बदले परिवेश में नए तौर-तरीक़े अपनाये जाने की ज़रूरत है जिसके माध्यम से युवाओं से सीधा सम्पर्क स्थापित किया जा सके, उनपर प्रभाव रखने वाले लोगों की पहचान हो पाए और उनसे कारगर वर्किंग रिलेशन बनाया जा सके। मैराथन के आयोजन के क्रम में पुलिस को समाज के हर वर्ग से मिलने का अवसर मिलता है। कोशिश रहती है कि अधिक से अधिक लोगों और संस्थाओं तक पहुँचा जाय और एक ख़ुशनुमा माहौल में उनसे दोस्ताना सरोकार बनाया जाय। ये एक तरह का ग़ैर-दंडात्मक सम्पर्क है जिससे पुलिस और युवाओं में आपसी तालमेल और समझदारी बनती है। कहने की बात नहीं कि जिस थाना-प्रबंधक के सीधे सम्पर्क में उसके क्षेत्र के हज़ार युवा और पचास-साठ उनपर प्रभाव रखने वाले लोग हों, उसे अपने इलाक़े की गड़बड़ी की किसी सूचना के लिए ऊपर नहीं ताकना पड़ेगा। जैसा कि दुर्घटनाओं में होता है कि अगर पहले आधे-एक घंटे में, जिसे ‘गोल्डन ऑवर’ कहते हैं, घायल को मेडिकल सहायता मिल जाए तो उनके बच जाने की सम्भावना बढ़ जाती है। उसी तरह अगर लॉ एंड ऑर्डर की बिगड़ती स्थिति के बारे में अगर शुरू में ख़बर हो जाए तो इसे हिंसक होने से रोका जा सकता है। इनपर प्रभाव रखने वालों से अगर अच्छे वर्किंग रिलेशन हों तो उनसे बात की जा सकती है। मामला शांतिपूर्वक सुलझाया जा सकता है। शुद्ध रूप में मैराथन 42.195 किलोमीटर का एक रोड-रेस है। कहते हैं कि इसकी जड़ ईसा पूर्व 490 की ऐथेंस की एक घटना में है। मैराथन नाम के जगह पर ग्रीस और पर्सिया में लड़ाई चल रही थी। फ़ायडिफ़िडेस नाम का ग्रीस का एक संदेशवाहक था। पहले तो वो स्पार्टा लड़ाई में मदद माँगने के लिए दो दिन में 240 किलोमीटर दौड़ कर गया। फिर युद्ध में ग्रीस की जीत की ख़बर लेकर मैराथन से ऐथेंस तक 40 किलोमीटर दौड़कर पहुँचा। मक़सद उलाहना देना था कि इस लड़ाई में स्पार्टा ने ग्रीस की मदद क्यों नहीं की? जब ओलम्पिक खेल 1896 में दोबारा शुरु हुआ तो ग्रीस ने ज़ोर लगाया कि इस लम्बी दूरी की दौड़ को मैराथन के नाम से इसमें शुमार किया जाय। तब से ये परम्परा है कि मैराथन ओलम्पिक खेलों के आख़िरी दिन आयोजित होता है। इसके विजेताओं को मेडल समापन समारोह में दिया जाता है।
हरियाणा में मैराथन के ज़रिए सरकार को युवाओं से सरोकार बढ़ाने में बड़ी मदद मिली है। इसकी तैयारी के क्रम में पुलिसकर्मी और युवाओं में एक दोस्ताना सम्बंध बना है। पुलिस की ज़मीनी पकड़ बढ़ी है। ख़ुद ही दुनियाँ भर की बीमारियों और मोटापा से जूझ रहे पुलिस बल में फ़िट्नेस के प्रति रुझान पैदा हुआ है। उनमें इतने बड़े आयोजन को सफलतापूर्वक करवाने की गौरवानुभूति पैदा हुई है। ऐसे विशाल सामूहिक आयोजन का ज़िक्र लोग महीनों-महीनों करते है। अप्रैल 2015 से अब तक आयोजित दस बड़े मैराथन का अलग-अलग जन-जागरूकता थीम था। इसमें से प्रत्येक में औसतन पचास हज़ार लोगों ने भाग लिया। एक जागरूक जन-समर्थन सुचारू विधि-व्यवस्था का मूल है, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं। )