Shri Jain Shvetambara Mahasabha : परमात्मा की प्रदक्षिणा परमात्म स्वरूप की प्राप्ति करने समान: साध्वी वैराग्यपूर्णाश्री

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा

Aaj Samaj (आज समाज), Shri Jain Shvetambara Mahasabha, उदयपुर 04 सितम्बर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में सोमवार को विविध आयोजन हुए । महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सान्निध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। उसके बाद सभी श्रावक-श्राविकाओं से सामूहिक सामायिक किया।

आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचन की धूम जारी

चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने मंदिर संबंधी के विवेचन में दशत्रिक के अंतर्गत दूसरे नंबर का प्रदक्षिणा त्रिक में बताया कि प्रदक्षिणा परमात्मा की दायी ओर से तथा अपनी बांयी ओर से शुरू होती है और दाहिने हाथ की ओर पूर्ण होती है। इस प्रकार से प्रदक्षिणा करने से प्रभु हमारे दाहिने पामर्थ की ओर रहते है। लोक व्यवहार में उत्तम पदार्थों को दाहिने पक्ष में रखने और दाहिने हाथ में आदान प्रदान करने की रीति सर्वत्र प्रचलित है। हम प्रदक्षिणा क्यों देते है? इन्सान चौबीसों घंटे लगातार सांसारिक पदार्थों के पीछे घूमता है। दिन भर की इस भाग दौड़ के केन्द्र में कोई न कोई पौध्यलिक पदार्थ ही होता है।

पौध्यलिक पदार्थ सुख के साधन जरूर टासिल होते है पर वास्तविक सुख चैन नहीं मिलता। परमात्मा को केन्द्र में रखकर प्रदक्षिणा करने से एक प्रकार का चुंबकीय वर्तुल बन जाता है जो भीतर की कर्म वर्गणाओं को छिन्नभिन्न कर देता है। अपार कर्मों की निर्जरा होती है। तीन प्रदक्षिणा के चार हेतु बनाये गये है। अनादिकाल से चार गति रूप संसार में परिभ्रमण करती आत्मा के भव-भ्रमण को टालने परमात्मा के चारों ओर प्रदक्षिणा दी जाती है। ज्ञान-दर्शन, चारित्ररूपी रत्नत्रय की शाप्ति के लिए भी परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा की जाती है। .

मूल नायक जी के तीनों ओर दीवार में स्थापित मंगल जिन बिम्बों को देखकर हम समवसरण में प्रदक्षिणा कर रहे हैं। ऐसी भावना करनी चाहिए। परमात्मा पप का गूंजन इंलिका भ्रसरी “की भांति मन में हो, ताकि हम भी ऐसा गुंजन करते करते परमात्म स्वरूप की प्राप्ति कर सके। भव-भ्रमण को मिटाने वाली कहने। प्रभु की तीन प्रदक्षिणा करने से 100 वर्ष के उपवास जितना फल प्राप्त होता है। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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