Shri Jain Shvetambara Mahasabha : कामोत्सर्ग- यानि काया के ममत्व का त्याग : साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा

Aaj Samaj (आज समाज), Shri Jain Shvetambara Mahasabha, उदयपुर 01 अगस्त :
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में मंगलवार को कायोत्सर्ग यानि ध्यान का विवेचन की जानकारी दी । महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।

आयड़ जैन तीर्थ में बह रही है धर्म ज्ञान की गंगा

चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने कायोत्सर्ग याति ध्यान का विवेचन करते हुए कहा कि जिस प्रकार हाथ में रही करवत आते-जाते समय लकड़ी को चिरती है, उसी प्रकार साधक आत्मा कायोत्सर्ग से कर्मों का क्षय करती है। कार्यात्सर्ग अर्थात् काया का त्याग करना। यद्यपि काया का संपूर्ण त्याग तो मृत्यु के समय ही होता है। जबतक जीवन है, तब तक देह और आत्मा का संबंध रहने वाला ही है। वास्तव में कायोत्सर्ग का अर्थ काया का त्याग नहीं, बल्कि काया की ममता का त्याग करना हे। कायोत्सर्ग के द्वारा साधक काया की सभी प्रवृत्तियों के त्याग की प्रतिज्ञा करना चाहता है, परन्तु काया की सभी प्रवृत्तियों का त्याग असंभव है। श्वासोच्छ्वास आदि ऐसी प्रवृत्तियाँ हैं कि जिनका त्याग कायोत्सर्ग में भी संभव नहीं है।

यदि श्वास लेने आदि का सर्वथा त्याग किया जाय तो मृत्यु होने तक की संभावना रहती है और इस कारण अकारण व अयोग्य मृत्यु से लाभ के बदले भारी नुकसान की संभावना रहती है। कायोत्सर्ग, कोई सामान्य सामना नहीं है, यह तो अनादि काल के देहाहयास को तोडऩे की सर्वश्रेष्ठ साधना है। अनादिकाल से देह की मगता इस प्रकार रही हुई है कि उसे तोडऩा बहुत ही कठिन काम है। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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