(Sirsa News) रानियां। जैन सभा में विराजमान श्रमण संघीय सलाहकार दिनेश मुनि जी महाराज ने कहा कि आज पर्युषण पर्व का प्रथम दिवस है। पर्युषण महापर्व आत्मशुद्धि के पर्व है, अपनी आत्मा के दर्शन के पर्व है। पर्युषण पर्वो के माध्यम से आठ दिन अपने हृदय में अध्यात्म की रेखा खींचना है। अपनी नम्रता के भाव से वज्र जैसे हृदय को पिघलाने का कार्य करना है। दिनेश मुनि जी महाराज रविवार को एसएस जैन सभा में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जैसे धूमिल शीशे अपना प्रतिबिंब साफ नजर नहीं आता उसी प्रकार आत्मा के साथ चिपके विकारों को साफ किए बिना मनुष्य भी अपनी छवि साफ नहीं देख सकता। इसलिए इन पर्वो में आत्मशुद्धि करें और अपने आप को अंदर से निहारें। यह पर्व प्रीति के शोधन का पर्व है। आज के दिन का भव्य जीवों को हमेशा इंतजार रहता है। हमें आज अवसर मिला इसलिए स्वयं को सौभाग्यशाली समझना चाहिए। हमे तप, आराधना और साधना व पुण्य का कार्य लगातार करना चाहिए तभी आत्मा का विकास निरंतर होता रहेगा। उन्होंने कहा कि पर्युषण दो शब्दो से बना है। परि और उसन – परि अर्थात चारो ओर से और उसन का अर्थ है आत्मा में लगे विकारों को दूर करना।
अर्थात अपनी आत्मा में लगे विकारों को दूर करके आत्मा के विकास का कार्य करना चाहिए। हमें अपनी आत्मा से अज्ञान को निकालकर ज्ञान का प्रकाश लाने का कार्य करना है। द्वीपेन्द्र मुनि जी महाराज ने श्री अंतकृत दशांग सूत्र के माध्यम से बताया कि इस सूत्र में आर्य सुर्दमास्वामी द्वारा आर्य जम्बूस्वामी को भगवान महावीर द्वारा आठवें अंग के प्रथम वर्ग के 10 अध्ययन कहे। महाराज जी ने सूत्र के माध्यम से प्रथम वर्ग में दस महापुरूषों के जीवन बारे बताया। उन्होंने बताया कि मुनि गौतमकुमार व मेघकुमार सहित दस महापुरूषों का वर्ण सुनाया। उन्होंने कहा कि गौतमकुमार ने स्कन्धक मुनि की तहर बारह भिक्षु प्रतिमाओं का आराधन करके गुणरत्न तप किया और मुनि स्कंधक की तरह शत्रुंजय पर्वत पर सलेखंना सहित सिद्ध हुए। वहीं पुष्पेन्द्र मुनि जी ने कहा कि महापर्व पर्युषण आत्मशुद्धि, आत्मनिरीक्षण और संयम का यह पावन पर्व हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आए। आइए, इस महापर्व पर हम अपने भीतर की नकारात्मकता को दूर कर, ज्ञान, करुणा, और प्रेम की ज्योति को प्रज्वलित करें। हर जीव के प्रति प्रेम, दया, और सहिष्णुता का भाव रखते हुए, हम अपने जीवन को आध्यात्मिक ऊँचाइयों की ओर ले चलें। पर्युषण महापर्व के इस पावन समय में तप, स्वाध्याय और ध्यान के माध्यम से आत्मशुद्धि का संकल्प लें। इस पर्व की प्रेरणा से हम सभी अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएं और एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान करें। पर्युषण महापर्व हमारे जीवन में नई उमंग, उत्साह और आध्यात्मिक उन्नति का संचार करे।
जैन एकता मंच के जिला महासचिव नरेश जैन ने कहा कि भारतीय संस्कृति में पर्व एवं त्योहारों की एक समृद्ध परंपरा है। पर्युषण इसी परंपरा में जैन धर्म का एक महान पर्व है। पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है- चारों ओर से सिमट कर एक स्थान पर निवास करना या स्वयं में वास करना। पर्युषण पर्व भाद माह में 8 दिन तक मनाया जाता है। यह माह प्राकृतिक सौंदर्य से भरा होता है, जिसमे न केवल जैन, बल्कि जैनेतर लोग भी जप-तप पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। पर्युषण पर्व के दौरान जैन साधना पद्धति को अधिकाधिक जीने का प्रयत्न किया जाता है। क्रोध, अहंकार, नफरत, घृणा आदि कषायों को शांत करके चित्त को निर्मल बनाकर शुभ संकल्पों को जागृत करने का प्रयत्न किया जाता है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग धन व पद के नशे में पर्वो के महत्व को भूल जाते है। हमें पहले स्वंय को जानना है तभी पर्युषण महापर्व सार्थक होगें।