रमन भनोट। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की वापसी का जश्न इंग्लैंड ने वेस्टइंडीज़ पर सीरीज़ जीतकर मनाया। स्टुअर्ट ब्रॉड इस जीत के महानायक साबित हुए, जिन्होंने मैच में न सिर्फ दस विकेट चटकाए बल्कि क्रेग ब्रेथवैट को एलबीडब्ल्यू आउट करके अपना 500 वें विकेट का भी जश्न मनाया। उनके प्रदर्शन की बदौलत इंग्लैंड ने चैम्पियन की तरह जीत दर्ज करके 269 रन से जीत दर्ज की।
ब्रॉड 500 विकेट लेने वाले दुनिया के सातवें गेंदबाज़ हैं। इस सूची में मुथैया मुरलीधरन, शेन वॉर्न और अनिल कुम्बले पहले तीन स्थान पर हैं। ये सभी स्पिनर हैं। इनके बाद जेम्स एंडरसन, ग्लेन मैकग्रॉ, कर्टनी वॉल्श और स्टुअर्ट ब्रॉड का नम्बर आता है।
यहां यह बात भी याद करने लायक है कि ब्रॉड को साउथैम्प्टन में खेले गए पहले टेस्ट में नहीं खिलाया गया था। यह टेस्ट इंग्लैंड हारा, तभी ब्रॉड की याद आई लेकिन अगले दो टेस्टों में उन्होंने अपनी गेंदबाज़ी से ऐसा प्रभाव जमाया कि टीम को सीरीज़ ही 2-1 से जिता दी। निर्णायक टेस्ट में तो उन्होंने दस विकेट लेकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया।
वैसे स्टुअर्ट को क्रिकेट का खेल विरासत में मिला है। उनके पिता इंग्लैंड के पूर्व बाएं हाथ के ओपनिंग बल्लेबाज़ थे। संयोग से ओल्ड ट्रैफर्ड में वह मैच रेफरी थे और अपने सुपुत्र की कामयाबियों के वह साक्षी बने।
इससे ज़्यादा उतार चढ़ाव के पल क्या हो सकते हैं कि यह वही स्टुअर्ट ब्रॉड हैं जिन पर आईसीसी टी-20 वर्ल्ड कप में युवराज सिंह ने एक ओवर में छह छक्के लगाए थे।
लेकिन ब्रॉड ने अपनी उस निराशा को बहुत पीछे छोड़ दिया है। सच तो यह है कि उन्होंने लम्बे फॉर्मेट में पिछले वर्षों में काफी परिपक्वता दिखाई है। 13 साल पहले श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत करने वाले ब्रॉड ने एक आला दर्जे के गेंदबाज़ के अलावा निचले क्रम के बल्लेबाज़ के तौर पर भी अपनी उपयोगिता दिखाई है। आलम यह है कि वह टेस्ट में एक सेंचुरी और 12 हाफ सेंचुरी बना चुके हैं। टेस्ट में 3200 रन बनाना उन्हें ऑलराउंडर साबित करने के लिए काफी है। यह सेंचुरी उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ दस साल पहले लॉर्ड्स के मैदान पर बनाई थी। तब उन्होंने जोनाथन ट्रॉट के साथ आठवें विकेट की पार्टनरशिप में 332 रन जोड़े थे।
छह साल पहले वरुण आरोन की बाउंसर पर ब्रॉड उनके नाक की हड्डी टूट गई थी और उन्हें आंख में इंजरी हुई थी। तब गेंद उनके हैलमेट के ग्रिल से निकल गई थी। तब वह गेंद को पुल करने गए थे। वह घटना उनके लिए दु:स्वप्न साबित हुई जिसके बाद उनकी बल्लेबाज़ी बुरी तरह से प्रभावित हुई।
वेस्टइडीज़ के खिलाफ सीरीज़ में उनके प्रदर्शन और फिटनेस को देखते हुए यही कहना ठीक होगा कि उम्र तो बस एक नम्बर है। उनमें आज भी विकेट हासिल करने और निचले क्रम में उपयोगी रन बनाने की भूख अभी खत्म नहीं हुई।
(लेखक स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टर और क्रिकेटर कमेंटेटर हैं)