सीता से अभिप्राय हमारी आत्मा से है
अहंकार के कारण ही रावण का पतन हुआ था
दशहरे के त्यौहार का एक आध्यात्मिक पहलू यह भी है कि यह हमें घमंड को छोड़कर नम्रता से जीना सिखाता है। अगर हम अपने जीवन पर एक नज़र डालें तो हम पाएंगे कि ज्यादातर हम सभी अहंकार से अपना जीवन जीते हैं और यही हमारे विनाश का कारण है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि अहंकार के कारण ही रावण का पतन हुआ था। जब हम किसी पूर्ण गुरु के चरण-कमलों में जाते हैं और उनके अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते हैं तो उनकी दयामेहर से हमारा घमंड खत्म हो जाता है। तभी हमारी आत्मा का मिलाप प्रभु से होता है। जिस प्रकार विजयदशमी के दिन राम ने अहंकारी रावण को पराजित कर विजय प्राप्त की थी, ठीक उसी प्रकार हमें भी अपनी आत्मा (सीता) को इस शरीर के पिंजरे से आज़ाद करके पिता-परमेश्वर में लीन कराना है। तो आइये! हम वक्त के किसी पूर्ण गुरु के चरण-कमलों में पहुंचे और उनसे ध्यान-अभ्यास की विधि सीखें ताकि इसी जन्म में हमारी आत्मा का मिलाप पिता-परमेश्वर हो जाए और वह चौरासी लाख जियाजून से छुटकारा पा जाए। तभी हम सच्चे मायनों में दशहरे के त्यौहार को मना पाएंगे।
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