आज समाज डिजिटल, अंबाला:
Secrets Hidden In Kailash भगवान शिव पर्वत कैलाश के निवासी हैं, इस पर्वत का रहस्य कैलाश पर समुद्र तल से करीब 22 हजार फुट ऊंचा है इसलिए इसकी परिक्रमा करना शुभ और कल्याणकारी मानी गई है। हिंदू धर्म में इस तीर्थ स्थान को अधिक महत्व दिया जाता है। भगवान शिव के घर कैलाश पर्वत से जुड़े ऐसे कई रहस्य हैं, लेकिन ऋषि-मुनियों के अनुसार उस भोले के रहस्य को भांप पाना किसी साधारण मनुष्य के वश की बात नहीं है।
जिला हरिद्वार उत्तराखंड का वैसे तो दुनियाभर में प्रसिद्ध है, लेकिन यहां से नजदीक ही कनखल, भगवान शिव की ससुराल भी है। सतयुग में कनखल में राजा दक्ष का राज हुआ करता था। यह बात हमें पौराणिक कथाओं से पता चलती है भगवान शिव का घर कैलाश है, तो कनखल ससुराल। भगवान शिव का घर कैलाश है तो कनखल ससुराल। हरिवंश पुराण में भी कनखल को पुण्य स्थान माना गया है तो मेघदूत में कालिदास ने कनखल का उल्लेख मेघ की अलका-यात्रा के प्रसंग में विस्तार से उल्लेख किया है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार प्रजापति दक्ष ने कनखल में ही वह यज्ञ किया था, जिसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था। जब शिव की धर्मपत्नी माता सती ने इसका विरोध किया तो दक्ष ने भगवान शिव के प्रति अपशब्दों का प्रयोग जिसे सती सहन न कर सकीं और उन्होंने यज्ञ कुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी। कनखल में दक्ष का मंदिर व यज्ञ की प्रतिकृति आज भी देखी जा सकती है। कनखल के विशेष आकर्षण प्रजापति मंदिर, सती कुंड एवं दक्ष महादेव मंदिर हैं। jai bhole ji ki
हरिद्वार वह स्थान है जहां अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं, ये बूंदे तब गिरीं थी जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस अमृत कलश को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। पृथ्वी पर चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं और ये स्थान हैं उज्जैन, हरिद्वार, नासिक व प्रयाग (इलाहाबाद) जहां वर्तमान में हर 12 वर्ष के बाद कुम्भ मेला लगता है।
जालंधर बहकावे में युद्ध करने शिव के पास गया, लेकिन विपरीत भाव आते ही उसका सर्वनाश का कारण गया। प्रतापी जालंधर के साथ यही हुआ। वह नारद के बहकावे में गया और पार्वती को साधरण स्त्री मानकर शिव से युद्ध करने पहुंच गया, जो उसके विनाश का कारण बन गया। उन्होंने बताया कि एक दिन नारद जी घूमते हुए जालंधर के राज्य में पहुंच गए। सूचना मिलने पर जालंधर ने उनका भव्य स्वागत किया और अशासन देकर बैठाया। आवभगत तथा जालंधर का ऐश्वर्य देखकर नारद प्रसन्न होकर उसकी प्रशंसा करने लगे। चलते-चलते उन्होंने कहा कि सब कुछ ठीक है, लेकिन जालंधर तुम्हारे पास स्त्री की कमी है। उसके पूरा होते ही तुम अधिक एश्वर्यशाली हो जाओगे।
जालंधर ने स्त्री के बारे में पूछा तो नारद ने माता पार्वती का नाम बता दिया। कामांध जालंधर ने राहू को दूत बनाकर शिव के पास भेज दिया। राहू ने शिव से कहा कि वह तत्काल पार्वती को जालंधर के हाथों समर्पित कर दें। यह सुनकर क्रोधित हुए भोलेनाथ ने राहू को आसमान में उड़ा दिया। इसका समाचार मिलने के बाद जालंधर युद्ध के लिए शिव के समक्ष डटा। शिव मगन होकर नृत्य करने लगते हैं। जालंधर शिव का छद्म रूप बनाकर कैलाश पहुंच गया, परंतु माता पार्वती उसको पहचान कर अंतर्ध्यान हो गईं। उन्होंने विष्णु की स्तुति की।
जालंधर ने खुद बताया मृत्यु का रास्ता Shivratri: Secrets Hidden In Kailash
प्रकट होकर विष्णु ने सारा वृतांत सुनने के बाद कहा कि जालंधर ने स्वयं ही अपनी मृत्यु का रास्ता बना दिया है। इधर वृंदा ने स्वप्न में देखा कि उसका पति जालंधर शरीर पर तेल मल भैंसे पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर चला जा रहा है। घबराई हुई वृंदा पति को खोजते हुए जंगल में पहुंच जाती है, जहां पर उसकी मुलाकात संन्यासी के वेष धरे विष्णु से होती है। वह जालंधर का कुशलक्षेम पूछती है। संन्यासी साथ लिए बंदर को भेजकर जालंधर का सिर धड़ अलग मंगवा देते हैं। ऐसा देखकर वृंदा विलाप करने लगती है। वृंदा द्वारा बार-बार आग्रह करने पर संन्यासी ने जालंधर को जिंदा कर दिया।
ये है शिव-गंगा की कथा Secrets Hidden In Kailash
शिव पुराण में गंगा-शिव का गहरा रिश्ता बताया गया है गंगा शिवजी की जटाओं से निकलती है। हिमालय में एक कहावत है कि हर पर्वत शिखर खुद शिव हैं। यही कारण है कि पहाड़ शिव की तरह हैं और नीचे की ओर बहती धाराएं जटाएं हैं, वे गंगा नदी बन गई जो आकाश से उतरी है। यह सच है क्योंकि बर्फ आकाश से गिरती है।
यह अनुभव किया जाता है कि गंगाजल के सिर्फ घूँट पीने से ही 48 घंटों से थकान की थकान दूर हो जाती है। हिमालय इस जल को गुणकारी बनाता है। jai bhole ji ki
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