Sometimes it is necessary to have fear: कभी कभी डर का होना जरूरी होता है

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सरकार कुछ बड़ा करेगी। यह डर है। आतंकियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई होगी। यह डर है। संविधान में संशोधन होगा उसके बाद क्या होगा। यह डर है। 28 हजार सैनिक कश्मीर में क्यों आ गए हैं। यह डर है। बॉर्डर पार सांसें थमी हुई है। यह डर है। मंथन करिए यह डर क्यों जरूरी है। क्यों कभी कभी किसी अनजाने डर का होना भी शांति के लिए बेहद जरूरी है। यही इन दिनों कश्मीर में हो रहा है। एक डर के कारण बहुत लोग खुश हैं। पर इस डर ने बहुतों को इतना अधिक भयभीत कर दिया है कि वो अनर्गल बयानबाजी में लगे हैं।
नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने और गृहमंत्री के रूप में अमित शाह की ताजपोशी के वक्त से ही कश्मीर में आतंक के पोषक तत्वों के अंदर डर समाया हुआ है। यह डर काफी पहले पैदा हो जाना चाहिए था। पर कमजोर राजनीतिक इच्छा शक्ति और सत्ता की लोलुपता ने इस डर को कभी पनपने नहीं दिया। परिणाम यह हुआ कि जिन्हें डर लगना चाहिए था वो शेर बनकर घूमने लगे और जम्मू-कश्मीर के अमन पसंद लोगों को डराने लगे। जिन्हें डर लगना चाहिए था वो घाटियों में स्वछंद विचरण करने लगे और जिन्होंने शांतिप्रिय जीवन अपनाया था वो डर के साये में रहने लगे। जो समझदार थे उन्होंने डर के मारे घाटी छोड़ दी। जिन्हें डर नहीं लगा वो या तो मारे गए या उनकी बहू बेटियों को भेड़ियों ने नोच डाला।
उस डर के दौर के मारे लाखों विस्थापित आज भारत के कोने-कोने में आपको मिल जाएंगे। उन्हें आज भी डर लगता है। डर इस बात का रहता है कि कब कहां से कोई अनहोनी की सूचना न आ जाए। कश्मीर के मेरे एक मित्र हैं। भारतीय जीवन बीमा निगम में ऊंचे ओहदे पर हैं। आज निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। लंबे समय से वो डर के कारण घाटी से बाहर हैं। साल में एक बार अपनी जन्मभूमि को देखने जाते हैं। पर इतने डरे होते हैं कि दिन ढलने से पहले वहां से निकल आते हैं। बच्चों को तो कभी सपने में भी वहां लेकर जाने की नहीं सोचते हैं। यह डर बेहद खौफनाक है।
आज वही खौफनाक डर कश्मीर में दोबारा से है। पर इस बार आमलोग खौफजदा नहीं है। डर उन्हें लग रहा है जिन्होंने कभी डराया था। धमकाया था। वहां के लोगों को लूटा था। आतंक के जरिए अपना डर कायम किया था। आज वो डर के साये में हैं जिन्होंने कभी आतंक को पोषित किया था। पल्लवित किया था। आज वो डरे हुए हैं जिन्होंने अलगाववाद की अग्नि सुलगाई थी और उसमें समय समय पर धर्म और मजहब का घी डाला था। आज वो सवाल उठा रहे हैं कि क्यों कश्मीर में इतने अधिक सैनिकों की तैनाती की जा रही है। वो बार बार सवाल पूछ रहे हैं कि सरकार बताए कि कश्मीर में क्या होने जा रहा है। वो संसद में सरकार से स्पष्टीकरण देने की मांग कर रहे हैं। इस डर को देखकर कश्मीर के हजारों विस्थापितों को बड़ा सुकून मिल रहा होगा।
सुकून इसलिए हो रहा होगा क्योंकि यही वो लोग हैं जिन्होंने उस वक्त अतिरिक्त सेना की मांग नहीं की थी जब कश्मीरी पंडितों की महिलाओं, बहू और बेटियों को सरेआम बलात्कार कर काट डाला जाता था। सुकून इसलिए भी हो रहा है क्योंकि यही वो डरे हुए लोग हैं जो उस वक्त के डरे हुए लोगों को जल्द से जल्द घाटी खाली कर देने की अमूल्य सलाह देते थे। क्यों नहीं उस वक्त केंद्र सरकार ने लाखों सैनिकों को कश्मीर भेज दिया था, ताकि जो भय का वातावरण बना था उसे कुछ कम किया जा सके। आज वही लोग कश्मीर घाटी में सेना की तैनाती पर सवाल उठा रहे हैं।
पूरा भारतवर्ष इस वक्त इंतजार कर रहा है कि कश्मीर से कुछ अच्छी खबर ही आएगी। तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। पर पिछले पांच साल के शासनकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने दिखा दिया था कि वो जो करते हैं वो बताते नहीं है। और जो बताते नहीं वो कर दिखाते हैं। शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इसी खामोशी ने उन्हें सत्ता के शिखर पर विराजमान कर रखा है। जिन्हें डर नहीं है वो चुपचाप कश्मीर में कुछ बड़ा होने की अंदरूनी खुशी में झूम रहे हैं। पर जिन्हें डर है वो अपनी पैंट भी बदलने से घबरा रहे हैं। जिन्हें घाटी में सेना की तैनाती से डर लग रहा है उन्हें अपने इस डर पर मंथन करना चाहिए कि उन्हें आखिर किस बात से डर लग रहा है। जो सेना की तैनाती पर सवाल पूछ रहे हैं उन्हें अपने अंदर जवाब खोजना चाहिए।
इसमें दो राय नहीं कि यह सरकार अनप्रिडेक्टेबल सरकार है। कब क्या करेगी इसका अंदाजा कोई लगा नहीं सकता है। सरकार के क्रियाकलापों को लेकर कयास तो हजारों बार लगाए जा चुके हैं, पर आज तक सभी कयास कोरी बकवास ही साबित हुए हैं। ऐसे में कश्मीर को लेकर चल रहे अफवाहों के दौर से बचने की जरूरत है। सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म पर कयासों और अफवाहों का जबर्दस्त दौर चल रहा है। पर एक समझदार नागरीक की तरह हमें सभी अफवाहों से खुद को दूर रखते हुए सरकार पर विश्वास करना चाहिए। घाटी से पर्यटकों को बाहर निकालना सरकार का एक सुरक्षात्मक कदम है। इसके लिए सरकार बधाई की पात्र है।
हमें इस बात की कतई अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि सरकार और सेना अपने गोपनीय अभियानों को साझा करे। यह किसी भी कीमत पर नहीं करना चाहिए। पूरे देश ने सरकार पर भरोसा किया है ऐसे में यह अपेक्षा करना चाहिए कि सरकार कभी देश का अहित नहीं चाहेगी। सरकार से सवाल जरूर किया जाएगा, जब देश के खिलाफ वो कोई कदम उठाएगी। सरकार को कठघरे में जरूर खड़ा किया जाएगा अगर देश के लोगों को नुकसान हुआ तो। सरकार को जरूर उखाड़ फेंका जाएगा अगर देशवासियों के हितों से खिलवाड़ किया गया तो। पर अभी संयम रखें। सरकार को अपना काम कर करने दें। जिन्हें सरकार के कदम और सेना की हलचल से डर लग रहा है तो उन्हें डरने दें। आप कश्मीर में सैनिकों के साथ ड्यूटी कर रहे कैप्टन कूल की तरह कूल रहें।