2015 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम मामूली सा कम होने का श्रेय भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेने के इच्छुक थे, तभी उन्होंने स्वयं को ‘नसीब वाला ‘ प्रधानमंत्री बताया था। अपना सीना 56 इंच का बताकर भी वे स्वयं को एक बलशाली प्रधानमंत्री साबित करना चाहते थे।
हालांकि प्रधानमंत्री पद पर बैठने वाले के लिए उपरोक्त दोनों ही विशेषण की कोई आवश्यकता नहीं है। न ही अहंकार व आत्ममुग्धता से पूर्ण इस स्तर की शब्दावली का प्रयोग पूर्व के किसी प्रधानमंत्री द्वारा किया गया। परन्तु जब यही खुश नसीब और 56 इंच का सीना रखने वाला प्रधानमंत्री कैमरे के सामने गमगीन,आंसू बहाता हुआ,रुंधे गले से बोलता और दुखी जनता के समक्ष बेबस सा नजर आने लगे फिर तो उसकी खुशनसीबी व सीने की चौड़ाई दोनों पर ही सवाल उठना लाजिमी है।
आज जिस प्रकार सरकार कोरोना महामारी तथा इसके दुष्परिणामों का सामना कर रहे देशवासियों के सामने लाचार नजर आ रही है उससे स्पष्ट है कि सरकार अपनी कथनी को करनी में नहीं बदल सकी। बजाए इसके सरकार को इस समय दुनिया के अनेक देशों की आलोचना का सामना भी सिर्फ इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि यह सरकार वर्तमान संकटकाल में अस्पताल, आॅक्सीजन प्लांट, वैक्सीन, दवा, बेड आदि से ज्यादा महत्व सेंट्रल विस्टा योजना तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार की छवि निर्माण करने पर दे रही है। परन्तु  सूचना प्रौद्योगिकी के वर्तमान आधुनिक दौर में देश की वास्तविकता किसी से छुपी नहीं है।
भले ही प्रधानमंत्री ने अपने अब तक के पूरे शासनकाल में एक बार भी प्रेस कॉन्फ्रÞेंस न बुलाकर पत्रकारों के तीखे सवालों से बचने की कोशिश क्यों न की हो परन्तु गोदी मीडिया के अलावा देश व दुनिया के निष्पक्ष मीडिया ने आक्सीजन के लिए मची हाहाकार से लेकर अस्पतालों में मरीजों तथा शमशान घाट में शवों की लंबी कतारों व देश की विभिन्न नदियों में बहने वाली हजारों लाशों के चित्र विश्व के सामने ला दिए हैं। यही दृश्य देखकर ही दुनिया के अनेक देशों ने अविलंब ही भारत की तरफ मदद के हाथ बढ़ाए। सरकार की नाकामियों की पोल खोलने का इससे बड़ा सुबूत और हो भी क्या सकता है कि जो भारतवर्ष दूसरे देशों की सहायता के लिए आगे खड़ा रहता था वहीँ भारत अपनी जरुरत की आॅक्सीजन व स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए दुनिया को बेबस दिखाई दिया। सरकार ने गत वर्ष 25 मार्च से 14 अप्रैल के मध्य 21 दिन का लॉक डाउन घोषित कर महाभारत की तरह कोरोना पर काबू पाने का संकल्प जताया था और पूरे देश के रेल,बसों व विमानों सहित यातायात के सभी साधन अचानक ठप्प कर दिए थे,उद्योग व्यापार सब बंद हो चुका था उस समय सरकार के गलत फैसलों के परिणाम स्वरूप उपजी बेबसी व लाचारी के चलते सड़कों पर आ चुके व अपने घर गांव का हजारों किलोमीटर का मार्ग पैदल तय करते करोड़ों कामगारों को दो वक़्त की रोटी देने का कोई साधन या तरीका सरकार के पास नहीं था।
