Aaj Samaj (आज समाज),Spiritual aspect of Dussehra festival: Sant Rajinder Singh Maharaj,पानीपत : हम सब यह जानते हैं कि हर वर्ष दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है। ये त्यौहार असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतीक है। रामायण की कथा के दो पहलू हैं-एक बाहरी और एक अंतरी। बाहरी पहलू के बारे में हम सब अच्छी तरह जानते हैं, लेकिन अंतरी पहलू जोकि हमारी आत्मा से जुड़ा है उसके बारे में हम बहुत कम जानते हैं। रामायण की वास्तविक शिक्षा आध्यात्मिक है, मगर हम इसके बाहरी पहलू तक ही सीमित रह जाते हैं। अगर हम दशहरे के त्यौहार के आध्यात्मिक पहलू पर एक नज़र डालें तो सभी संत-महापुरुषों ने रामायण के पात्रों का असली मतलब हमें समझाया है। उनके अनुसार राम से अभिप्राय उस प्रभु सत्ता से है जो सृष्टि के कण-कण में समाई हुई है, जिसे ”संतों का राम“ कहा गया है।
सीता से अभिप्राय हमारी आत्मा से है
सीता से अभिप्राय हमारी आत्मा से है जोकि हमारे शरीर में कैद है और चौरासी लाख जियाजून के चक्कर में भटक रही है। इसके अलावा लक्ष्मण से अभिप्राय हमारे मन से है जो कभी भी शांत नहीं होता और हमेशा लड़ने को तैयार रहता है। रावण से मतलब हमारे अहंकार से है, जो हरेक इंसान के अंदर कूट-कूटकर भरा हुआ है। दशरथ का अर्थ हमारे मानव शरीर से है जोकि एक रथ के समान है, जिसमें पाँच ज्ञान-इंद्रियों और पाँच कर्म-इंद्रियों के 10 घोड़े बंधे हुए हैं, जो इसे चला रहे हैं। संत-महापुरुष इसके आध्यात्मिक पहलू के बारे में हमें और विस्तार से समझाते हैं कि सीता यानि हमारी आत्मा अपने आपको भूलकर इस दुनिया का रूप बन चुकी है। रावण रूपी अहंकार उसे हर लेता है। राम और रावण का युद्ध होता है और वह सीता (आत्मा) को रावण (अहंकार) के पंजे से छुड़ाकर वापिस ले आते हैं। सीता जिस्म-जिस्मानियत से आज़ाद होकर वापिस महाचेतन प्रभु में समा जाती है, जिसकी की वो अंश है।
अहंकार के कारण ही रावण का पतन हुआ था
दशहरे के त्यौहार का एक आध्यात्मिक पहलू यह भी है कि यह हमें घमंड को छोड़कर नम्रता से जीना सिखाता है। अगर हम अपने जीवन पर एक नज़र डालें तो हम पाएंगे कि ज्यादातर हम सभी अहंकार से अपना जीवन जीते हैं और यही हमारे विनाश का कारण है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि अहंकार के कारण ही रावण का पतन हुआ था। जब हम किसी पूर्ण गुरु के चरण-कमलों में जाते हैं और उनके अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते हैं तो उनकी दयामेहर से हमारा घमंड खत्म हो जाता है। तभी हमारी आत्मा का मिलाप प्रभु से होता है। जिस प्रकार विजयदशमी के दिन राम ने अहंकारी रावण को पराजित कर विजय प्राप्त की थी, ठीक उसी प्रकार हमें भी अपनी आत्मा (सीता) को इस शरीर के पिंजरे से आज़ाद करके पिता-परमेश्वर में लीन कराना है। तो आइये! हम वक्त के किसी पूर्ण गुरु के चरण-कमलों में पहुंचे और उनसे ध्यान-अभ्यास की विधि सीखें ताकि इसी जन्म में हमारी आत्मा का मिलाप पिता-परमेश्वर हो जाए और वह चौरासी लाख जियाजून से छुटकारा पा जाए। तभी हम सच्चे मायनों में दशहरे के त्यौहार को मना पाएंगे।