इस्लाम में ‘असहिष्णुता’ और ‘अल्लाहनिंदा’ की जड़ों के संकेत

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Signs of the Roots of 'Intolerance' and 'Allah Blasphemy' in Islam
Signs of the Roots of 'Intolerance' and 'Allah Blasphemy' in Islam

युवराज पोखरना: दुनिया भर के अलग-अलग देशों में और वर्षों में घटित हुई कथित रूप से विवादास्पद, लेकिन अमानवीय और अप्रिय घटनाओं में कुछ तो सामान्य अथवा कॉमन बातें हैं। उदाहरणस्वरूप निर्विवाद रूप से दिलचस्प लेखनकार्य, द सैटेनिक वर्सेज पुस्तक का विरोध, जिसे सलमान रुश्दी की ओर से 1988 में यूनाइटेड किंग्डम में प्रकाशित किया था, 2015 में फ्रांसीसी व्यंग्य साप्ताहिक अखबार चार्ली हेब्दो की ओर से अवांछित और अनुचित ध्यान आकर्षित करने के बाद 2020 में सैमुअल पेटी की नृशंस हत्या; 2021 में पाकिस्तान में श्रीलंकाई नागरिक प्रियंथा कुमार का जला हुआ शरीर; और अब भारत में भाजपा की पूर्व नेता नुपुर शर्मा का प्रकरण जिसने 2022 में एक नयें बखेड़े को जन्म दिया आदि।

अलग से गढ़ी गई दक्षिणपंथियों की विचारधारा

निश्चित रूप से भारत में भाजपा-आरएसएस या कथित रूप से फासीवादी-हिंदुत्व ब्रिगेड या वैश्विक स्तर पर दक्षिणपंथी विचारधाराओं की छवि वैसी नहीं है, जैसी की गढ़ी गयी है। हाल के नूपुर शर्मा वाले जघन्य कांड, जिसमें इस्लामवादियों द्वारा पूरे भारत में विरोध के नाम पर हिंसक आंदोलन और आग्निकांड किए गए, वह इस्लामी कानून या इसके भयानक इतिहास से परिचित किसी भी व्यक्ति के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।

इस्लाम अपने विरोध के बावजूद, अपनी स्थापना के बाद से ही बचता हुआ आगे बढ़ा और फलाफूला है, और इसने दुनिया में भू-राजनीतिक, राजनयिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मंचों पर मनमर्जी से भौंहें उठाकर और हर स्तर पर अपने हिसाब से माहौल बनाकर सबका ध्यान आकर्षण करना जारी रखा है। यह सब इसके असहिष्णु, अस्वीकृत और नरसंहार से भरे हुए भयानक और घृणित अतीत के बावजूद है। जी हां, सदियों से चली आ रही इस असहिष्णुता पर दृष्टि डालने से पता चलता है कि जो चीज आज तक सतत्त रही है, वह है अल्लाहनिन्दा और इसके साथ युगों, कालखंडों और देशों में इस्लाम का साक्षात्कार।

यह कहना है विकिपीडिया

विकिपीडिया के अनुसार, इस्लाम में अल्लाहनिंदा अल्लाह को शामिल करने वाला एक नापाक कथन या कार्य है जो बोलचाल की भाषा में बहुत व्यापक नजर आता है, जिसमें न केवल इस्लामी मान्यताओं का उपहास या निंदा करना शामिल है, बल्कि इस पंथ के किसी भी सिद्धांत पर विवाद करना भी शामिल है। पाकिस्तान, सऊदी अरब और इंडोनेशिया जैसे इस्लामिक देशों में अल्लाहनिंदा के मामले अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने की रणनीति के रूप में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।

जबकि यह पुराने अल्लाहनिंदा वाले कानून आधुनिक इस्लामी देशों को दो व्यापक मार्गों में से एक के माध्यम से विरासत में मिले थे: ईसाई यूरोप में यूरोपीय उपनिवेशवाद के बचे हुए रूप में (जहां उनका इस्तेमाल विरोध को दबाने और चर्च की शक्ति को लागू करने के लिए किया जाता था), उन्हें मुस्लिम-बहुल देशों में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के माध्यम से निर्यात किया गया था या 20 वीं सदी की मुस्लिम दुनिया के अरबीकरण के उत्पादों के रूप में खाड़ी देशों के तरीके से।

ये कहना है सेंटर फॉर सोशल जस्टिस का

सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के अनुसार, पाकिस्तान में कम से कम 1,500 लोगों पर अल्लाहनिंदा का आरोप लगाया गया था और अल्लाहनिंदा के लिए कम से कम 75 लोगों की हत्या कर दी गई थी। अमेरिकी सरकार की एडवाइजरी बॉडी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, पाकिस्तान ने दुनिया के किसी भी देश की तुलना में अल्लाहनिंदा कानूनों का सबसे अधिक इस्तेमाल किया।

