Trending

Sharad Purnima 2024 : आध्यात्म जगत के राजहंस आचार्यश्री विद्यासागर महाराज

Sharad Purnima 2024 | प्रो. श्याम सुंदर भाटिया | बाईस बरस की उम्र में संन्यास लेकर दुनिया को सत्य-अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की एक झलक पाने लाखों लोग मीलों पैदल दौड़ते रहे हैं।

Prof. Shyam Sunder Bhatia

आचार्य श्रेष्ठ के प्रवचनों में धार्मिक व्याख्यान कम और ऐसे सूत्र ज्यादा होते, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को सफल बना सकते हैं। कर्नाटक में जन्मे वह अकेले ऐसे संत थे, जिनके जीवंत रहते हुए उन पर अब तक 60 से अधिक पीएचडी हो चुकी हैं।

हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला, कन्नड़, मराठी, प्राकृत, अपभ्रंश सरीखी भाषाओं के जानकार विद्यासागरजी का बचपन भी आम बच्चों की तरह बीता। गिल्ली-डंडा, शतरंज आदि खेलना, चित्रकारी स्वीमिंग आदि का इन्हें भी बहुत शौक रहा, लेकिन जैसे-जैसे बड़े हुए आचार्य श्रेष्ठ का आध्यात्म की ओर रुझान बढ़ता गया।

आचार्य श्रेष्ठ का बाल्यकाल का नाम विद्याधर था। कर्नाटक के बेलगांव के ग्राम सदलगा में 10 अक्टूबर, 1946 को शरद पूर्णिमा को श्रेष्ठी श्री मल्लप्पा अष्टगे और श्रीमती अष्टगे के घर जन्मे आचार्यश्री ने कन्नड़ के माध्यम से हाई स्कूल तक शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वह वैराग्य की दिशा में आगे बढ़े और 30 जून, 1968 को मुनि दीक्षा ली।

आचार्य का पद उन्हें 22 नवंबर, 1972 को मिला। आचार्य श्रेष्ठ की ज्ञान गंगा के सम्मुख करोड़ों-करोड़ लोग नतमस्तक रहे हैं। इनमें तमाम हस्तियां भी शामिल हैं। 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, 2016 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, 2018 में अमेरिकी राजदूत श्री केनेथ जस्टर, फ्रांसीसी राजनयिक श्री अलेक्जेंड्रे जिग्लर, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति सुरेश जैन और जीवीसी मनीष जैन भी उनका आशीर्वाद प्राप्त कर चुके हैं।

आचार्यश्री 28 जुलाई, 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के विशेष आमंत्रण पर मध्य प्रदेश विधानसभा में प्रवचन कर चुके थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने आचार्यश्री को राज्य अतिथि का दर्जा दे रखा था।

20वीं-21वीं शताब्दी के साहित्य जगत में एक नए उदीयमान नक्षत्र के रुप में जाने-पहचाने जाने वाले शब्दों के शिल्पकार, अपराजेय साधक, तपस्या की कसौटी, आदर्श योगी, ध्यान ध्याता-ध्येय के पर्याय, कुशल काव्य शिल्पी, प्रवचन प्रभाकर, अनुपम मेधावी, नवनवोन्मेषी प्रतिभा के धनी, सिद्धांतागम के पारगामी, वाग्मी, ज्ञानसागर के विद्याहंस, प्रभु महावीर के प्रतिबिंब, महाकवि, दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागरजी की आध्यात्मिक छवि के कालजयी दर्शन आनंद से भर देते थे।

सम्प्रदाय मुक्त भक्त हो या दर्शक, पाठक हो या विचारक, अबाल-वृद्ध, नर-नारी उनके बहुमुखी चुम्बकीय व्यक्तित्व-कृतित्व को आदर्श मानकर उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारकर अपने आपको धन्य मानते रहे हैं। आपने राष्ट्रभाषा हिन्दी में प्रेरणादायक युगप्रवर्तक महाकाव्य ‘मूकमाटी’ का सर्जन कर साहित्य जगत में चमत्कार कर दिया। इसे साहित्यकार ‘फ्यूचर पोयट्री’ एवं श्रेष्ठ दिग्दर्शक के रूप में मानते हैं।

