Sangrur News ( आज समाज)संगरूर/सुनाम ऊधम सिंह वाला : रोटरी क्लब सुनाम समय-समय पर कई सामाजिक कार्य करता रहता है, लेकिन इस बार भारत की शान, पंजाब का मान और सुनाम की पहचान शहीद-ए-आजम सरदार ऊधम सिंह के 84वें शहीदी दिवस के मौके पर क्लब द्वारा शहीद ऊधम सिंह द्वारा देश की आज़ादी के लिए दी गई शहादत, उनके जीवन और उनकी महान शख्सियत के हर पहलू को लोगों के सामने उजागर करने के लिए सुनाम में पहली बार शहीद को याद करते हुए उच्च स्तरीय सेमिनार आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घनश्याम कांसल, प्रधान देविंदरपाल सिंह रिंपी, सचिव हनीश सिंगला और कोषाध्यक्ष राजन सिंगला की अगुवाई में इस सेमिनार में प्रसिद्ध विद्वान डॉ. सिकंदर सिंह, डॉ. हरनेक सिंह ढोट सेवा निवृत्त सहायक निदेशक भाषा विभाग पटियाला, प्रसिद्ध शायर संधे सुखबीर और ज्ञानी जंगीर सिंह रतन द्वारा शहीद ऊधम सिंह के जीवन और कुर्बानी के विभिन्न पहलुओं पर विद्वता और भावनात्मक ढंग से प्रकाश डालकर शहीद ऊधम सिंह के बारे में कई छुपे और अनजाने पहलुओं को उजागर किया गया। सेमिनार की शुरुआत राष्ट्रगान के साथ हुई। इसके बाद प्रधान देविंदरपाल सिंह रिंपी ने स्वागत भाषण दिया। इस मौके पर सभा में उपस्थित सभी वक्ताओं का क्लब सदस्यों द्वारा औपचारिक परिचय कराया गया।
सेमिनार की शुरुआत वक्ता के रूप में ज्ञानी जंगीर सिंह रतन ने की और कहा कि कुछ लेखों के अनुसार सुनाम शहर तीन हजार साल पुराना है, लेकिन सुनाम को विश्व स्तर पर प्रसिद्धि 13 मार्च 1940, बुधवार को मिली, जिस दिन लंदन के कैक्सटन हॉल में सुनाम के निवासी सरदार ऊधम सिंह ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड के मुख्य दोषी पूर्व गवर्नर माइकल ओ’डायर को गोली मार दी। उनके इस क्रांतिकारी कृत्य ने सुनाम को विश्व स्तर पर प्रसिद्ध कर दिया। डॉ. हरनेक सिंह ढोट सेवा निवृत्त सहायक निदेशक भाषा विभाग पटियाला ने विद्वता के साथ सरदार ऊधम सिंह की वीरता का जिक्र करते हुए कहा कि अनख और गैरत का अनोखा इतिहास रचने वाले शहीद ऊधम सिंह आज़ादी की कसम खाकर जन्मे थे। गुलामी में उनका दम घुटता था।
अनख के साथ जीना, मर्दानगी के साथ जीना, संघर्ष के साथ जीना, समय का सरदार बनकर जीना उनके खून में था। डॉ. सिकंदर सिंह, जिन्होंने शहीद ऊधम सिंह पर लंबे समय से शोध कार्य शुरू किया हुआ है, ने विद्वता के साथ शहीद ऊधम सिंह के बारे में उन तथ्यों को उजागर किया जिनके बारे में आम लोगों को जानकारी नहीं थी और उन्होंने शहीद के बारे में लिखी गई किताबों और अन्य सन्दर्भों के माध्यम से शहीद के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया।