श्री विष्णु भगवान मंदिर में श्री राम कथा का आयोजन

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Shri Ram Katha organized in Shri Vishnu Bhagwan Temple
Shri Ram Katha organized in Shri Vishnu Bhagwan Temple

नीरज कौशिक, महेंद्रगढ़ :
रेलवे रोड़ स्थित श्री विष्णु भगवान मन्दिर में चल रही नौ दिवसीय संगीतमयी श्री राम कथा के आठवें दिन भरत मिलाप कथा का आयोजन हुआ। कथा व्यास श्रीधाम अयोघ्या से पधारे स्वामी राम सुमिरन दास महाराज, शिवराम पांडे शास्त्री, भजूमन दास, नरेंद्र दास महाराज द्वारा राम और भरत मिलन की कथा सुनायी गयी। कथा वाचक राम सुमिरन दास महाराज ने कहा कि भरत ननिहाल से आकर अपने पिता का अंतिम संस्कार कर अयोध्या से गुरु वशिष्ठ को साथ लेकर तीनों माताओं के साथ वन के लिए प्रस्थान किया। निषादराज से भेंट हुई तब ज्ञात हुआ कि भारद्वाज ऋषि के आश्रम में राम पधारे है। ऐसा जानकर भरत ने मुनि को प्रणाम कर प्रभु श्रीराम का कुशल-छेम पूछा तब पता चला कि प्रभु चित्रकूट स्थित कुटिया में निवास कर रहे हैं। तब भरत चित्रकूट के लिए प्रस्थान हुए।

भरत मिलाप की कथा सुनकर भाव विभोर हुए श्रोता

जब श्रीराम ने भरत को आते देखा तो मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए और उनकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। राम और भरत का मिलन देखकर देवता भी पुष्प वर्षा करने लगे। माता सीता ने अपनी सासू माताओं को प्रणाम कर पिता जनक से मिली। उसके बाद गुरु वशिष्ठ के चरणों की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त किया। उसके बाद भरत पिता के बारे में भ्राता श्री राम से कहते हैं कि अब हमारे बीच पिता श्री नहीं रहे यह शब्द सुनकर श्री राम, सीता और लक्ष्मण व्याकुल हो देख भरत राम को अपने साथ ले जाने के लिए मिन्नतें करते हैं। मंत्री सुमंत और प्रजा गण बार-बार उन्हें अपने साथ जाने के लिए मनाते हैं। मगर श्री राम कहते हैं कि पिता को दिए हुए वचन की मर्यादा नहीं टूटे। रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई। यह कहकर लेने आए सभी लोगों को चुप करा देते हैं मगर भरत मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं। तब राम ने कहा प्रजा हित के लिए तुम जाओ, अयोध्या के प्रजाजनों को देखना है।
साथ में माताओं का भी दायित्व निर्वाह करना है। उधर भरत अयोध्या जाने को तैयार नहीं हो रहे हैं। राम ने बताया भरत पिता के वैकुंठ जाने पर प्रजा की रक्षार्थ आप हमारी चरण पादुकाओं को अयोध्या की राजगद्दी पर स्थापित करें। ऐसा वचन सुन भरत को संतोष हुआ। आगे पादुका सिर पर धारण कर अयोध्या पुनः वापस आ गए और नंदी गांव में कुश का आसन बिछाकर 14 वर्ष अयोध्या के प्रजा की सेवा कर अपनी रामभक्ति का अनूठा प्रदर्शन किया। इसलिए कहा जाता है कि बड़ा भाई हो तो श्रीराम जैसे और छोटा भाई हो तो भरत जैसे। इस दौरान स्वामी राम सुमिरन दास महाराज ने ‘‘परे भूमि नहिं उठत उठाए, बर करि कृपासिंधु उर लाए‘‘ ‘‘भरत जी पृथ्वी पर पड़े हैं और उठाए नहीं उठ रहे हैं‘‘ सुनाकर श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया।

त्याग से ही परिवार व समाज में प्राप्त होता है मान-सम्मान :- शंकर लाल

महाआरती के बाद श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मन्दिर प्रभारी शंकर लाल ने कहा कि त्याग से ही परिवार व समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है। उन्होंने बताया कि मल मास में धार्मिक कथाओं को सुनने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं। महाआरती के बाद श्रद्धालुओं में प्रसाद वितरण किया गया। इस अवसर पर मंदिर कमेटी प्रधान मनोहर लाल झुकिया सहित शहर एवं क्षेत्र के श्रद्धालु उपस्थित रहे और श्री राम कथा का भक्तिमय आनंद लिया श्रीराम कथा सुन भाव विभोर हो गए।

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