विद्वानों का मानना है कि भवानी प्रसाद मिश्र को सपाट बयानी, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का शब्द विन्यास, महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की छान्दसिक छटा, छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ सुमित्रानंदन पन्त का प्रकृति व्यवहार, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता महादेवी वर्मा की मसृष्ण गीतात्मकता, बाबा नागार्जुन का लोक स्पन्दन, केदारनाथ अग्रवाल की बतकही वृत्ति, मुक्तिबोध की फैंटेसी संरचना और धूमिल की तुक संगति आधुनिक काव्य में एक साथ देखनी हो तो वह ’मूकमाटी’ में देखी जा सकती है।

आचार्य श्रेष्ठ का मातृभाषा प्रेम, देशभक्ति, हिंदी के प्रति अगाध आस्था जगजाहिर रहा है। वह हमेशा गर्व से कहते थे- हिंदी में लिखो, हिंदी बोलो, इंडिया नहीं, भारत बोलो, शिक्षा के साथ संस्कार पाओ, हथकरघा के वस्त्र अपनाओ, स्वदेशी पहनो, स्वावलंबन लाओ, भारतीय संस्कृति बचाओ। वह युवाओं को अपने आशीर्वचन में अक्सर कहते थे, उन्हें अंग्रेजी मिटानी नहीं है बल्कि अंग्रेजी को हटाना है, क्योंकि इसके पीछे बहुत से कारण हैं।

विश्व के कई देशों में अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाती है। वे देश विकास की बुलंदियों पर हैं। फिर हमारा देश हिंदी को अपनाने में पीछे क्यों है? सर्वाेच्च और उच्च न्यायालयों में करोड़ों वाद लंबित है। इसके मूल में भी कहीं न कहीं भाषा ही है। अपनी भाषा राष्ट्र भाषा से ही देश का विकास, जन-जन से जुड़ाव और ज्ञान का प्रकाश फैलाना संभव है। व्यापार की भाषा, बोलचाल की भाषा, प्रशासनिक भाषा, राष्ट्र भाषा या प्रादेशिक भाषा होनी चाहिए।

आचार्यश्री मानते थे कुछ लोगों को लगता है अंग्रेजी का विरोध होने से हम बाकि देशों की भाषा से कट जाएंगे। अंग्रेजी के बिना तो कुछ भी नहीं है, यह केवल भ्रम है। आचार्य श्रेष्ठ युवाओं को नामचीन जर्नलिस्ट डॉ. वेद प्रताप वैदिक की पुस्तक- अंग्रेजी हटाओ क्यों और कैसे? को पढ़ने की सलाह दी थी, चूंकि उन्होंने भी इस पुस्तक का अध्ययन किया था। यह ही नहीं, डॉ. वैदिक रामटेक हो या नागपुर, वह समय-समय पर जैन संत शिरोमणि के दर्शनार्थ आते-जाते रहते थे।

आचार्य श्रेष्ठ मानते रहे हैं, वर्तमान शिक्षा नीति अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। शिक्षा धन से जुड़ गई है। आज की शिक्षा के साथ-साथ अनुभव नहीं है। डिग्री तो मिल जाती है, लेकिन सारी पढ़ाई-लिखाई करने के बाद भी नौकरी नहीं मिलती है। यह सब हमारे देश में पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव है।

आज इतिहास को स्कूलों में लीपा-पोती करके पढ़ाया जाता है, हमारा पुराना इतिहास उठा कर देखो। आचार्यश्री ने कहा था, मैं भाषा के रूप में अंग्रेजी का विरोध नहीं करता हूं लेकिन अंग्रेजी भाषा को विश्व की अन्य भाषाओं के साथ ऐच्छिक रखना चाहिए। शिक्षा का माध्यम मातृभाषाएं ही हों।

अंग्रेजों ने भारत की परंपरा के साथ चालाकी करके ‘भारत’ को ‘इंडिया’ बना दिया है। भारत के साथ हमारी संस्कृति और इतिहास जुड़ा है, लेकिन इंडिया ने भारत की भारतीयता, जीवन पद्धति, नैतिकता, रहन-सहन और खान-पीन सब कुछ छीन लिया है।

आचार्य शिरोमणि ने यह सलाह भी दी थी, शिक्षा में शोधार्थी की रुचि, किसमें है, इसकी स्वतंत्रता होनी चाहिए। आज मार्गदर्शक के अनुसार शोधार्थी शोधकर्ता हैं। इससे मौलिकता नहीं उभर पा रही है। शिक्षा रोजगार पैदा करने वाली हो, बेरोजगारी बढ़ाने वाली नहीं हो, शिक्षा कोरी किताब नहीं हो।

