Sky is pink fun style said asha chaudhary’s tragedy: स्काई इज पिंक मजेदार अंदाज में कही गई आशया चौधरी की ट्रेजडी

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सिनेमा हॉल का अंधेरा दर्शकों को फिल्म से अच्छी तरह कनेक्ट करने और उनपर इंपैक्ट डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दर्शक अगर संवेदनशील है तो कहानी अच्छी होने और पात्रों की भूमिका सही ढंग से निभाई गई हो तो दर्शक कई बार भावुक हो जाता है और उसकी आंखे नम हो जाती हैं। उस मूवमेंट्स में यह अंधकार उचित माहौल बनाता है। स्काई इज पिंक में भी इस तरह की सिचुएशन आ जाती है जब आप अपनी आंखों को नम होता हुआ पाएंगे। खासकर उस दृश्य में जब आयशा(जायरा वसीम ) अपने भाई से फोन पर कहती है कि वो मरना नहीं चाहती।
सच्ची घटना पर आधारित फिल्म
फिल्म निर्देशिका सोनाली घोष की यह फिल्म आयशा चौधरी नाम की लड़की की ट्रेजडी से भरपूर जीवन को इस अंदाज में पेश करती है कि आप बिना बोर हुए फिल्म को देख  सकते हैं। 1996 में गुरुग्राम में  जन्मी आयशा ऑटो इम्यून डिफिशिएंसी डिसऑर्डर नाम की गंभीर बीमारी के साथ पैदा हुई थी। इसके कारण महज छह महीने की उम्र में उसका बोन मैरो ट्रांसप्लांट करना पड़ा था। लेकिन उनकी परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई। इस ट्रांसप्लांट के बाद आयशा को पल्मनरी फाइब्रोसिस (Pulmonary Fibrosis) नामक गंभीर बीमारी हो गई।
इस बीमारी के कारण आयशा के फेफड़ों में ऐसी कोशिकाएं विकसित होने लगीं, जिससे आयशा को सांस लेने में दिक्कत होने लगी।
बेहद छोटी उम्र में आयशा मौत को करीब से देख रही थी। फिर आयशा की मां ने उनका ध्यान किताबों की तरह आकर्षित किया। एक इंटरव्यू में आयशा की मां ने बताया है, ‘उसे हमेशा लिखना पसंद था। फरवरी 2014 की बात है जब वह बिस्तर पर पड़ी थी। मैंने उसे ह्यू प्राथर की एक किताब दी और कहा कि इस किताब की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं। इस पर आयशा ने जवाब दिया – मैं ह्यू प्राथर से बेहतर लिख सकती हूं।’
महज 18 साल की उम्र में माय लिटिल एपिफैनीज नाम की किताब लिखी
महज 18 साल की उम्र में आयशा लेखिका बन गईं। उनकी किताब ‘माय लिटिल एपिफैनीज’ (My Little Epiphanies) को साल 2015 में जयपुर लिटरेरी फेस्ट में रिलीज किया गया था। लेकिन अपनी किताब की सफलता देखने के लिए ज्यादा दिनों तक वह जीवित नहीं रह सकीं। 2014 तक आयशा के फेफड़ों के ऑक्सीजन लेने की क्षमता 35 फीसदी थी, जो 2015 में 20 फीसदी रह गई। 24 जनवरी 2015 को आयशा की मृत्यु हो गई।
मौत की आंखों में आंखे डाल जीने का जज्बा
 आयशा डर कर जीने वालों में से नहीं थीं। अपनी गंभीर बीमारी के कारण आयशा बखूबी जानती थी कि उसकी जिंदगी अब चंद दिनों की है। इसके बाद भी उन्होंने देश के कोने-कोने में ट्रैवेल किया। मोटीवेशनल स्पीच दिए। हर जगह वह पोर्टेबल ऑक्सीजन लेकर जाती थीं।
INK 2013 और 2014 के कॉन्फ्रेंसेज से लेकर 2013 में पुणे में आयोजित टेड-एक्स तक में उन्हें बतौर स्पीकर बुलाया गया था।
हमेशा किसी और की जिंदगी बेहतर बनाने का विकल्प
आयशा का मानना था कि ‘अगर आप अपनी जिंदगी नहीं बदल सकते तो आपके पास हमेशा किसी और की जिंदगी बेहतर बनाने का विकल्प है।’ उनका कहना था ‘मृत्यू अंतिम सच है। लेकिन मैं खुश रहना चाहती हूं और मैंने एक हैप्पी पल्मनरी फाइब्रोसिस को चुना है।
 प्रियंका की इंटेस एक्टिंग
प्रियंका चोपड़ा एक मैच्योर एक्ट्रेस हैं उनकी एक्टिंग का जलवा हम मैरीकॉम और   में देख ही चुके हैं। स्काई इज पिंक में हम प्रियंका को आयशा की मां के रोल में इंटेस एक्टिंग करते हुए देख सकते हैं। खासकर उस दृश्य में जब बेटी की बीमारी की वजह से कई दिनों तक लगातार जगे रहने के कारण वो पागल तक होने की स्थिति में पहुंच जाती है और अपने पति बने फरहान अख्तर का गला तक दबाने लगती हैं। एक गंभीर बीमारी से जुझ रही अपनी मासूम बेटी की मां की भूमिका को प्रियंका चोपड़ा ने बहुत ही लाजवाब ढंग से निभाया है। वो एक ऐसी मां की भूमिका में जान डाल देतीं हैं जो अपनी बेटी की देखभाल में ही कई वर्षों तक खुद की जिंदगी जीना भूल जाती है। बेटी को जिंदा रखना और उसे खूश रहना ही अब उसके जीवन का मकसद बन जाता है।
जायरा वसीम का बिंदास अंदाज
यह गंभीर किस्म की ट्रेजडी की कहानी बोझिल नहीं होती है इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है कहानी को कहने के अंदाज ने। आयशा चौधरी की भूमिका निभा रही जायरा वसीम अपनी दुखद कहानी को इतने हल्के फूल्के अंदाज में पेश करती है कि दर्शक फिल्म को इंजोय भी करते हैं। महज 18 साल की छोटी सी जिंदगी जीने वाली आयशा अपनी दर्दनाक कहानी खुद बताती चलती है। इसमें आयशा के डॉयलॉग सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। आयशा आज के युवाओं की बोली में गंभीर कहानी को भी महज उदासी भरी नहीं रहने देतीं।
आयशा के पिता की भूमिका में फरहान अख्तर ने भी बेहतरीन अभिनय किया है। आयशा का भाई बने लड़के ने भी अच्छा रोल किया है।
गुलजार के गीत भी अच्छे हैं।