spiritual News : ओम आंनद ओम निर्भयता संगठन आंनद

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Om Anand Om Fearlessness Organization Anand
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योगीराज अमरज्योति
महावतार बाबा जी मैडिटेशन सैंटर
कंडवाड़ी-पालमपुर।

(spiritual News) आध्यात्मिक। कठिनाइयों के बीच से गुजरे बिना मनुष्य का व्यक्त्तिव अपने पूर्ण चमत्कार में नहीं आता और कठिनाइयां एक ऐसी खराद की तरह है कि जो मनुष्य के व्यक्त्तिव को तराशकर चमका दिया करती है।
कठिनाइयां मनुष्य जीवन के लिए वरदान रूप ही होती हैं, साधारणतया महापुरूषें का सृजन कठिनाइयों की आग में तपने के बाद ही होता है। उन्नति की इच्छा रखने वालों को साहस संचय करके आगे बढ़ते रहना चाहिए।

बिना साहस किए और खतरा मोल लिए न तो कोई आज तक आगे बढ़ पाया है और न आगे ही उन्नति कर सकेगा। हमें अपनी विजय पर अखंड विश्वास होना चाहिए और अपनी शक्तियों पर अटल भरोसा भी होना चाहिए। आशा इच्छा से अधिक बलवती होती है। मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा बन जाता है।

वेदना, दुःख और अवसाद जीवन की परछाइयां हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने पथ पर सवाधानी के साथ चलता रहे। जो आशान्वित है, उत्साहित हैं और उद्योगी है, अमंगल तथा अनिष्ट उनके मार्ग को नहीं रोक सकते। आपतियां संसार का स्वाभिविक धर्म है।

जीवन एक संग्राम है और विपति वह खराद है जिससे परमात्मा अपने रत्नों की चमक बढ़ाता है। कठिनायों में ही धीरज एवं जीवन-दर्शन की परीक्षा होती है। जो दृढ़ विश्वास रखता है कि वह महान् बनने के लिए ही पैदा हुआ है, वह महान् बनकार ही रहेगा, दृढ़-निश्चयी को मार्ग देने के लिए पहाड़ों को भी अलग हटना पड़ेगा।

आत्म-बल आत्मा की उच्च स्थिती का प्रकाश है, आत्म-बल के आधार पर किसी की भी आंतरिक महानता नापी जा सकती है जो आत्मिक दृष्टि से जितना महान् है, उसे इस संसार का उतना ही बड़ा सम्पन्न और विभूतिवान मानना चाहिए।
आत्म-बल मानव का सबसे प्रभावशाली बल है। आत्म-बल जिसके पास हो, सफलता का प्रत्येक क्षेत्र आगे बढ़कर उसका स्वागत् करेगा। आत्म-बल का रत्न-भंडार आत-चेतना की भूमिका में स्थित होने पर ही उपलब्ध हो सकता है।

जिन्हें बढ़ने के लिए तनिक भी सहारा नहीं था उन्होने आत्म-बल के सहारे ही जीवन की महान् सफलताएं अर्जित की थीं। अनेकों व्यक्ति अपने आत्म-बल के आधार पर ही साधारण से असाधारण बने थे।

आत्म-बल वह बल है जो असम्भव को संभव बनाता है और मिट्टी से सोना पैदा करता है। आत्म-बल की वृद्वि के लिए करनी और कथनी में एकता लानी पड़ती है और शुद्व एवं सत्य व्यवहार में उसकी प्रथम कसौटी है। आत्म-बल के दर्शन गम्भीरता अैर सत्य व्यवहान में किये जा सकते हैं।

ईमानदारी और हृदय की शुद्वि आत्म-बल की भूमिका है जिसमें वह पल्लवित और पुष्पित होता है। आत्म-बल मानव जीवन का सार है। जीवन में सफलता उन्ही व्यक्तियों को प्राप्त हुई है जो मन में उसे पहले प्राप्त कर चुके थे। जिन्होने जीवन के स्वप्नों को सत्य किया है, वे पहले उन्हें अपने मन में सत्य कर चुके थे। हमारा सफलता का स्वप्न ही वास्तविक सफलता का द्वार खोलेगा। ’वही सोचो जो तुम चाहते हो’, इन शब्दों में एक महान् सत्य छिपा है। सफलता का रहस्य यही है कि आप हर क्षण पूरे मन से सफलता का विचार करो और उसे पाने का प्रत्यन भी करो। विश्वास ही वह चुम्बक है जो सफलता को अपनी ओर खींच लेता है। यदि आप अपनी सोई शक्तियों को जगाना चाहते हैं, तो आपको सदा प्रगतिपथ पर बढ़ते रहना होगा।

