गुरदासपुर : प्रिंसिपल को देख पहली बार पांचवीं कक्षा की छात्रा ने किया नशा, ससुराल छोड़ने के बाद दस साल पीती रही हेरोइन 

0
344
अब नशे से तौबा करने के लिए जिला रेडक्रॉस नशा छुड़ाओ केंद्र में हुई दाखिल
गगन बावा, गुरदासपुर :
बच्चों पर अपने परिजनों और स्कूल टीचर्स का कितना प्रभाव पड़ता है, उसका उदाहरण जिला रेडक्रॉस नशा छुड़ाओ केंद्र में नशा छोड़ने के लिए पहुंची 23 वर्षीय युवती की कहानी से मिलता है। पांचवीं कक्षा में पढ़ते समय प्रिंसिपल को नशा करते देख उसने भी नशा करना शुरू कर दिया। वह बताती है कि उनके स्कूल का प्रिंसिपल स्मैक पीने का आदी था। वह और उसके दोस्त रोजाना उसे नशा करते देखते थे। एक दिन उसने दोस्तों के साथ प्रिंसिपल के ऑफिस से स्मैक की पुड़िया चुरा ली। इसके बाद वे सभी एक दोस्त के घर पहुंचे और वहां पर स्मैक का नशा किया और अपने-अपने घरों को लौट गए। स्मैक का नशा इतना ज्यादा था कि वह सारा दिन बेहोश रही। उसके परिजन उसे इलाज के लिए डॉक्टर के पास लेकर गए तो उसने उन्हें बताया कि आपकी बेटी ने नशा कर रखा है। इसके बाद परिजनों ने उसे बुरी तरह से पीटा।
नौ साल में पिता का साथ छूटा :
उसने बताया कि वह करीब नौ साल की थी, जब उसके पिता की मौत हो गई। पिता की मौत के कुछ समय बाद उसकी मां ने किसी और से शादी कर ली। मां ने दूसरी शादी करने के बाद उसे और भाई-बहन को हॉस्टल में डाल दिया। वहां करीब छह माह रहने के बाद मां सभी को वापिस ले आई। 12 साल की उम्र में मां ने उसे पचास हजार रुपए में एक परिवार को बेच दिया, जो उससे घरेलू काम कराते थे। इस दौरान उसके साथ मारपीट भी की जाती थी। करीब तीन माह तक परिवार का जुल्म सहने के बाद वह वहां से भागकर घर आ गई। कुछ समय बाद उसकी मां से उसकी शादी दो बच्चों के पिता के साथ कर डाली। वहां पर ससुराल के लोग उसपर शारीरिक अत्याचार करते थे, जिसके चलते वह अपनी बहन के पास अमृतसर चली गई।
साथ काम करने वाले ने लगाया नशे पर :
वहां आजीविका चलाने के लिए उसने सैलून पर नौकरी करना शुरू कर दिया। इसके अलावा वह रात के समय एक होटल में रिसेप्शनिस्ट का काम करने लगी। सैलून पर काम करने वाली एक लड़की हेरोइन का नशा करती थी। एकदिन उसने उसे भी हेरोइन का नशा करने के लिए दिया। बस फिर क्या था, यह उसकी रुटीन में शामिल हो गया। पहले तो उक्त लड़की हेरोइन के पैसे नहीं लेती थी, लेकिन बाद में उसने पैसे मांगने शुरू कर दिए। उसे दोनों जगह नौकरी कर 15 हजार रुपए मिलते थे, जो वह नशे पर उड़ा देती थी। दस साल तक लगातार नशा करने के बाद अब वह आर्थिक तौर पर पूरी तरह से कंगाल हो चुकी है। इसलिए अब वह नशा छोड़ने के लिए सेंटर में दाखिल हुई है।
80 युवतियों का छुड़ाया नशा :
जिला रेडक्रास नशा छुड़ाओ सेंटर के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रोमेश महाजन ने बताया कि उक्त युवती बुरी हालत में उनके पास पहुंची थी। सेंटर में चले लगातार इलाज के बाद अब वह पूरी तरह से नशा छोड़ चुकी है। उसने पिछले पांच दिन से दवा भी नहीं ली है और न ही उसे नशे की कमी ही महसूस हुई है। उन्होंने बताया कि सेंटर में अब तक करीह 80 महिलाओं का नशा छुड़ाया जा चुका है।