुंचाया, ‘सुनी पुकार दातार प्रभु गुरु नानक जग महि पठाइया।’ उनके इस धरती पर आने पर ‘सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंध जगि चानण होआ’ सत्य है, नानक का जन्मस्थल अलौकिक ज्योति से भर उठा था। उनके मस्तक के पास तेज आभा फैली हुई थी। नानक सिखों के प्रथम (आदि गुरु) हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु – सभी के गुण समेटे हुए थे। कई सारे लोगो का मानना है कि बाबा नानक एक सूफी संत भी थे। और उनके सूफी कवि होने के प्रमाण भी समय-समय पर लगभग सभी इतिहासकारो द्वारा दिए जाते है। गुरु नानक देव ने सिख धर्म की स्थापना की थी। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने अपने पारिवारिक जीवन और सुख का ध्यान न करते हुए दूर-दूर तक यात्राएं की और लोगों के मन में बस चुकी कुरीतियों को दूर करने की दिशा में काम किया। इस साल 12 नवंबर, को गुरु जी का 550वां प्रकाश पर्व है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु नानक जी का प्रकाश पर्व मनाया जाता है। नानकजी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में कार्तिक पूर्णिमा के दिन खत्रीकुल में हुआ था। कुछ विद्वान गुुरु नानक देव जी की जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। इनके पिता का नाम मेहता कालूजी था, माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था। नानक बचपन से ही प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। बचपन से ही इनमें सांसारिक विषयों के प्रति कोई खास लगाव नहीं था। पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा और मात्र 8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवतप्राप्ति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली। इनके प्रश्नों के आगे खुद को निरुत्तर जानकर इनके शिक्षक इन्हें लेकर इनके घर पहुंचे तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़कर चले गए। इसके बाद नानक का सारा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत होने लगा। छोटे बच्चे की ईश्वर में इतनी आस्था देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य मानने लगे क्योंकि नानक ने बचपन में ही कुछ ऐसे संकेत दिए थे कि लोगों की आस्था इनमें बढ़ने लगी। यहां तक कि इनके ग्राम प्रमुख शासक राय बुलार भी इनमें आस्था रखते थे। इनकी बहन नानकी इन्हें बहुत प्रेम करतीं और इनमें गहरा विश्वास रखती थीं। इनके जीवन से जुड़ी एक घटना इस प्रकार है कि एक बार बालक नानकजी सो रहे थे, सोते समय सूरज की छाया उनके मुख पर पड़ रही थी। सूरज की तपिश से उनकी नींद न टूटे इसलिए पास ही बने बिल में रहनेवाले एक सांप ने अपने फन से इनके सिर पर अपनी छाया कर ली। नानक का विवाह सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले श्री मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। फिर 32 वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष पश्चात दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों बेटों के जन्म के उपरांत 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा पर निकल गए। इन्होंने न केवल भारत वर्ष में बल्कि अरब, फारस और अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों की यात्राएं भी कीं।
गुरु नानक देव के चरणों के साथ घूमने लगा था काबा
साऊदी अरब के शहर मक्का में स्थित है काबा। काबा इस्लाम धर्म को मानने वालों के लिए सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है। इस्लाम के अनुयायी नमाज अदा करते समय अपना मुख काबा की तरफ ही रखते हैं। इतिहास की एक घटना सिख और इस्लाम धर्म से जुड़ी है। यह घटना इस बाद का संदेश देती है कि हम इंसान चाहे किसी भी नाम और रूप में उस परम सत्ता की पूजा कर लें, वह सत्ता तो एक ही है। उस परम शक्ति ने ही हम सभी को एक जैसा बनाया है और हमने न सिर्फ खुद को बल्कि उस शक्तिको भी धर्म के नाम पर बांट लिया है। समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों को दूर करने तथा धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए सिख धर्म के प्रचारक गुरु नानक देव जी देश और विदेश की लगातार यात्राएं किया करते थे। इसी क्रम में एक बार वह मक्का पहुंचे। दिन भर घूमने और लोगों से मिलने के क्रम में वह बहुत अधिक थक गए थे और इस थकान के कारण सो गए। उसी समय वहां इस्लाम को