- साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की
Aaj Samaj (आज समाज), Shri Jain Shvetambara Mahasabha, उदयपुर 28 अगस्त।
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में सोमवार को विविध आयोजन हुए ।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने श्रावक जीवन के 36 कर्तव्य में से 18 वें कर्तव्य के विषय में बताया कि श्रावक का 18 वां कर्तव्य है जयणा अर्थात् यतना यानि जीन रक्षा के ध्येय से सावधानी पूर्वक प्रवृत्ति करना।
आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृृंखला जारी
साधु जीवन तो संपूर्ण त्याग प्रधान है। पाप प्रवृत्तियों का संपूर्ण त्याग होता है। गृहस्थ जीवन में पाप के बिना चलता नहीं है, परंतु पाप का भय तो उसे सतत रहना ही चाहिए। पाप की प्रवृत्ति कम से कम करने की कोशिश करना और पाप प्रवृत्ति करते समय भी हृदय में पाप का डंक रखते हुए सावधानी रखना उमी का नाम यतना है। जगत् के जीव मात्र के कल्याण की पवित्र भावना यह तीर्थकर की माता है अर्थात् जिस प्रकार माता पुत्र रत्न को जन्म देती है, उसी प्रकार जब अंतरात्मा में जगत के जीव मात्र के कल्याण की भावना पैदा होती है, तब आत्मा तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जित करती है, और उस कर्म के उदय से आत्मा तीर्थकर बनती है।
इससे यह सिद्ध हुआ कि सेवि जीव करूं शासनरसी” की पवित्र भावना आत्मा को तीर्थंकर बनाती है। साधु की माता पाँच समिति और तीन गुप्ति स्वरुप अष्ट प्रवचन माता है तो श्रावक की माता चलना जमणा है। यतना अर्थात् सावधानी। गृहस्थ को अपने जीवन निर्वाह के लिए जो पाप प्रवृत्ति करनी पड़ती है उनमें जितना शक्य हो हिंसा की प्रवृत्ति से बचने की कोशिश करना। जहाँ जयणा होगी, वहाँ मन के परिणाम कर्कश सर्वात कठोर नहीं होंगे। जमणा धर्म के पालन का पूरा-पूरा ख्याल रखना चाहिए। महासभा अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।
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