पाकिस्तान में हो चुकी हैं कई हिंसक घटनाएं

पाकिस्तान में, अल्लाहनिंदा के दावों के कारण अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा हुई है। हाल के वर्षों में, अल्लाहनिंदा के आरोप में कई लोगों को पीट-पीट कर मार डाला गया है। मानव अधिकार समूहों के अनुसार, पाकिस्तान में मानहानि-विरोधी कानूनों, जिनमें मृत्युदंड का प्रावधान है, का उपयोग अक्सर व्यक्तिगत मुद्दों को निपटाने के लिए किया जाता है। अल्लाहनिंदा को अवैध बनाने वाले 71 देशों में से अधिकांश मुस्लिम बहुल देश हैं।

इन कानूनों को लागू करने की डिग्री के हिसाब से सजा की गंभीरता अलग अलग होती हैं। ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ब्रुनेई, मॉरिटानिया और सऊदी अरब में अल्लाहनिंदा के लिए मौत की सजा दी जाती है। तीन साल की जेल की संभावित सजा के साथ, गैर-मुस्लिम-बहुल देशों में इटली में अल्लाहनिंदा की तरह ही सबसे वीभत्स ‘जिजसनिन्दा’ कानून हैं। दुनिया के 49 मुस्लिम बहुल देशों में से आधे में इस्लाम पन्थत्याग अवैध है। इसका मतलब है कि इस्लाम छोड़ना आदमी को परेशानी में डाल सकता है।

ये मामले भी आ रहे प्रकाश में

उपरोक्त मामलों के अलावा, 2019 में कमलेश तिवारी की हत्या का मामला, जहां उन्हें अल्लाहनिंदा के बयानों के लिए गोली मार दी गई और चाकू मार दिया गया; अहमदाबाद के 27 वर्षीय किशन भरवाड़ का मामला, जिसकी कथित अल्लाहनिंदा वाली सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जबकि वह एक री-पोस्ट था, जैसे इस्लामवादियों के अमानवीय कुकृत्य भी भेड़िये की तरह उन धूर्त लोगों की आंखें न खोल सके जो जीवनभर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करने का दावा करते हैं।

जहां एक हिन्दू नुपुर को भारत में इस्लामवादियों द्वारा अल्लाहनिंदा के आधार पर निशाना बनाया जा रहा है, वहीं दूसरी नूपुर नफरत का शिकार हो गई और बांग्लादेश के फरीदपुर जिले में उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और हत्या कर दी गई। आम लोगों के लिए यह जितना चौंकाने वाला है, उन मोटी चमड़ी वाले मानवाधिकार कार्यकतार्ओं के लिए यह एक और रन-ऑफ-द-मिल अर्थात साधारण मामला हो सकता है, जो दिन रात भारत के दूसरे सबसे बड़े बहुसंख्यक समुदाय के अधिकारों की वकालत करना जारी रखते हैं।

नुपुर साहा को बनाया गया केवल निशाना

इस घिनौने मामले को देखकर आश्चर्य होता है कि क्या नुपुर साहा को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि उसका नाम भारतीय जनता पार्टी की पूर्व नेता और प्रवक्ता नूपुर शर्मा के साथ मिलता था। पश्चिम के देशों के मूल निवासी लोगों की तरह ही भारत में भी हिंदुओं के साथ मुख्य दोष अथवा समस्या यह है कि उनके पास इस्लाम के बारे में ज्ञान की कमी है, जो हमेशा ‘विक्टिम कार्ड’ से आँखों में धूल झोंक देता है। उन्हें इस्लाम की आसमानी किताबों में लिखी बातों की शून्य जानकारी है। यह दावा कि कुरान अपने आप में बहुदेववादियों के लिए घोर नफरत से भरी किताब है, अब निर्विवाद है।

कुरान के अनुसार रेडिकल इस्लाम कुछ भी नहीं

यदि आप कुरान के अनुवादित संस्करण को पढ़ते हैं, तो आप महसूस करेंगे कि रेडिकल इस्लाम जैसी कोई चीज ही नहीं है। हम सभी देखते हैं, चाहे वह गैर-अभ्यास करने वाले और कथित रूप से ‘नास्तिक’ मुसलमानों से लेकर करकर तक का बौद्धिक आवरण हो, सभी एक सुनियोजित योजना में काम करते हैं, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि इस्लाम वैश्विक स्तर पर हर मतपंथ-संघर्ष आधिपत्य के शीर्ष पर क्यों है।

