दूज की तिथि में वृद्धि के कारण 16 के बजाए 17 दिनों के होंगे श्राद्ध

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सुमन, तोशाम:
इस बार पितृपक्ष यानी श्राद्ध 20 सितंबर से 6 अक्टूबर तक रहेंगे । साथ ही दूज की तिथि में वृद्धि होने के कारण 16 के बजाए 17 दिनों के रहेंगे। दरअसल दूज तिथि 22 सितंबर को पूरे दिन और 23 सितंबर को दूज सुबह 6.54 तक रही रहेगी । ऐसे में 22 को दूज तथा 23 को तीज का श्राद्ध निकाला जा सकेगा।
पंडित श्रीकांत शास्त्री का कहना है कि पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। इस दौरान मांगलिक एवं शुभ कार्य वर्जित रहेंगे। ऐसी मान्यता है कि इस पक्ष में सभी पित्र पृथ्वीलोक में रहने वाले सगे संबंधियों के यहां बिना आह्वान पहुंचते हैं। यहां प्रसाद से तृप्त होकर शुभाशीर्वाद प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि पितृ पक्ष के दौरान पितृ संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है।
शास्त्री ने बताया कि श्राद्धों की कुल संख्या 16 होती है। जिसमे भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि को पहला श्राद्ध होता है और इसी दिन से श्राद्ध पक्ष शुरू माना जाता है। पर इस बार कुछ विशेष कारणों से पितृ पक्ष 17 दिन उपस्थित रहेगा।
श्राद्ध तिथि बार–
पूर्णिमा का श्राद्ध –20 सितम्बर
प्रतिपदा का श्राद्ध – 21 सितम्बर
द्वितीया का श्राद्ध – 22 सितम्बर
तृतीया  का श्राद्ध – 23 सितम्बर
चातुर्थि का श्राद्ध – 24 सितम्बर
पंचमी का श्राद्ध – 25 / 26 सितम्बर
षष्टी (छट) का श्राद्ध – 27 सितम्बर
सप्तमी का श्राद्ध – 28 सितम्बर
अष्टमी का श्राद्ध – 29 सितम्बर
नवमी  का श्राद्ध – 30 सितम्बर
दशमी का श्राद्ध – 1 अक्टूबर
एकादशी का श्राद्ध – 2 अक्टूबर
द्वादशी का श्राद्ध – 3 अक्टूबर
त्रियोदशी का श्राद्ध – 4 अक्टूबर
चतुर्दशी का श्राद्ध – 5अक्टूबर
(पितृविसर्जनी अमावस्या) अमावस्या का श्राद्ध –6 अक्टूबर

पितरों के प्रति आस्था

पंडित श्रीकांत शास्त्री ने बताया कि श्राद्ध अपने पूर्वज या पितरों के प्रति अपनी आस्था को प्रकट करने की परम्परा है। जो पूर्णतः शास्त्रोक्त और गूढ़ महत्व रखने वाली है। वह विशेष समय जब हमारे पूर्वज पितृ रूप में पृथ्वी लोक पर अपने वंशजों के यहाँ आते है, और हमारे द्वारा उनके निमित्त अर्पित किये गए पदार्थों को ग्रहण करके सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं पर यहाँ जो एक बात सबसे महत्वपूर्ण है वह है हमारी पितरों के प्रति श्रद्धा क्योंकि पितृ वास्तव में हमारी श्रद्धा के ही भूखे होते है अतः पूर्ण श्रद्धा रखते हुए अपने पितरों को यह सोलह दिन समर्पित करने चाहिए। उन्होंने बताया कि पितृ पक्ष में तामसिक आहार और विचारों का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सात्विक मनःस्थिति में रहना चाहिए द्य पितृ पक्ष में प्रतिदिन स्नानोपरांत दक्षिण दिशा की और मुख करके पितरों के प्रति जल का अर्घ्य देना चाहिए और पितरों से जीवन के मंगल की प्रार्थना करनी चाहिए पौराणिक और शास्त्रोक्त वर्णन के अनुसार पितृलोक में जल की कमी है जिस कारण पितृ तर्पण मित्त श्राद्ध करता है उसकी श्रद्धा और आस्था भाव से तृप्त होकर पितृ उसे शुभ आशीर्वाद देकर अपने लोक को चले जाते हैं।