Shakuntala Railway Track : भारत की आजादी के बाद भी अंग्रेजों के ‘कब्जे’ में है ये रेलवे ट्रैक, हर साल देने पड़ते हैं रॉयल्टी के करोड़ों रुपये

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Shakuntala Railway Track : भारत की आजादी के बाद भी अंग्रेजों के 'कब्जे' में है ये रेलवे ट्रैक, हर साल देने पड़ते हैं रॉयल्टी के करोड़ों रुपये
Shakuntala Railway Track : भारत की आजादी के बाद भी अंग्रेजों के 'कब्जे' में है ये रेलवे ट्रैक, हर साल देने पड़ते हैं रॉयल्टी के करोड़ों रुपये

Shakuntala Railway Track: आज पूरा देश भारत की आजादी का उत्सव मना रहा है, क्योंकि आज के ही दिन यानि 15 अगस्त, 1947 को भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली थी. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि भारत में एक रेलवे ट्रैक ऐसा भी है, जिस पर आज भी भारत का अधिकार नहीं है, बल्कि अंग्रेजों की हुकूमत है, तो क्‍या आप यकीन करेंगे? नहीं करेंगे क्‍योंकि आपका तर्क होगा कि भारत को तो अंग्रेजों से आजाद हुए 75 साल से ज्‍यादा समय बीत चुका है, फिर ये कैसे संभव हो सकता है. लेकिन ये सच है कि गोरों से आजाद होने के बाद भी भारत में एक ऐसा रेलवे ट्रैक है, जिसका स्वामित्व सरकार के पास नहीं है बल्कि ब्रिटेन (Britain) में एक निजी कंपनी के पास है. इस ट्रैक को शकुंतला रेलवे ट्रैक के नाम से जाना जाता है.

कहां है ये अनोखा रेलवे ट्रैक?

शकुंतला रेलवे ट्रैक महाराष्ट्र के अमरावती से मुर्तजापुर तक 190 किलोमीटर तक फैला हुआ है. ये ट्रैक अंग्रेजों के जमाने का है. दरअसल अंग्रेजों के जमाने से ही महाराष्ट्र के अमरावती में कपास की खेती होती थी. उस समय कपास को मुंबई पोर्ट तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजों ने इस ट्रैक को बनवाया था. ब्रिटेन की क्लिक निक्सन एंड कंपनी ने इस रेलवे ट्रैक को बनाने के लिए सेंट्रल प्रोविंस रेलवे कंपनी (CPRC) की स्थापना की. इस कंपनी ने  ट्रैक बिछाने का ये काम साल 1903 में शुरू हुआ और 1916 में रेल लाइन भी पूरा हो गया.

शंकुतला पैसेंजर के नाम पर ट्रैक का नाम

अंग्रेजों के जमाने में बने इस ट्रैक पर शंकुतला पैसेंजर नाम की एक ही ट्रेन चलती थी, जिसके कारण इस ट्रैक का नाम भी शकुंतला रेलवे ट्रैक पड़ गया. शकुंतला पैसेंजर में सिर्फ 5 ट्रेन के डिब्‍बे होते थे और इसे स्‍टीम के इंजन से खींचा जाता था. 1994 के बाद से इस ट्रेन में डीजल इंजन लगा दिया गया और इसमें बोगियों की संख्‍या को भी बढ़ाकर 7 कर दिया गया. अगर आप इस ट्रैक पर जाएंगे तो आज भी आपको यहां सिग्‍नल से लेकर दूसरी तमाम चीजें, सब कुछ अंग्रेजों के जमाने की ही दिखेंगी. शकुंतला पैसेंजर इस ट्रैक पर करीब 6-7 घंटे का सफर पूरा करती है. सफर के दौरान ट्रेन अचलपुर, यवतमाल समेत 17 अलग-अलग स्टेशनों पर रुकती है.

आजादी के बाद हुआ ये समझौता

देश के आजाद होने के बाद भी इस ट्रैक का स्‍वामित्‍व ब्रिटेन की प्राइवेट कंपनी के ही पास है. वहीं कंपनी इस ट्रैक को संचालित करती है. 1947 में जब देश आजाद हुआ तो भारतीय रेलवे ने इस कंपनी के साथ एक समझौता किया, जिसके अंतर्गत हर साल आज भी भारतीय रेलवे की ओर से कंपनी को रॉयल्टी दी जाती है.  रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय रेलवे हर साल 1 करोड़ 20 लाख की रॉयल्टी कंपनी को देता है. हालांकि भारतीय रेलवे ने कई बार इसे खरीदने का प्रस्ताव जरूर रखा है, लेकिन अभी तक इसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया है.

2020 से बंद है शकुंतला पैसेंजर

शकुंतला रेलवे ट्रैक काफी पुराना होने के कारण जर्जर हो गया है. भारत सरकार इस ट्रैक के लिए कंपनी को रॉयल्‍टी जरूर देती है, लेकिन फिर भी पिछले 60 सालों से इस ट्रैक की मरम्‍मत का काम कंपनी की तरफ से नहीं कराया गया. इस कारण शकुंतला पैसेंजर की रफ्तार भी इस ट्रैक पर 20 किमी प्रति घंटे के हिसाब से रहती थी. यही वजह है 2020 से इस ट्रेन का संचालन बंद है. हालांकि इलाके में रहने वाले लोगों की मांग है कि इस ट्रेन को दोबारा से शुरू किया जाए.