दिनेश मौदगिल, लुधियाना:
पराली को जलाना इस समय एक गंभीर वातावरण चुनौती बन चुकी है । इस कारण प्राणियों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। पराली को बतौर पशु खुराक के तौर पर प्रयोग करने के नए ढंग तलाशने के संदर्भ में गुरु अंगद देव वेटरनरी और एनिमल साइंसिज यूनिवर्सिटी के प्रसार विभाग द्वारा एक कार्यशाला करवाई गई। जिसमें राज्य में काम करते कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिकों ने भाग लिया। डॉक्टर इंदरजीत सिंह उप कुलपति ने इस बात पर जोर दिया कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, वेटरनरी यूनिवर्सिटी और संबंधित विभागों को इस बात के लिए विशेष यत्न करना चाहिए कि वह किसानों को बताए के पराली एक सस्ती पशु खुराक के तौर पर प्रयोग की जा सकती है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि हजारों टन पराली खेतों में जला दी जाती है, जबकि इसमें से दसवां हिस्सा गैर उत्पादक पशुओं की खुराक के लिए प्रयोग किया। डॉ. राजबीर सिंह निदेशक कृषि टेक्नॉलोजी खोज संस्था अटारी ने विज्ञानियों को सलाह दी कि वह देखें कि पंजाब में दूसरे राज्यों के मुकाबले पराली का प्रयोग कम क्यों हो रहा है। डॉक्टर जसकरण सिंह माहल ने कृषि विज्ञान केंद्रों के विज्ञानियों को कहा कि वह पराली का प्रयोग पशु खराक के तौर पर शुरू करवाएं और इस संबंधी भरोसे योग्य आंकड़े भी इकट्ठे करें । इस कार्यशाला के दौरान पराली को यूरिया के साथ दुरुस्त कर और सीरे का प्रयोग कर इसकी पौष्टिकता को बेहतर करने का प्रदर्शन किया गया। इस बात पर चर्चा की गई कि दुरुस्त पराली की गांठे बनाकर साथ लगते राज्यों को भी पशु खुराक के तौर पर प्रयोग करने के लिए भेजी जाए। पराली के प्रयोग संबंधी गलत धारणाओं पर भी विज्ञानियों ने चर्चा की। उन्होंने कहा कि पराली को सही ढंग के साथ काटने पर पानी में भिगोने के साथ इसके तेजाबीपन नमक और सिलिका तत्व कम हो जाते हैं और यह पशु खुराक के लिए अधिक फायदेमंद हो जाती है। डॉ. प्रकाश सिंह बराड़ ने कहा कि वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए सुझाव बहुत लाभदायक है और इसके साथ हम पशु खुराक के खर्च को कम कर सकते हैं। डॉक्टर उदयवीर सिंह चौहान ने कहा कि भविष्य में पराली के आचार की पशु खुराक के तौर पर प्रयोग और इसका भंडारण करने संबंधी प्रयोग भी जल्द किए जाएंगे।
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