20 मई के आज समाज में मैंने एक लेख- ‘कोरोना और शमशान घाटों की समस्याएं’ के माध्यम से कोविड महामारी के दौरान मृतकों के संस्कार के काम में कई गुना वृद्धि होने के कारण शमशान घाटों को आ रही अनेकों दिक्कतों और समस्याओं का वर्णन किया था। उसे पढ़कर कुछ पाठकों ने यह प्रतिक्रिया दी की लेख में समस्याओं का जिक्र तो कर दिया गया लेकिन उनका समाधान क्या है यह नहीं बताया गया। तो आज इस लेख में उन समस्याओं को दूर करने और सुधार लाने संबंधी कुछ सुझाव प्रस्तुत कर रहा हूं।
शमशान घाटों के सामने आने वाली परेशानियों और समस्याओं को हल करने का सर्वप्रथम दायित्व राज्य सरकारों के माध्यम से स्थानीय निकायों जैसे कि नगर पालिकाओं, पंचायतों इत्यादि का है। प्रत्येक राज्य सरकार को चाहिए कि वह शमशान घाटों को सुचारू रूप से चलाने के लिए कानून तथा नियम बनाए। ताकि राज्य में इनके प्रबंधन और रखरखाव संबंधी एकरूपता लाई जा सके। आमतौर पर राज्य सरकारें शमशान घाटों को सुव्यवस्थित प्रकार से चलाने के प्रति कोई ध्यान नहीं दे रही हैं।
नगर निगम तथा पालिकाएं यहां अपने कर्मचारी नियुक्त करें जिसकी निगरानी सदैव यहां की कार्यप्रणाली पर रहे। हर सेवा का रेट निश्चित करें जैसे लकड़ी का तथा गैस की भट्टी का; आचार्यों, हेल्पर, सफाई कर्मचारी आदि का; फ्रीजर बॉक्स तथा फ्यूनरल वेन का। फ्रीजर, वैन, पीने के पानी, शौचालय आदि की उचित व्यवस्था के लिए इन्हें नियमित रूप से वार्षिक अनुदान दिया जाए। इन सेवाओं के लिए घाटों में अलग से कर्मचारी नियुक्त किए जाएं। स्थान के अभाव को रोकने के लिए इनके आसपास आवासीय कॉलोनियों को बनाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। एक अधिसूचना द्वारा सभी शमशान घाटों के इर्द-गिर्द दो सौ से तीन सौ फुट खाली जमीन का एक कोरिडोर बनाना अनिवार्य कर देना चाहिए।
इसी में वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था तथा हरे पेड़ लगाए जा सकते हैं। जिन शमशान घाटों में स्थान और जमीन का अभाव नहीं है वहां पर संस्कार के लिए नए शैड सहित चबूतरे अर्थात प्लेटफॉर्म बनाए जाने चाहिए और वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था भी की जानी चाहिए। लकड़ी के अभाव को दूर करने के चार उपाय हैं:-
ल्ल 1) बिजली की भट्टियां: इनको बनाने की आरंभिक लागत बहुत अधिक है और ये बहुत अधिक मात्रा में बिजली की वाटेज और क्षमता का उपभोग करती हैं। यह केवल चंद एक बड़े शहरों में ही उपलब्ध हैं। जिन राज्यों में बिजली की सप्लाई अनियमित तथा कमजोर है वहां ये उपयुक्त नहीं है।
ल्ल 2) पी. एन. जी. या सी. एन. जी. के गैस चैंबर: इनसे संस्कार में आने वाले खर्च में भी बहुत अधिक कमी आएगी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। चंडीगढ़ के सेक्टर 25 में पाए जाने वाले शमशान घाट में लकड़ी से दाह संस्कार करने का खर्चा 3000 है जबकि वहीं पर गैस चैंबर में संस्कार करने का खर्चा मात्र 30 है।
ल्ल 3) धुआं रहित तथा पर्यावरण अनुकूल कॅम्बस्शन वाले सीमेंट के थड़े या स्टील के बॉक्स नुमा चूल्हे की व्यवस्था अधिक से अधिक की जानी चाहिए। यह सबसे आसान तरीका है और इसमें आम संस्कार से एक तिहाई लकड़ी कम लगती है और धुआं भी बहुत कम निकलता है। आज से लगभग 8 साल पहले अंबाला सदर के शमशान घाट राम बाग में रोटरी क्लब आॅफ अम्बाला द्वारा ऐसे दो भट्टे या थड़े बनाए गए थे लेकिन लकड़ी बेचने वाले पंडित को लगा के इनके इस्तेमाल से उसकी बिक्री कम हो जाएगी इसलिए उस पंडित-ठेकेदार ने इनका इस्तेमाल ही नहीं होने दिया और ये विफल साबित हुए। लोगों को भी चाहिए कि वे पंडितों की बातों में ना आकर इस बात पर जोर दें कि हमने इन्हीं धुआं रहित तथा पर्यावरण अनुकूल भट्टों में ही दाह संस्कार करना है।