माननेवाले लोग पहुंचे और नानक देव पर यह कहते हुए क्रोधित होने लगे कि तू कौन काफिर है, जो अल्लाह के घर की तरफ पैर करके सो रहा है? इस पर नानक देव ने बहुत ही शांति से उत्तर दिया कि मैं तो दिनभर की दौड़-धूप से थककर सो गया। मुझे तो हर तरफ ही ईश्वर नजर आता है। अगर तुम्हे लगता है कि मेरे पैर ईश्वर के घर की तरफ हैं तो घुमाकर उस तरफ कर दो, जिधर ईश्वर का घर न हो। इस पर उन लोगों ने नानक के पैर घुमाकर काबा से उल्टी दिशा में कर दिए। जैसे ही उन्होंने नानक के पैर जमीन पर छोड़े और सिर उठाकर देखा तो हैरान रह गए, काबा उसी तरफ था जिधर उन्होंने नानक के पैर किए। लेकिन खुद को भ्रम में मानते हुए उन्होंने दोबारा नानक जी के पैर दूसरी दिशा में घुमा दिए लेकिन फिर से काबा पैरों की तरफ ही नजर आया। इस पर वे लोग हैरान रह गए। उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि जिस तरफ भी इस व्यक्ति के पैर घुमाए जाते हैं, काबा उसी दिशा में घूम जाता है। उन्हें अहसास हुआ कि नानक कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। इस पर उन्होंने नानक देव से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि हम ईश्वर को भगवान, अल्लाह, जीसस क्राइस्ट या किसी भी दूसरे नाम से पुकार लें, वह परम शक्ति एक ही है और अपने भक्त की केवल भक्ति देखती है और कुछ नहीं। यही संदेश गुरु जी ने इस घटना के माध्यम से दिया था।
‘नानक उत्तम-नीच न कोई’
कहा जाता है कि गुरु नानकदेवजी का आगमन ऐसे युग में हुआ जो इस देश के इतिहास के सबसे अंधेरे युगों में था। धर्म काफी समय से थोथी रस्मों और रीति-रिवाजों का नाम बनकर रह गया था। उत्तरी भारत के लिए यह कुशासन और अफरा-तफरी का समय था। सामाजिक जीवन में भारी भ्रष्टाचार था और धार्मिक क्षेत्र में द्वेष और कशमकश का दौर था। न केवल हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच में ही, बल्कि दोनों बड़े धर्मों के भिन्न-भिन्न संप्रदायों के बीच भी। इन कारणों से भिन्न-भिन्न संप्रदायों में और भी कट्टरता और बैर-विरोध की भावना पैदा हो चुकी थी। उस वक्त समाज की हालत बहुत बदतर थी। ब्राह्मणवाद ने अपना एकाधिकार बना रखा था। उसका परिणाम यह था कि गैर-ब्राह्मण को वेद शास्त्राध्यापन से हतोत्साहित किया जाता था। निम्न जाति के लोगों को इन्हें पढ़ना बिलकुल वर्जित था। इस ऊंच-नीच का गुरु नानकदेव पर बहुत असर पड़ा। वे कहते हैं कि ईश्वर की निगाह में सब समान हैं। ऊंच-नीच का विरोध करते हुए गुरु नानकदेव अपनी मुखवाणी ‘जपुजी साहिब’ में कहते हैं कि ‘नानक उत्तम-नीच न कोई’ जिसका भावार्थ है कि ईश्वर की निगाह में छोटा-बड़ा कोई नहीं फिर भी अगर कोई व्यक्ति अपने आपको उस प्रभु की निगाह में छोटा समझे तो ईश्वर उस व्यक्ति के हर समय साथ है। यह तभी हो सकता है जब व्यक्ति ईश्वर के नाम द्वारा अपना अहंकार दूर कर लेता है। तब व्यक्ति ईश्वर की निगाह में सबसे बड़ा है और उसके समान कोई नहीं।
नानक देव की वाणी में :-
नीचा अंदर नीच जात, नीची हूं अति नीच।
नानक तिन के संगी साथ, वडियां सिऊ कियां रीस॥
समाज में समानता का नारा देने के लिए उन्होंने कहा कि ईश्वर हमारा पिता है और हम सब उसके बच्चे हैं और पिता की निगाह में छोटा-बड़ा कोई नहीं होता। वही हमें पैदा करता है और हमारे पेट भरने के लिए खाना भेजता है।
नानक जंत उपाइके, संभालै सभनाह।
जिन करते करना कीआ, चिंताभिकरणी ताहर॥
जब हम ‘एक पिता एकस के हम वारिक’ बन जाते हैं तो पिता की निगाह में जात-पात का सवाल ही नहीं पैदा होता।
गुरु नानक जात-पात का विरोध करते हैं। उन्होंने समाज को बताया कि मानव जाति तो एक ही है फिर यह जाति के कारण ऊंच-नीच क्यों? गुरु नानक देव ने कहा कि मनुष्य की जाति न पूछो, जब व्यक्ति ईश्वर की दरगाह में जाएगा तो वहां जाति नहीं पूछी जाएगी। सिर्फ आपके कर्म ही देखे जाएंगे। इसी प्रकार गुरु नानक देव ने पित्तर-पूजा, तंत्र-मंत्र और छुआ-छूत की भी आलोचना की। इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु नानक साहिब हिंदू और मुसलमानों में एक सेतु के समान हैं। हिंदू उन्हें गुरु एवं मुसलमान पीर के रूप में मानते हैं। उन्होंने हमेशा ऊंच-नीच और जाति-पाति का विरोध करने वाले नानक ने सबको समान समझकर ‘गुरु का लंगर’ शुरू किया जो एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करने की प्रथा है।
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