जिस तरह आज शमशान से लेकर नदियों के किनारे तक हजारों शवों की अकल्पनीय व वर्णित न कर पाने वाली दुर्दशा देखकर मानव ह्रदय रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति गमगीन है उसी तरह लाखों लोगों को सैकड़ों पर हजारों किलोमीटर सपरिवार पैदल चलता देख,व रस्ते में उनके साथ आने वाले संकट व उनकी लाचारी व मजबूरी को देख उस समय भी प्रत्येक भारत वासी आंसू बहा रहा था। और तब भी और आज भी भारत का वही मानव ह्रदय रखने वाला वर्ग स्वेच्छा से अपना कर्तव्य समझते हुए प्रभावित व पीड़ित व्यक्ति के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। भूखों को खाना खिलने वाला,मरीजों को आॅक्सीजन उपलब्ध करने वाला,यहां तक कि कई शहरों में आॅक्सीजन का लंगर लगाने वाला यह वर्ग धर्म जाति के बंधनों से ऊपर उठकर मानव सेवा के लिए गत वर्ष भी समर्पित था और आज भी समर्पित है।
दिल्ली, चंडीगढ़ व पंजाब में तो सिख समाज के लोगों ने कई नि:शुल्क कोविड हॉस्पिटल भी खोल दिए हैं जहां प्रत्येक दवाइयां व सुविधाएं मुफ़्त हैं। जाहिर है सुचारु स्वास्थ्य सुविधाएं जनता को मुहैय्या कराना सरकार का दायित्व है। और जब वह इसमें असफल है तभी निजी स्तर पर समाजसेवियों व समाजसेवी संगठनों व अनेक धार्मिक संस्थाओं को आगे आना पड़ रहा है। यदि सरकार सक्षम होती तो इन संस्थाओं को आगे आने की जरुरत ही क्या थी? गोया मानवता की भलाई में लगा यह वर्ग सरकार का सहयोग ही कर रहा है। ऐसे में मानवता,न्याय व नैतिकता तो यही कहती है कि सरकार ऐसे लोगों की सहायता करे, उन्हें संरक्षण दे और अगर हीन भावना से ग्रस्त सरकार यह नहीं भी कर सकती तो कम से कम इन्हें हतोत्साहित तो न करे, इनके जनहितकारी कामों में अवरोध तो न खड़ा करे, इन्हें कटघरे में तो न खड़ा करे। परन्तु सत्ता का जनसेवा को हतोत्साहित करने का दुर्भावनापूर्ण कृत्य गत वर्ष भी देखा गया था और इस बार भी देखा जा रहा है। मरीजों को आक्सीजन की घोर किल्लत के मध्य उनकी सेवा में जी जान से जुटे युवक कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी तथा आम आदमी पार्टी के नेता दिलीप पांडेय से पिछले दिनों दिल्ली पुलिस ने पूछताछ की। कई भाजपा नेताओं व कार्यकतार्ओं सहित न्यूजीलैंड व फिलीपींस के दूतावासों में कोविड ग्रस्त  लोगों को भी इन्हीं समाजसेवियों ने ही आॅक्सीजन उपलब्ध कराई।
यहां तक कि दिल्ली के कांग्रेस नेता मुकेश शर्मा ने केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते तक को आॅक्सीजन उपलब्ध कराई । लेकिन दिल्ली पुलिस को इन्हीं समाज सेवकों  पर संदेह है कि कहीं ‘सेवा’ के नाम पर ये लोग आॅक्सीजन व  दवाओं की कालाबाजारी करने में तो संलिप्त नहीं। कई जगह इसी सेवा मिशन में लगी एम्बुलेंस व आॅटो रिक्शा को भी पुलिस हिरासत में लिए जाने व कुछ पर मुकद्दमा दर्ज किये जाने के भी समाचार हैं । यही स्थिति गत  वर्ष उस समय भी देखी गयी थी जब उत्तर प्रदेश में पैदल जा रहे लाखों श्रमिकों की दुर्गति देख प्रियंका गाँधी ने उन्हें ले जाने के लिए सैकड़ों बसों का प्रबंध किया था। उस समय भी उत्तर प्रदेश सरकार उन सभी बसों को नि:शुल्क डीजल मुहैय्या कराना तो दूर उल्टे उन बसों के कागजात का निरीक्षण करने व उनके चालान करने पर उतारू हो गयी थी।
(लेखक स्तंभकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)