Shri Jain Shvetambara Mahasabha : जैन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को भावी तीर्थकर माना : साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
  • नन्हे-मुन्ने बच्चों ने कृष्ण भगवान की सजाई झांकी
  • प्रभु वंदना पुस्तक का विमोचन किया
  • साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की

Aaj Samaj (आज समाज), Shri Jain Shvetambara Mahasabha, उदयपुर 07 सितम्बर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में गुरुवार को श्री कृष्ण् जन्माष्टमी के अवसर पर विविध आयोजन हुए । महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सान्निध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।

उसके बाद जन्माष्टमी पर नन्हे-मुन्हे बालक एवं बालिकाएं द्वारा इतिहास के प्रभावशाली व्यक्ति महापुरुषों एवं महासतियों के रूप में पहनावें पहन कर एवं उनके दिव्य जीवनी का संक्षिप्त रूप से परिचय भी दिया। महासभा की ओर से प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय का चयन किया। सभी को पारितोषिक दिया गया। इस दौरान सतीश कुमार-रतन बेन कच्छारा द्वारा प्रभु वंदना पुस्तक का विमोचन किया गया।

चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने बताया कि आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है- श्री कृष्ण को जैन धर्म में त्रेसठ श्लोका पुरुषों में भी स्थान दिया गया है। हिन्दु कथा साहित्य और जैन कथा साहित्य में रामायण और महाभारत का बहुत ही सम्माननीय स्थान है। श्री कृष्ण बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के चचेरे भाई थे। श्री कृष्ण के पिता वासुदेव तथा नेमिनाथ के पिता समुद्र विजय परस्पर भाई माने गए हैं।

जैन धर्म में भगवान श्री कृष्ण को भावी तीर्थकर बारहवें अमम नाथ जी के नाम से माना गया है। नेमिनाथ वैराग्य प्रकृति के थे। श्री कृष्ण के प्रयास से ही नेमिनाथ का विवाह का आयोजन बनाया गया था। बलराम श्री कृष्ण के बड़े भाई थे। श्री कृष्ण को क्षायिक समकित है मोक्षगामी आत्मा है। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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