ल्ल 4) लकड़ी और स्थान के अभाव को दूर करने के लिए कुछ शहरों में गैस वाले, स्टेचर जैसे पहियों वाले मोबाइल कार्ट बनाए गए हैं जो किसी भी स्थान पर जाकर दाह संस्कार कर सकते हैं जैसे कि बड़ी जमीन वाली कोठियां, खुले मैदान, खेत, पार्क या बगीचे, स्कूल या कॉलेज के मैदान आदि। जहां हर शहर में नई नई आवासीय कालोनियां बन रही है, जनसंख्या बढ़ रही है, वहां वहां इनमें नये शमशान घाटों को बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए, इनके लिए अलग से भूमि सुरक्षित रखनी चाहिए। टाउन प्लैनिंग करते समय, नए अर्बन एस्टेट तथा हाउसिंग बोर्ड कॉलोनियां बनाते समय भी इनके लिए स्थान अलग से तय हो जाना चाहिए। अभी तक लावारिस लाशों या बहुत ही निर्धन मृतकों के दाह संस्कार के खर्चे को वाहन करने के लिए सरकार द्वारा कोई भी व्यवस्था नहीं की गई है। लावारिस लाशों तथा निर्धन मृतकों का संस्कार या तो कुछ दानी लोगों की आर्थिक सहायता या कुछ चैरिटेबल ट्रस्टों या संस्थाओं की सहायता से ही हो पाता है। इस मामले में भी सरकार को आगे आना चाहिए और कोई नीति व नियम बनाने चाहिए। शमशान घाट में अस्थियों या फूलों को सुरक्षित रखने के लिए नए स्टोर तथा उनमें पर्याप्त लॉकर या अलमारियों की भी सख्त जरूरत है। संस्कार करने वाले पंडितों की मनमानी लूट को रोकना सबसे चुनौतीपूर्ण तथा कठिन कार्य है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनको किसी कानून या प्रशासन का डर नहीं है। उन पर केवल प्रशासन ही नकेल कस सकता है और उनके रेट निश्चित कर सकता है। यदि वे तय रेटों से अधिक पैसे ऐंठते हैं तो उन पर भी वही सख्त कार्यवाही होनी चाहिए जो मुनाफाखोरों और कालाबाजा़रियों के विरुद्ध होती है। आशा है राज्य सरकारें तथा प्रशासन उपर्युक्त सुझावों और उपायों पर ध्यान देते हुए उचित कार्यवाही करेंगे।
(लेखक भूतपूर्व कॉलेज प्राचार्य हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
शमशान घाटों के सामने आने वाली परेशानियों और समस्याओं को हल करने का सर्वप्रथम दायित्व राज्य सरकारों के माध्यम से स्थानीय निकायों जैसे कि नगर पालिकाओं, पंचायतों इत्यादि का है। प्रत्येक राज्य सरकार को चाहिए कि वह शमशान घाटों को सुचारू रूप से चलाने के लिए कानून तथा नियम बनाए। ताकि राज्य में इनके प्रबंधन और रखरखाव संबंधी एकरूपता लाई जा सके। आमतौर पर राज्य सरकारें शमशान घाटों को सुव्यवस्थित प्रकार से चलाने के प्रति कोई ध्यान नहीं दे रही हैं।
नगर निगम तथा पालिकाएं यहां अपने कर्मचारी नियुक्त करें जिसकी निगरानी सदैव यहां की कार्यप्रणाली पर रहे। हर सेवा का रेट निश्चित करें जैसे लकड़ी का तथा गैस की भट्टी का; आचार्यों, हेल्पर, सफाई कर्मचारी आदि का; फ्रीजर बॉक्स तथा फ्यूनरल वेन का। फ्रीजर, वैन, पीने के पानी, शौचालय आदि की उचित व्यवस्था के लिए इन्हें नियमित रूप से वार्षिक अनुदान दिया जाए। इन सेवाओं के लिए घाटों में अलग से कर्मचारी नियुक्त किए जाएं। स्थान के अभाव को रोकने के लिए इनके आसपास आवासीय कॉलोनियों को बनाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। एक अधिसूचना द्वारा सभी शमशान घाटों के इर्द-गिर्द दो सौ से तीन सौ फुट खाली जमीन का एक कोरिडोर बनाना अनिवार्य कर देना चाहिए।
इसी में वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था तथा हरे पेड़ लगाए जा सकते हैं। जिन शमशान घाटों में स्थान और जमीन का अभाव नहीं है वहां पर संस्कार के लिए नए शैड सहित चबूतरे अर्थात प्लेटफॉर्म बनाए जाने चाहिए और वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था भी की जानी चाहिए। लकड़ी के अभाव को दूर करने के चार उपाय हैं:-
