इशिका ठाकुर,कुरुक्षेत्र :
स्थानेश्वर मंदिर जहा स्थापित है विश्व का सबसे पुराना शिवलिंग,भगवान ब्रह्मा ने स्वयं की थी इस शिवलिंग की स्थापना।शिवरात्रि पर पूजा का है विशेष महत्व।अनेकों ऋषि-मुनियों ने भी यहां पर किया है तप। कुरुक्षेत्र विश्व भर में धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। वैसे तो कुरुक्षेत्र को महाभारत के लिए जाना जाता है। लेकिन यहां पर अनेकों प्राचीन मंदिर है इनमें से एक मंदिर है स्थानेश्वर मंदिर, जिसे स्थानु के नाम से भी जाना जाता है। स्थाणु शब्द का अर्थ होता है भगवान शिव का वास। इस शहर ने सम्राट हर्षवर्धन के राज्य काल में राजधानी के रुप में कार्य किया।
यहां शिवलिंग विश्व में सबसे पहली बार स्थापित किया गया था
स्थानेश्वर मंदिर एक प्राचीन मंदिर है, कहते हैं कि भगवान शिव की शिवलिंग के रुप में पहली बार पूजा इसी स्थान पर हुई थी। और यहां शिवलिंग विश्व में सबसे पहली बार स्थापित किया गया था। इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान ब्रह्मा ने आदिकाल में की थी। महाभारत से पूर्व भगवान कृष्ण ने पांडवों सहित इस शिवलिंग की पूजा की व युद्ध में विजय प्राप्ति का वरदान मांगा। इस मंदिर स्थल पर अनेकों ऋषि-मुनियों ने भी तप किया है। कुरुक्षेत्र में लाखों की संख्या में श्रद्धालु धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के तीर्थों दर्शन करने के लिए आते हैं। यह माना जाता है कि जो तीर्थयात्री कुरुक्षेत्र की 48 कोस की तीर्थ यात्रा पर आते है उनकी यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना अधूरी मानी जाती है।
शिवरात्रि श्रद्धालु के लिए विशेष महत्व रखती है
शिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष मेला का आयोजन होता है , ऐसी मान्यता है कि शिवरात्रि के अवसर पर जो भक्त यहां पर जल अभिषेक करता है उसे 1 वर्ष कि शिव पूजा के बराबर का फल प्राप्त होता है। इसीलिए यहां पर शिवरात्रि के दिन भारी भीड़ देखने को मिलती है।
यह स्थानेश्वर मंदिर सरस्वती नदी के तट पर स्थापित है। मंदिर में एक सरोवर भी है माना जाता है कि इस सरोवर में स्नान करने से कई प्रकार के कुष्ठ रोग सहित कई दोषों से मुक्ति मिलती है। मंदिर एक छत के साथ एक क्षेत्रीय प्रकार की वास्तुकला का अनुसरण करता है। और तीर्थयात्रियों और भक्तों द्वारा प्रेम और श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। एक कलात्मक गुंबद की तरह की छत वाला मंदिर भारतीय प्रकार की वास्तुकला का अनुसरण करता है।
आज भी भगवान शिव इस नगरी में विराजमान है
पुजारी रोशनपुरी के अनुसार इस मंदिर पर कालांतर में 24 आक्रमण हुए हैं जिनमें से 22 आक्रमण मुगलों द्वारा किए गए हैं। मोहम्मद गजनी ने यहां पर आक्रमण किया और भगवान नटराज की एक बेशकीमती मूर्ति यहां से अपने साथ ले गए। इन सब आक्रमणों के बावजूद भी भगवान शिव इस नगरी में विराजमान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत युद्ध आरम्भ होने वाला था तब पांडवों और भगवान श्रीकृष्ण ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की तथा महाभारत का युद्ध विजय का आर्शीवाद प्राप्त किया था।
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