कुरान की आयतें भारत के हिंदुओं की निंदा करती हैं, उनके सम्पूर्ण उन्मूलन का आान करती हैं, हिंदुओं को अब तक का सबसे खराब जीव कहा जाता है (कुरान 98:6) और ‘काफिरों’ को हमेशा के लिए भूनने (मिटाने) की धमकी दी जाती है (कुरान 4:56)। कुरान की आयत (40:62) के अनुसार, अल्लाह के अलावा किसी अन्य देवता की पूजा नहीं की जानी चाहिए। यह काफिरों और बहुदेववादियों (40:70) के सम्पूर्ण विनाश और खात्में का आान करती है; हिंदुओं को शादी करने से मना किया जाता है (2:21)।

नफरत भरी आयतों होता है पालन

ऐसी कई नफरत भरी आयतों का पालन हर जगह के मुसलमानों द्वारा ईमानदारी से किया जाता है और प्रचार भी किया जाता है क्योंकि ये उनके अल्लाह का हुक्म है। इन सभी आयतों और शिक्षाओं का पूरी दुनिया में मुसलमानों द्वारा ईमानदारी से पालन किया जाता है, जब वे खुले तौर पर जिहाद करते हैं। आप उन लोगों से किस तरह के भाईचारे और सेक्युलेरिज्म की उम्मीद करते हैं जो दिन में पांच बार लाउडस्पीकर से ‘ला इल्लाह इल्लल्लाह’ की घोषणा करते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘अल्लाह के अलावा कोई भगवान नहीं है’? डॉ. अम्बेडकर ने एक बार कहा था, इस्लाम का भाईचारा मनुष्य का सार्वभौमिक भाईचारा नहीं है। यह केवल मुसलमानों के लिए मुसलमानों का भाईचारा है। यहाँ एक बिरादरी है, लेकिन इसका लाभ उस बिरादरी के भीतर तक ही सीमित है।

दुनिया देख रही देशव्यापी दंगे

नुपुर शर्मा के टीवी डिबेट स्टेटमेंट के बहाने पिछले कुछ हफ्तों में देशव्यापी दंगे और तोड़फोड़ पूरी दुनिया ने देखे है, जहाँ उन्होंने ‘सहीह अल बुखारी’ जैसी इस्लामिक किताबों के एक बयान का हवाला दिया था। नूपुर शर्मा के पुतले और पोस्टर जलाए गए हैं, कईओं ने उन्हें बलात्कार की धमकी दी है और बहुत तो उन्हें मारने की बात करने की हद तक गए हैं। नूपुर शर्मा के खिलाफ गुस्ताख-ए-रसूल की एक ही सजा सर तन से जुदा जैसे नारे लगाए जा रहे हैं।

भारत में रहने वाले इस्लमावादियों ने ही नहीं बल्कि ईरान, सऊदी अरब, कतर, अफगानिस्तान ने भी बीजेपी के पूर्व प्रवक्ता के बयान की निंदा की है। कुछ देशों में भारतीय उत्पादों का बहिष्कार भी किया जा रहा है। आइए कुछ इस्लामिक किताबों पर नजर मारे और देखें कि वे क्या कहती हैं। सहीह अल-बुखारी कहती है: पैगंबर ने आयशा से शादी की जब वह छह साल की थी और जब वह नौ साल की थी तब उन्होंने अपनी शादी को पूरा कर दिया। (5134; पुस्तक 67, हदीस 70)।

प्रथम दृष्टया में सब निंदनीय

अल्लाह के रसूल ने मुझसे शादी की जब मैं छह साल की थी और जब मैं नौ साल की थी, तब मेरे साथ शादी पूरी (भोग) की और मैं गुड़िया के साथ खेलती थी। (आयशा [आरए], सुनन एन-नासाई 3378 में; खंड 4, किताब 26, हदीस 3380)। जब मैं सात साल की थी तब अल्लाह के रसूल ने मुझसे शादी कर ली। नैरेटर सुमैयन ने कहा, या छह साल। जब मैं नौ साल की थी तब उसने मेरे साथ संभोग किया था। (सुनन अबू दाऊद 3: अध्याय 167, हदीस 2121)।

नुपुर शर्मा ने राष्ट्रीय टीवी पर जो संकेत दिया है, वह देश की आंखे खोलने के लिए है, हालांकि यह स्वर एक वर्ग को परेशान कर सकता है, क्योंकि यह प्रथम दृष्टया निंदनीय जैसा लगता है, लेकिन इसमें इस्लामिक किताबों के साक्ष्यों की पुष्टि मिलती है, जो कदाचित अल्लाहनिंदा से तो बहुत दूर है! इसके लिए हीथ लेजर की एक बड़ी प्रसिद्ध पंक्ति उपयुक्त है, व्हाई सो सीरियस?

