राजकुमार शर्मा। यह एक बदली हुई वेस्टइंडीज़ टीम है, जिसने खेल के हर विभाग में अच्छा प्रदर्शन किया। उसके बल्लेबाज़ों के पास ज़्यादा अनुभव नहीं था लेकिन उसके मध्यक्रम ने शानदार बल्लेबाज़ी करके अपने तमाम आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। टीम की गेंदबाज़ी ने इकाई की तरह काम किया और उसका परिणाम आपके सामने है। वहीं यह भी सच है कि इंग्लैंड ने वेस्टइंडीज़ को कुछ ज़्यादा ही हल्के से ले लिया।
लम्बे समय के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की शुरुआत का असर खिलाड़ियों पर साफ तौर पर दिखाई दिया। मैच के दौरान कई मौकों पर खिलाड़ी लय में नहीं दिखे। खिलाड़ियों का उतना अभ्यास नहीं हो पाया जितना कि एक टेस्ट मैच के लिए होना चाहिए। इतना ही नहीं, खिलाड़ियों में एक डर का माहौल भी देखा गया। इस मैच के कई खिलाड़ियों को अपने स्किल पर काम करना होगा।। मुझे विश्वास है कि जिन खिलाड़ियों को भी ऐसी समस्या आ रही है, वे इससे जल्द ही उबर जाएंगे।
एक ही टीम की ओर से कप्तान होल्डर, तेज़ गेंदबाज़ गैब्रिएल और बल्लेबाज़ ब्लैकवुड का प्रदर्शन मैच का बड़ा अंतर साबित करता है। होल्डर ने जहां पहली पारी में करियर बेस्ट गेंदबाज़ी की, वहीं गैब्रिएल ने दोनों पारियों में बढ़िया गेंदबाज़ी की लेकिन पहली पारी की उनकी गेंदबाज़ी का ही यह परिणाम था कि इंग्लैंड की टीम बैकफुट पर आ गई जिसका वेस्टइंडीज़ को पहली पारी की अच्छी खासी बढ़त के रूप में फायदा हुआ। वहीं ब्लैकवुड की बल्लेबाज़ी की मेहनत को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उन्होंने दोनों पारियों में शानदार बल्लेबाज़ी की। खासकर दूसरी पारी में उन्होंने मध्यक्रम में ऐसा काम किया जिससे इंग्लैंड अच्छी बढ़त का फायदा नहीं उठा सका। इन तीनों के प्रदर्शन को देखते हुए मैन ऑफ द मैच किसे दिया जाता, ये काम काफी मुश्किल हो गया था लेकिन फिर भी गैब्रिएल को इसके लिए चुनना एकदम सही कदम था।
मैच के दौरान कुछ लम्हे ऐसे भी आए जब इंग्लैंड ने ज़बर्दस्त वापसी की। एक मौके पर क्राले और बेन स्टोक की 98 रन की पार्टनरशिप और एक अन्य मौके पर वेस्टइंडीज़ के तीन खिलाड़ियों का जल्दी आउट होना ऐसे पल थे जहां इंग्लैंड मज़बूत नज़र आने लगा था लेकिन तारीफ करनी होगी वेस्टइंडीज़ की कि उसने न सिर्फ इस संकट से निजात पाई बल्कि स्थिति को पूरी तरह से पलट दिया।
जहां तक बेन स्टोक का सवाल है। नए कप्तान ने फ्रेश विकेट पर पहले बल्लेबाज़ी करने का फैसला किया जबकि वेस्टइंडीज़ के गेंदबाज़ों ने इसी मौके का फायदा उठाया और शानदार गेंदबाज़ी के साथ इंग्लैंड पर पूरी तरह से दबाव बना लिया। कप्तान के तौर पर रणनीति बनाने से लेकर फील्ड प्लेसमेंट तक और बतौर गेंदबाज़ ये भी देखना कि कहीं कोई गेंदबाज़ अंडर-बॉल न रह जाए लेकिन मुझे उम्मीद है कि वे इस तरह के मुक़ाबले से काफी कुछ सीखेंगे। अगले मैच में जो रूट वापसी करने वाले हैं। ज़ाहिर सी बात है कि इससे इंग्लैंड की बल्लेबाज़ी और कप्तानी दोनों को बल मिलेगा। उनकी वापसी के बाद टीम में काफी बदलाव आ सकता है। दूसरे, स्टुअर्ट ब्राड की भी कमी को इस मैच में बहुत महसूस किया गया क्योंकि उनके बॉलिंग पार्टनर एंडरसन अपनी पूरी क्षमताओं के हिसाब से गेंदबाज़ी नहीं कर पाए। ब्राड की गेंदबाज़ी निश्चय ही मैच को और ज़्यादा रोमांचक बनाती। इंग्लैंड की टीम अब ज़्यादा तैयारी और ज़्यादा गम्भीरता के साथ बाकी के दोनों मैचों में उतरेगी।
वहीं वेस्टइंडीज़ की टीम भी कई दिग्गज खिलाड़ियों के बिना दिखाई दी। रसेल, गेल, ब्रावो, हैटमायर, सुनील नरेन जैसे दिग्गजों को अब व्हाइट बॉल क्रिकेट में ही विचार किया जाएगा। गेंदबाज़ी में गैब्रिएल, होल्डर और रॉच की तिकड़ी टीम को ताक़त देती है। ज़रूरत लगातार अच्छा प्रदर्शन करने की है। यदि वेस्टइंडीज़ ने ऐसा प्रदर्शन आगे भी जारी रखने के साथ ऐसा ही आत्म-विश्वास बरकरार रखा तो मुझे विश्वास है कि वेस्टइंडीज की टीम न सिर्फ 1988 के बाद इंग्लैंड में पहली बार कोई सीरीज़ जीतने का कमाल करेगी बल्कि वेस्टइंडीज़ टीम के पुराने दिन भी लौट आएंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि वेस्टइंडीज़ टीम का मनोबल काफी ऊंचा है।
(लेखक विराट कोहली के कोच हैं और द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता हैं)