Aaj Samaj (आज समाज), Shri Jain Shwetambar Mahasabha, उदयपुर 30 सितम्बर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में शनिवार को चातुर्मासिक मांगलिक प्रवचन हुए।
आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचन की धूम जारी
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने कहां कि जिन प्रतिमा के दर्शन के समय भीतर के मन परिणाम एवं अध्यवसाय इतने निर्मल हो जाते है कि वह अध्यवसाय के से प्रभाव जन्म-जन्म के कर्म मल आत्मा पर से दूर हो जाते है। !
आत्मा के शुद्ध अध्यवसायों में इतना जबरदस्त सामथ्र्य है कि कर्म उसके सामने टीक ही नहीं सकते है जिस प्रकार अंधेरे का क्या सामथ्र्य है कि वह सूर्य के किरणों के सामने टिक सके। आगे उन्होंने बताया कि शुभ अध्यवसाय प्रतिमा के आलंबन से सहजतमा उत्पन्न हो जाते हैं। जिन प्रतिमा का स्वरूप ही वीतरागी होता है तथा वह स्वरूप इतना भाववद्र्धक एवं आहलादक होता है कि भवि जीव दर्शन-पूजन करते समय सभी सांसारिक कार्यों को भूल जाता है और उसका मन वीतरागी स्वरूप में लीन बन जाता है। आलंबन के बिना मन को एकाग्र करना बहुत कठिन है। सामने कुछ प्रतीक होता है तब ही मन एकाग्र बनता है और मन की एकाग्रता के बिना धार्मिक जीवन में कोई सफलता नहीं है।
परमात्मा के चरणों की, घूटनों की एवं कलाईयों की पूजा का महत्व भी समझाया गया। परमात्मा के नौ अंग की पूजा के अंतर्गत आज तीन अंगों के पूजा के भावों गया। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।
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