उपद्रवी कर रहे पत्थरबाजी का इस्तेमाल

इन दिनों उपद्रव करने के लिए ‘पत्थरबाजी’ सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका है। यह ध्यातब्य है कि यह भी इस्लाम से वैध माना जाता है, जहाँ यह विरोध के एक स्वरुप से कहीं अधिक है। इस दृष्टिकोण से ‘रमी-अल-जमरात’, जिसे ‘स्टोनिंग द डेविल’ या शैतान को पत्थर मारना भी कहा जाता है, पर विचार करना आवश्यक है। शैतान को पत्थर मारना उन मजहबी कृत्यों में से एक है जिसे हज के दौरान किया जाता है और यह यह अनिवार्य है।

पत्थरबाजी का यह कृत्य सऊदी अरब में मक्का की वार्षिक हज यात्रा के एक जरूरी हिस्से के रूप में किया जाता है। इस कृत्य के दौरान, मुस्लिम हजयात्री मक्का के पूर्व में एक शहर मीना में जमरात के नाम से जानी जाने वाली तीन दीवारों पर पत्थर फेंकते हैं। इस्लामिक देशों में जिना (adultery) करने के लिए पुरुषों और महिलाओं को नियमित रूप से पीटा जाता है और पत्थर मार-मारकर मौत के घाट उतारा जाता है।

कुरान चैप्टर 24 (अन-नूर) आयत 2 में लिखा है: जिना करने वाली औरत और जिना करने वाले मर्द इन दोनों में से हर एक को सौ-सौ कोडे मारो और अगर तुम खुदा और रोजे आखिरत पर ईमान रखते हो तो हुक्मे खुदा के नाफिज करने में तुमको उनके बारे में किसी तरह की तरस का लिहाज न होने पाए और उन दोनों की सजा के वक्त मोमिन की एक जमाअत को मौजूद रहना चाहिए।

जैसा कि हमने पहले भी कई मामलों में देखा है कि वे इस्लाम या उनके पैगंबर के खिलाफ बोलने की हिम्मत करने वाले किसी भी व्यक्ति को यातना देने और मारने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हिंदू सदियों से हमेशा ‘निंदा’ के इस खेल में केवल मरता ही रहा है। पत्थरबाजी का यह वर्तमान रुझान अथवा आदत शैतान को पत्थर मारने वाली ‘रमी-अल-जमरात’ से प्रेरित हो सकती है।

हर रोज हो रही देवी-देवताओं पर टिप्पणियां

हम आये दिन किसी न किसी रूप में हिन्दू देवी देवताओं को लेकर अपमानजनक टिप्पणियां जिसे वास्तव में ‘ईशनिंदा’ कहना चाहिए, देखते और सुनते हैं और ऐसा करने वालों के नाम अंसख्य है। उदाहरण के लिए मुनव्वर फारूकी, ऑल्ट न्यूज वाला जुबैर जैसे इस्लामवादी, बॉलीवुड की फिल्में तो पूरी तरह से ऐसे दृश्यों और डायलॉग्स से भरी पड़ी है, बॉलीवुड के अभिनेता और अभिनेत्रियां, निर्देशक भी इस काम में पीछे नहीं हैं और आज के इस सोशल मीडिया के जमाने में नए पैदा हुए तथाकथित स्टैंडअप कॉमेडियन, सोशल मीडिया इन्फुलेंसर आदि।

लेकिन हम हिन्दू इसे (ईशनिंदा) को सामान्य बात या सिर्फ हास्य के लिए सोचकर जाने देते हैं और तमाशा देखते रहते हैं। ऐसे कई उदाहरण और मामले हैं जहां ईशनिंदा के कारण हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंची है, लेकिन उन्हें चुप रहने को कहा गया या वे चुप रहे। क्या अंग्रेजी भाषा का शब्द Blasphemy (अल्लाहनिंदा/जिजसनिंदा/ईशनिंदा) सिर्फ एक तरफा काम करता है? क्या अल्पसंख्यक अधिकारों में Blasphemy पर बहुसंख्यक लोगों की हत्या शामिल है? कथित अल्पसंख्यक समुदाय के लोग कानूनी प्रक्रियाओं से क्यों नहीं गुजर सकते, और उन लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं कर सकते, जिनके बारे में वे सोचते हैं कि उन्होंने Blasphemy (अल्लाहनिंदा/जिजसनिंदा) की है?

या उन्हें लगता है कि शरिया संविधान से ऊपर है? इन सवालों का जवाब देने के लिए, लोगों को यह समझने की जरूरत है कि इस्लाम अपनी स्थापना के समय से ही दूसरों से नफरत करने वाला मजहब रहा है और यह हमेशा ऐसा करता रहेगा। ‘रेडिकल इस्लाम’ जैसी कोई अवधारणा अथवा इस्लाम का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह मजहब अपने आप में पूर्ण रूप से ‘रेडिकलिज्म’ अथवा कट्टरवाद से भरा हुआ है, जो एक शांतिप्रिय समुदाय की आड़ में, भारत सहित पूरी दुनिया के सामने खुद को छद्म ‘विक्टिम’ के रूप में प्रस्तुत करता है।