Shree Jain Shvetambara Mahasabha सम्यक्तव मोक्ष का सोपान : साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
  • साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की

Aaj Samaj (आज समाज), Shree Jain Shvetambara Mahasabha 16 July, उदयपुर :
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में रविवार को 36 कर्तव्य के प्रवचन माला की श्रेणी में तीसरे कर्तव्य की विवेचना पर आधारित विशेष प्रवचन हुए एवं बच्चों की कक्षाएं लगी।

बच्चों की धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कार की लगी कक्षाएं

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में दोनों साध्वियों के सान्निध्य में बच्चों को जैन धर्म पर आधारित शास्त्र के बारे में जानकारी दी एवं बच्चों को आध्यात्मिक एवं धार्मिक संस्कार लेने के प्रति जोर दिया। इस दौरान बच्चों को पारितोषिक भी वितरित किया गया।

वहीं सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने सम्यक्तव के विषय में बताया कि सम्यग्दृष्टि आत्मा पाप भीरू होती है। उस पाप भीरुता के कारण वह पाप प्रवृत्ति करने से घबराती है। जहाँ तक बन सके वह पाप प्रवृत्ति से बचने की कोशिश करती है, फिर भी कुछ संयोगवश उसे पाप प्रवृत्ति करनी पड़े तो भी उसके हृदय में कठोरता का अभाव होने के कारण पाप कर्म का अल्प बंध होता है।

जीव आदि नौ तत्त्वों के प्रति दृढ श्रद्धा होने के कारण सम्यग दृष्टि आत्मा में पाप के प्रति हेय बुद्धि ही होती है। जिस व्यक्ति के प्रति हृदय में धिक्कार का भाव भरा हुआ हो उस व्यक्ति के साथ प्रेम का व्यवहार कैसे हो सकता है? सम्यग दृष्टि के हृदय में पाप के प्रति विकार भाव होता है, इस धिक्कार भाव के कारण वह पाप से बचने की पूरी-पूरी कोशिश करता है! दुष्कृत गटां सच्चे दिल से- प्रेम रहा करती है। होने से वह अन्य पुण्य आत्माओं के सकता की सम्यग् दृष्टि आत्मा सुकृत का भी भाव से अनुमोदना करती है। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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