ल्ल 1) बिजली की भट्टियां: इनको बनाने की आरंभिक लागत बहुत अधिक है और ये बहुत अधिक मात्रा में बिजली की वाटेज और क्षमता का उपभोग करती हैं। यह केवल चंद एक बड़े शहरों में ही उपलब्ध हैं। जिन राज्यों में बिजली की सप्लाई अनियमित तथा कमजोर है वहां ये उपयुक्त नहीं है।
ल्ल 2) पी. एन. जी. या सी. एन. जी. के गैस चैंबर: इनसे संस्कार में आने वाले खर्च में भी बहुत अधिक कमी आएगी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। चंडीगढ़ के सेक्टर 25 में पाए जाने वाले शमशान घाट में लकड़ी से दाह संस्कार करने का खर्चा 3000 है जबकि वहीं पर गैस चैंबर में संस्कार करने का खर्चा मात्र 30 है।
ल्ल 3) धुआं रहित तथा पर्यावरण अनुकूल कॅम्बस्शन वाले सीमेंट के थड़े या स्टील के बॉक्स नुमा चूल्हे की व्यवस्था अधिक से अधिक की जानी चाहिए। यह सबसे आसान तरीका है और इसमें आम संस्कार से एक तिहाई लकड़ी कम लगती है और धुआं भी बहुत कम निकलता है। आज से लगभग 8 साल पहले अंबाला सदर के शमशान घाट राम बाग में रोटरी क्लब आॅफ अम्बाला द्वारा ऐसे दो भट्टे या थड़े बनाए गए थे लेकिन लकड़ी बेचने वाले पंडित को लगा के इनके इस्तेमाल से उसकी बिक्री कम हो जाएगी इसलिए उस पंडित-ठेकेदार ने इनका इस्तेमाल ही नहीं होने दिया और ये विफल साबित हुए। लोगों को भी चाहिए कि वे पंडितों की बातों में ना आकर इस बात पर जोर दें कि हमने इन्हीं धुआं रहित तथा पर्यावरण अनुकूल भट्टों में ही दाह संस्कार करना है।
ल्ल 4) लकड़ी और स्थान के अभाव को दूर करने के लिए कुछ शहरों में गैस वाले, स्टेचर जैसे पहियों वाले मोबाइल कार्ट बनाए गए हैं जो किसी भी स्थान पर जाकर दाह संस्कार कर सकते हैं जैसे कि बड़ी जमीन वाली कोठियां, खुले मैदान, खेत, पार्क या बगीचे, स्कूल या कॉलेज के मैदान आदि। जहां हर शहर में नई नई आवासीय कालोनियां बन रही है, जनसंख्या बढ़ रही है, वहां वहां इनमें नये शमशान घाटों को बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए, इनके लिए अलग से भूमि सुरक्षित रखनी चाहिए। टाउन प्लैनिंग करते समय, नए अर्बन एस्टेट तथा हाउसिंग बोर्ड कॉलोनियां बनाते समय भी इनके लिए स्थान अलग से तय हो जाना चाहिए। अभी तक लावारिस लाशों या बहुत ही निर्धन मृतकों के दाह संस्कार के खर्चे को वाहन करने के लिए सरकार द्वारा कोई भी व्यवस्था नहीं की गई है। लावारिस लाशों तथा निर्धन मृतकों का संस्कार या तो कुछ दानी लोगों की आर्थिक सहायता या कुछ चैरिटेबल ट्रस्टों या संस्थाओं की सहायता से ही हो पाता है। इस मामले में भी सरकार को आगे आना चाहिए और कोई नीति व नियम बनाने चाहिए। शमशान घाट में अस्थियों या फूलों को सुरक्षित रखने के लिए नए स्टोर तथा उनमें पर्याप्त लॉकर या अलमारियों की भी सख्त जरूरत है। संस्कार करने वाले पंडितों की मनमानी लूट को रोकना सबसे चुनौतीपूर्ण तथा कठिन कार्य है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनको किसी कानून या प्रशासन का डर नहीं है। उन पर केवल प्रशासन ही नकेल कस सकता है और उनके रेट निश्चित कर सकता है। यदि वे तय रेटों से अधिक पैसे ऐंठते हैं तो उन पर भी वही सख्त कार्यवाही होनी चाहिए जो मुनाफाखोरों और कालाबाजा़रियों के विरुद्ध होती है। आशा है राज्य सरकारें तथा प्रशासन उपर्युक्त सुझावों और उपायों पर ध्यान देते हुए उचित कार्यवाही करेंगे।
(लेखक भूतपूर्व कॉलेज प्राचार्य हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)