Shri Jain Shwetambar Mahasabha Udaipur : प्रभु की पूजा : विघ्नों का नाश, अभ्युदय और अंतिम फल मोक्ष प्रदाता : साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
  • आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचन की धूम जारी

Aaj Samaj (आज समाज), Shri Jain Shwetambar Mahasabha Udaipur, उदयपुर 09 सितम्बर।
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में शनिवार को विविध आयोजन हुए ।

साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने परमात्म भक्ति के विवेचन में पूजा विधि के त्रिक में आज पूजा त्रिक के विषय में बताया कि अंग पूजा यानि कि परमात्मा की प्रतिमा पर जो पूजा की जाती है उसे अंग पूजा कहते है जैसे कि जलपूजा, चन्दनपूजा पुष्प पूजा, वासक्षेप पूजा, आगी विलेपन पूजा, आभूषण पूजा इत्यादि का समावेश अंग पूजा में होता है। यह पूजा विघ्ननाशक कहलाती है।

अनेक विज्ञों की नायक और महाफलक प्रदाता है। अग्रपूजा यानि कि परमात्मा के सम्मुख की जाने वाली पूजा को अग्रपूजा कहते है-जैसे कि धूप पूजा, दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेय पूजा और फल पूजा यह पूजा अभ्युदयकारिणी पूजा कहलाती है। पूजक के जीवन में आने वाले विघ्नों को विनष्ट कर मोक्षमार्ग की साधना में सहायक हो ऐसा भौतिक अभ्युदय इस पूजा द्वारा प्राप्त होता है। भावपूजा यानि कि परमात्मा के सम्मुख की जाने वाली स्तुतिस्तवन स्तोत्र, चैत्यवंदन, गीत-गान-नृत्य आदि भाव पूजा में सम्मिलित है। इस पूजा को निवृत्तिकारिणी पूजा कहलाती है यह इजा मोक्षपद की प्राप्ति कराती है।

यह तीनों पूजाएँ सम्मय दृष्टि आत्मा को एक छत्र पुण्य का प्रभुत्व दिलाने वाली है। इतना ही नहीं अपितु सद्धर्म की प्राप्ति कराने वाली, मिध्यादृष्टि आत्माओं के जीवन में भी किश्तों का नाश करने वाली ये तीनों पूजाएं हैं। पूजा यानि समर्पण जिस व्यक्ति को परमात्मा के प्रति प्रेम हो वह प्रभु की अष्ट प्रकारी पूजा किए बिना रह ही नहीं सकता। “जगत के व्यवहार में भी देखा जाता है- प्रेमी कदापि समर्पण के बिना रह नही सफल । जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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