Shri Jain Shwetambar Mahasabha: परमात्मा की पदस्थ अवस्था का चिंतन करें : साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
  •  आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचन की धूम जारी
  •  साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की

Aaj Samaj (आज समाज), Shri Jain Shwetambar Mahasabha, उदयपुर 16 नवम्बर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में गुरुवार को विविधि पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए।

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने परमात्मा की अवस्था त्रिक के विवेचन में बहुत ही विस्तार पूर्वक विवेचन में बताया कि पदस्य अवस्था में परिकर के ऊपरी भाग में चिचित कल्पवृत की पंखुडियाँ और इसी प्रकार अष्ट प्रातिहार्यो के चिस देखकर परमात्मा की पदस्थ अवस्था का विचार करना चाहिए। हे योगीन्वर। आपको केवलज्ञान प्राप्त होते ही इन्द्रादि देव दौड़े-दोड़े चले आते है।

राजत, स्वर्णन मणि रत्नों से युक्त तीन गढ़ वाले समवसरण की रचना करते हैं, ठीक मध्य में अशोक वृक्ष की स्थापना करते है। चारों ओर तीन-तीन छत्र ढलाते है। पुष्पवृष्टि करते हैं। चारों दिशा में सिंहासन की स्थापना करते हैं। इन्द्रध्वज और धर्मचक्र की स्थापना करते हैं। नौ स्वर्ण कमल पर चलते हुए आप समवसरण में पधारते हैं, माल कौश आदि रोगों में देशना देना प्रारंभ करते हैं, देवताओं द्वारा बांसुरियों से पाश्र्व संगीत बजाया जाता है। आपकी देशना का अमृतपान करते हुए हजारों नरनारी का हृदय कमल शुद्ध हो जाता है। आगे उन्होंने बताया कि बीज बुद्धि के स्वामी माने जाने वाले गणधर भगवंतों की आत्माएँ इस देशना से प्रतिबोध प्राप्त कर प्रव्रज्या ग्रहण करती हैं और चिप ही प्राप्त करने के बाद द्वादशांगी की रचना करती है।

गणधरों के मस्तक पर वासनिक्षेप कर आप चतुविध संघ की स्थापना करते हैं। ऐसे अनंत उपकारों की झड़ी बरसाने वाले हे परमात्मा आपके पद कमल में हमारी कोटि कोटि वन्दना । इस प्रकार का चिन्तन- भावना इस अवस्था में करना चाहिए। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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