जिस ईश्वर ने सारे संसार को पूर्णता प्रदान की है, उनके भंडार में आपके लिए भी सब कुछ है। सीमाएं बांधने वाले तो स्वयं हम हैं। ईश्वर तो सदैव प्यासी आत्मा के लिए अमृत बरसाता रहता है। उन्नति की कामना मनुष्य की दिव्य विशेषता है। जैसी आशा करोगे, वैसे बन जाओगे।

जिन सिद्वांतो से सफलता की समस्या हल होती है, वे है सत्य और न्याय, सच्चाई और ईमानदारी। सुख का असली सार ही ईमानदारी, दिल की सच्चाई और सत्य व्यवहार है। जो आदमी सच्चे सुख कमे अपदा साथी बनाना चाहता है, उसे ईमानदार, सीधा और सच्चा होना ही पडे़गा।

सुख पाने का एकमात्र मात्र मार्ग यही है कि सीधा, सरल, शुद्व, सच्चा, उपयोगी जीवन बिताया जाए। समृद्वि का विचार और विश्वास सफलता का द्वार है। विश्वास एक ऐसा सम्राट है जो असफल को सफल और असम्भव को सभंव बना देता है।
मनुष्य का सबसे बड़ा गुण साहस है क्योंकि यह अन्य सब गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। साहस ही जीवन की विशेषताओं को व्यक्त होने का अवसर देता है। साहस सफलता का स्वप्न और संकल्प लेकर चलता है। यदि सम्मानयुक्त जीवन जीना है साहसी बनना पडे़गा। साहस समुद्र के अंदर से अपना रास्ता बनाता है और पहाड़ों को चीरकर आगे बढ़ता है। साहस के शब्दकोश में ’असम्भव’ और ’पराजय’ नाम के कोई शब्द है ही नहीं।

साहस से उस संकल्प-बल की उत्पति होती है जिससे अंधेरे में भी प्रकाश फैलता है और असम्भव संभव बन जाता है तथा जिससे सब कुछ अपलब्ध किया जा सकता है। साहस ने नदियों को रोक कर बंाध बना दिये और साहस ने लंबी उड़ाने भरकर चंद्रमा पर पैर रख दिये। साहस ने समुद्र के तल में जाकर रत्न निकाल लिए और साहस ने जंगल के शेरों को पकड़कर पिंजरों में बंद कर दिया। साहस ने वीरान धरती कने शस्य-श्यामला बना दिया और साहस ने ही उफनती हुई समुद्रों की भयानक लहरों को पार करके दुनियां की धरती को खोज निकाला था और साहस ने ही संसार के विकटत्म पर्वतों की चोटियों पर पहुंुचा है और साहस ने ही हिमालय के शिखर को छूकर देखा है। साहस ने ही उन विकट यात्रायों को पूर्ण किया था, जिनके कारण साहसी इतिहास में अमर हुए हैं। दुनिया मिट सकती है परंतु लोकहित में सत्प्रयत्न रने वाले साहसी सदैव अमर रहेगें।

मानव के पुनर्निमाण का सम्पूर्ण जादू मात्र दृष्टिकोण-परिवर्तन में छिपा हुआ है। जो काम अतीत में अधिनायकों के समय तोप और तलवार से नहीं हो सकता था, वह अब मात्र दृष्टिकोण के परिवर्तन की प्रतिक्षा में है। मूलतः आदमी बुरा नहीं है।
आदमी जैसा सोचता है, उनके अगले कदम भी उसी दिशा में उठते हैं। अगर आदमी के सोचने के तरीके को निकृष्ट दिशा उत्कृष्ट दिशा दी जा सके तो आदमी संकीर्णता से उदारता और अंधेरे से प्रकाश तथा बुराई से भलाई की दिशा में बढ़ सकता है। सिर्फ दृष्टिकोण-परिवर्तन में ही वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने का निराकरण छिपा हुआ है और विश्वशान्ती समाई हुई है तथा दृष्टिकोण-परिवर्तन पर विश्व को विनाश से बचाया जा सकता है। दुनिया की सम्पूर्ण समस्याएं एक ही बिंदू पर आकर हल हो रही हैं और वह है आदमी का दृष्टिकोण-परिवर्तन।

विद्वेूष समाप्त करने और आज की दुनिया को ठीक से जिंदा रहने के लिए इससे भिन्न कोई सरल एंव सूक्ष्म तरीका है भी नहीं। मानवता का दायरा प्राणिमात्र के प्रति करूणा और मानव मात्र से प्रेम रखना ही है और उस प्रेम में ही शांति और विश्व शांति समाई हुई है तथा वह आदमी के सोचने के तरीके को बुराई से भलाई और अंधेरे से प्रकाश की दिशा में घुमा देने से ही हो सकता है।