नई शिक्षा नीति-एनईपी-2020 में मातृभाषा/क्षेत्रीय भाषा की खुशबू, व्यावसायिक शिक्षा, अंग्रेजी भाषा को वैकल्पिक भाषा, शिक्षा रोजगारपरक होने की तमाम खूबियों में आचार्यश्री की दूरदृष्टि सामाहित है। इसके पीछे बड़ा दिलचस्प और प्रेरणादायी किस्सा है।

पदम विभूषण, इसरो के पूर्व अध्यक्ष एवं एनईपी कमेटी के चेयरमैन डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन नई शिक्षा नीति के मसौदे के सिलसिले में राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से मिले तो उन्होंने चेयरमैन डॉ. कस्तूरीरंगन को सलाह दी थी कि उन्हें एक बार आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से जरुर मिलना चाहिए और उनकी बेशकीमती राय जाननी चाहिए।

राष्ट्रपति की नेक सलाह पर चेयरमैन डॉ. कस्तूरीरंगन अपनी कमेटी के और सदस्यों-प्रो.टीवी कट्टीमनी, डॉ. विनयचन्द्र बीके, डॉ. पीके जैन इत्यादि के संग 21 दिसम्बर, 2017 को दर्शनार्थ और चर्चार्थ छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में विराजित आचार्यश्री से मिले थे।

करीब 53 मिनट के इस बहुमूल्य संवाद और आशीर्वचन की झलक नई शिक्षा नीति में साफ-साफ दिखाई देती है। गुरु संकेतों को बिल्कुल स्पष्ट समझा और पढ़ा जा सकता है। नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट दस्तावेज के पेज नं0-455 पर इसका स्पष्ट उल्लेख भी है।

आचार्य श्रेष्ठ से पहले भारत रत्न एवं मशहूर रसायन विज्ञानी सीएनआर राव का भी नाम दर्ज है। आचार्य श्रेष्ठ माता-पिता की द्वितीय संतान होकर भी अद्वितीय थे। संत शिरोमणि के लिए धरती ही बिछौना था। आकाश ही ओढ़ौना था। दिशाएं ही वस्त्र बन गए थे। आध्यात्म जगत के इस राजहंस की स्मृतियों को सादर प्रणाम।

यह भी पढ़ें : India-Canada Conflict : क्या कनाडा में भी तुष्टिकरण का शुक्राणु स्फुटित हो गया है ?

Harpreet Singh Ambala

Recent Posts

Hisar News : हिसार में शराब पीने से रोकने पर पीएसओ ने बेटे-बहू का मरी गोली

दोनों की हालत गंभीर, अस्पताल में कराया गया भर्ती Hisar News (आज समाज) हिसार: जिले…

13 minutes ago

जब Rekha को जबरन 5 मिनट तक चूमा गया, रोते-रोते बिखर गई थीं एक्ट्रेस

Biswajit kissed Rekha: 1969 में, बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री रेखा ने महज 15 साल की…

26 minutes ago

Bangladesh अब भारत से करेगा 130,000 मीट्रिक टन डीजल का आयात

Bangladesh-India Relations, (आज समाज), ढाका: भारत-बांग्लादेश के बीच तल्ख रिश्तों के बीच भले पड़ोसी मुल्क…

36 minutes ago

Sapna Choudhary Dance: सपना चौधरी ने ‘गाडण जोगी’ गाने पर मचाया धमाल, अदाओं से घायल हुई पब्लिक

Sapna Choudhary Dance: हरियाणवी डांसिंग क्वीन सपना चौधरी ने एक बार फिर स्टेज पर ऐसा…

1 hour ago

US President: शपथ ग्रहण से पहले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व मेलानिया ट्रंप ने फोड़े पटाखे

US President-elect Donald Trump, (आज समाज), वाशिंगटन: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी समयानुसार…

1 hour ago

Haryana News: पार्टी की पवित्रता के लिए हरियाणा भाजपा अध्यक्ष को दे देना चाहिए इस्तीफा: अनिल विज

हरियाणा के बिजली मंत्री बोले- मुझे पूरा भरोसा है कि हिमाचल पुलिस की जांच में…

2 hours ago