जलियांवाला बाग हत्याकांड से कम नहीं था 8 अगस्त 1935 का सिंघानी गोलीकांड 

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विशेष स्टोरी अमित वालिया द्वारा:
लोहारू: एक ओर जहां भारत की आजादी के लिए आंदोलन बडे जोर शोर से चल रहा था वहीं दूसरी ओर लोहारू रियासत की जनता लोहारू के नवाबी शासन के जुल्मों व अत्याचारों से त्रस्त थी। जब नवाबी शासन के अत्याचार निर्दोष जनता पर असहनीय होने लगे तब क्षेत्र की जनता ने नवाब की किसान विरोधी नीतियों व नवाबी शासन से छुटकारा पाने के लिए विद्रोह का बिगुल फंूक दिया था। उक्त आंदोलन का वर्णन चंद्रभान ओबरा कृत पुस्तक लोहारू बावनी का इतिहास में स्पष्टï रूप से किया गया है। पुस्तक के अनुसार जब 8 अगस्त 1935 को लोहारू रियासत के लोग नवाब की जनविरोधी नीतियों और जोर जुल्म का विरोध करने के लिए गांव सिंघानी में एक सभा के रूप में एकत्रित हुए तथा तत्कालीन नवाब ने सभा में मौजूद लोगों को घेर कर गोलियों की बौछार करवा दी। उक्त घटना में 23 किसानों की तत्काल मौत हो गई थी जबकि सैकड़ों घायल हुए थे जिनमें से अनेकों की बाद में मौत हो गई थी। सिंघानी गांव की घटना ने 13 अप्रैल 1919 की जलियांवाला बाग हत्याकांड की याद ताजा कर दी थी जिसमें अंग्रेजों ने अपनी क्रूरता की इंतहा का परिचय दिया था। नवाबी शासन से छुटकारा पाने के लिए क्षेत्र के किसानों द्वारा किए गए विभिन्न आंदोलनों में सिंघानी कांड की घटना अपना-अलग महत्व रखती है। बताया जाता है कि लोहारू रियासत के तत्कालीन नवाब ने अंग्रेजों के साथ मिलकर क्षेत्र की जनता पर बैल टैक्स, बाट छपाई टैक्स, मलबा टैक्स, बकरी भेड़ टैक्स, चुंगी टैक्स, विवाह टैक्स, ऊंट टैक्स, करेवा टैक्स सहित अनेक प्रकार के अनावश्यक टैक्स लगा रखे थे तथा जिनकी जबरदस्ती वसूली होती थी। किसानों में इसका भारी रोष था। किसानों ने एकजुट होकर विवाह व पशु टैक्स हटाने, लगान की राशि 1909 के समझौते के अनुसार तय करने, बिस्वेदारी के हक फिर से देने, नंबरदार का पद वंश परम्परा के अनुसार तय करने, राज्य की नौकरियों में हिंदुओं का हिस्सा भी हो, लगान वर्ष में केवल दो बार लिया जाए, नवाब का ऋण चुकाने के लिए प्रजा पर भार ना डाला जाए, नवाब स्वयं अपने खर्च कम करे इत्यादि विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया। जिसके लिए गांव चैहड़ कला में 6 अगस्त 1935 को तथा सिंघानी में 8 अगस्त 1935 को पंचायतें करने का निर्णय लिया गया। 6 अगस्त की पंचायत में नवाब ने जहां किसानों की आवाज को दबाने के लिए लाठीचार्ज का सहारा लिया वहीं 8 अगस्त की सिंघानी पंचायत में बंदूक का सहारा लिया तथा सभा के किसानों पर एक कुएं की आड़ लेकर अंधा धूंध गोलियां चलवा दी। यह कुंआ आज भी गांव में विद्यमान है।
इस घटना में सिंघानी के 16, गिगनाऊ के 3, गोठड़ा के 2 तथा पिपली व जींद रियासत के दो किसानों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। घायलों की तो संख्या ही नही थी तथा भिवानी, हिसार व लोहारू के अस्पतालों में घायलों को उपचार के लिए भर्ति करवाया गया था। इस घटना ने राष्टï्रीय स्वतंत्रता संग्राम को नया मोड़ देने तथा नवाबी रियासत की जड़ों को उखाडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश तो 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया किंतु लोहारू रियासत को 23 फरवरी 1948 को नवाबी रियासत से आजादी मिली। सिंघानी गोलीकांड में कुर्बान हुए लोगों की याद में गांव में शहीद स्मारक बनाया गया है जहां प्रतिवर्ष 8 अगस्त को श्रद्धांजलि सभा व रक्तदान शिविर का आयोजन कर विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों द्वारा सामूहिक रूप से एकत्रित होकर गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित की जाती है।