मनुष्य के सोचने का तरीका जिस दिन संकीर्णता से व्यापकता, अलगाव और बेगानेपन से मानवीय भाई-चारा के विस्तार का रूप ले लेगा, उस दिन विश्व-शांति का धरातल पल्लवित और पुण्यित हो जाना चाहेगा। तब सम्पूर्ण विश्व-एक आर्दश परिवार की तरह स्नेह तथा भाई-चारे से रहना पसंद करेगा।

किसी भी धर्म की कल्याणकारी बातों को अपनाने के लिए किसी भी मानवतावादी और नेक इंसाम को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए और सबसे प्रति आदर बुद्वि तो रखनी ही चाहिए, ताकि घृणा की जगह हम प्रेम के बीज बो सकें और आदमी-आदमी के बीच की दूरीयों को कम करके एक-दूसरे के नजदीक आ सकें। निःसंदेह परिस्थितियों वश बहुत से धर्मों में कुछ ऐसी बातें भी अतीत काल में जुड़ चुकी हैं जिनके लिए किसी भी विचारक का विवक स्वीकार नहीं कर सकता, इसलिए ऐसी बातों को हम सबको एक किनारे पर कर देनी चाहिए, जिनसे कि आदमी-आदमी के बीच मतभेद और घृणा बढ़ती हो।

चूंकि पृथ्वी पर शांति फैलाने और अमृत बरसाने के लिए धर्माें में संसोधन अत्यावश्यक है, इसलिए इस बिंदू पर प्रत्येक के लिए संकीर्णता नहीं अपितु उदारता का व्यवहार ही शोभनीय होगा। अंधविश्वास और हठवादिता का समय विदा होता जा रहा है, तो भी पुराने घावों से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए तथा व्यर्थ के वाद-विवादों से भी बचना चाहिए।

हमें एक-दूसरे के नजदीक आना होगा और एक-दूसरे को समझना होगा, ताकि एक ही पिता की संतानों की तरह हम सब आपस में मिलकर स्नेह और सौहार्द्र से रह सकें।

मनुष्य के प्रयत्नों में केवल एक ही उद्वेश्य होना चाहिए, अपने साथी मनुष्य के लिए पूरी सेवा और प्रेम। अगर मानवीय समाज की रक्षा करनी है तो मानव-व्यक्त्वि का नवीनीकरण करना ही होगा। धर्मों में प्रवेश कर चुकि कतिपय बुराइयों से छुटकारा पाना होगा और मृत रूपों को छोड़कर नये आदर्शों को अपनाना होगा।

विश्व-शांति के लिए हमें रूखा और बेगानापन त्यागना होगा। उत्तेजना त्यागनी होगी और धीरज के साथ दूसरों की बात सुननी और अपनी बात कहनी होगी।

अपने और पराये का भेद मिटाना होगा तथा पूर्वाग्रह और दुराग्रह छोड़ने होंगे। सह्रदयता, उदारता और निष्पक्षता ही विवादों को निपटाने के प्राण-बिंदू हैं। युद्व कभी हितकर नहीं हुए, युद्व तो सदैव से ही सर्वनाश के कारण रहे हैं।
युद्व मनुष्य जाति के मूल आधार के विनाशक रहे हैं। शान्ति प्रकाश है, जबकि युद्व अंधकार है। शान्ति जीवन है, युद्व मृत्यु है। शान्ति सही पथ प्रर्दशन है, युद्व कुपथ है, भूल है।

शान्ति मानवजगत का आलोक है, युद्व मानवीय आधारों का विनाशक है। शान्ति और बंधुत्व उत्थान और प्रगति के साधक तत्त्व है, जबकि युद्व और कलह विनाश और विघटन के कारण है। शान्ति स्वस्थय और निर्माण है, युद्व रोग और विखराव है। युद्व सभी युगों और सभी कालों में जीवन में अव्यवस्था और कष्टांे के कारण रहे हैं, जबकि शान्ति और बंधुत्व अपने साथ सुरक्षा लाए हैं। इसलिए हमें स्थिरतापूर्वक एक युद्वहीन संसार की तरफ बढ़ना है। अब सभ्य राष्ट्र समझने लग गये हैं कि युद्व विवादों का निर्णय कराने का पुराना पड़ गया तरीका है।

श्रेष्टतम् तरीका शान्तिपूर्वक बातचीत चलाना और आपसी समझौता ही है। त्वचा के अंदर हम सब भाई-बहन है।
मानव बन्धुत्व और राष्ट्रों की एकता तथा शान्ति की अखण्डता आवश्यक सत्य है। अब विश्व के लोगों को एक ही देश और परिवार की तरह मिलकर स्नेह और पुनीत भावना के साथ भाई-भाई और भाई-बहनों की तरह शान्ति और स्नेह के साथ रहना होगा।

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