सनातन धर्म में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि श्री राधाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। शास्त्रों में इस तिथि को राधाजी का प्राकट्य दिवस माना गया है। राधाजी वृषभानु की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थीं। वेद और पुराणादि में जिनका ‘कृष्ण वल्लभा’ कहकर गुणगान किया गया है। वहीं कुछ जानकार श्री राधाजी का प्राकट्य वृषभानुपुरी (बरसाना) या उनके ननिहाल रावल ग्राम में प्रात:काल का मानते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी मनाई जाती है। इस वर्ष 6 सितंबर को राधाष्टमी मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से व्रती को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन जहां श्रद्धालु बरसाना(उत्तरप्रदेश) की ऊंची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते है। वहीं मध्यप्रदेश में भी राधा अष्टमी के दिन जगह-जगह पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। मंदिरों को सजाया जाता है व मंदिरों में राधा जी की पूजा-अर्चना की जाती है।
राधाष्टमी कथा
पद्म पुराण के अनुसार राधा जी राजा वृषभानु की पुत्री थीं और उनकी माता का नाम कीर्ति था। कथानुसार एक बार जब राजा वृषभानु यज्ञ के लिए भूमि की साफ-सफाई कर रहे थे तब उनको भूमि पर कन्या के रूप में राधा जी मिलीं थीं। इसके बाद राजा वृषभानु कन्या को अपनी पुत्री मानकर लालन-पालन करने लगे। राधा जी जब बड़ी हुई तो उनका जीवन सर्वप्रथम कृष्ण जी के सानिध्य में बीता। किन्तु राधा जी का विवाह रापाण नामक व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था।
राधाष्टमी महत्व
वेदों, पुराणों एवं शास्त्रों में राधा जी को कृष्ण वल्लभा कहकर गुणगान किया गया है। मान्यता है कि राधाष्टमी के कथा श्रवण से व्रती एवम भक्त सुखी, धनी और सर्वगुणसम्पन्न बनता है। श्री राधा जी के जाप एवम स्मरण से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि यदि राधा जी का पूजा अथवा स्मरण नही किया जाता है तो भगवान श्री कृष्ण जी भी उस भक्त के द्वारा किए गए पूजा, जप-तप को स्वीकार नहीं करते हैं। श्री राधा रानी भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। अत: कृष्ण जी के साथ श्रीराधा रानी जी का भी पूजा विधि-पूर्वक करना चाहिए।
पूजन विधि
राधाष्टमी के दिन प्रात: काल उठकर घर की साफ-सफाई करना चाहिए। स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध मन से व्रत का संकल्प करना चाहिए। इसके बाद सबसे पहले श्रीराधाजी को पंचामृत से स्नान कराएं, स्नान करने के पश्चात उनका श्रृंगार करें। श्रीराधा रानी की प्रतिमूर्ति को स्थापित करें। फिर श्रीराधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण जी की पूजा धूप-दीप, फल, फूल आदि से करनी चाहिए।
आरती-अर्चना करने के पश्चात अंत में भोग लगाना चाहिए। इस दिन निराहार रहकर उपवास करना चाहिए। संध्या-आरती करने के पश्चात फलाहार करना चाहिए। कहावत है कि जो लोग राधा जन्माष्टमी का व्रत नहीं रखते उन लोगों का कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का फल भी नहीं मिलता। जन्माष्टमी का व्रत भी जोड़े से करने का लाभ श्रद्धालुओं को मिलता है। इस व्रत पर राधा-कृष्णा की प्रतिमा को लगाकर पूजा करना चाहिए।
व्रत से पूरी होती है मनोकामनाएं
राधा अष्टमी या जन्माष्टमी के नाम से इस व्रत को जाना जाता है। इस व्रत को करने से धन की कमी नहीं होती और घर में बरकत बनी रहती है। इस व्रत को करने से भाद्रपक्ष की अष्टमी के व्रत से ही महालक्ष्मी व्रत की शुरूआत भी होती है। माना जाता है कि श्रद्धा से यह व्रत रखने पर श्री राधाजी के भक्त के घर से कभी लक्ष्मी विमुख नहीं होती हैं। श्रीराधाजी का जन्म भी दोपहर को माना गया है। इसलिए इनके पूजन के लिए मध्याह्न का समय सर्वाधिक उर्पयुक्त माना गया है।
करें इस मंत्र का जाप
हेमेन्दीवरकान्तिमंजुलतरं श्रीमज्जगन्मोहनं नित्याभिर्ललितादिभि: परिवृतं सन्नीलपीताम्बरम्
नानाभूषणभूषणांगमधुरं कैशोररूपं युगंगान्धर्वाजनमव्ययं सुललितं नित्यं शरण्यं
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