श क्ति पूजा के लिए जरूरी है- शक्ति संचय। इसके बिना न तो शक्ति पूजा बन पड़ती है और न ही जीवन में इसके सुफल मिल पाते हैं। जहां शक्ति का संचय होता है, वहीं सुख-सत्कार व शान्ति के पुष्प बरसते हैं। इसके विपरीत जहां शक्ति का अभाव होता है, वहां दु:ख, तिरस्कार व कलह के कांटे ही बिखरे रहते हैं। जो शक्ति का संचय करते हैं, उन्हें ही समर्थ, बलवान, बुद्धिमान व सौभाग्यशाली कहा जाता है। शक्ति संचय की उपेक्षा करने वाले तो असहाय, अशक्त, निर्बल, दुर्बल व दरिद्र कहकर पग-पग पर अपने दुर्भाग्य की यातना सहते हैं। जो शक्ति पूजा के इच्छुक हैं, उन्हें शक्ति संचय के लिए भी कमर कसनी पड़ेगी। उनको अभी और इसी क्षण से मां महाशक्ति की पूजा के लिए पंचोपचार की तैयारी करनी होगी। इन पंचोपचारों के क्रम में पहली है- शारीरिक शक्ति, मानसिक शक्ति, भावनात्मक शक्ति, आर्थिक शक्ति एवं आध्यात्मिक शक्ति। इन पांच शक्तियों का अभाव ही मानव को पीड़ा की प्रताड़ना सहने के लिए विवश करता है। इन्हीं पांच शक्तियों की बर्बादी मनुष्य को पतन के गहरे अंधेरों में धकेलती है। जबकि इन पांचों शक्तियों के संचय से व्यक्ति की प्रसन्नता शतगुणित होती है और सत्कर्मों में इनके सद्व्यय से वह निरन्तर उत्थान के सोपान चढ़ता है।
नवरात्रि के नौ दिन शक्ति पूजा के इसी रहस्य को समझने के दिन हैं। इन नौ दिनों में हमें अपनी संचित शक्ति से मां भगवती की पूजा करनी है। इन नौ दिनों में यूं तो अनगिन रहस्य समाये हैं किन्तु प्रधानतया इन रहस्यों की संख्या नौ ही है, जो गायत्री के महामंत्र के नौ शब्दों 1. तत्, 2. सवितु:, 3. वरेण्यं, 4. भर्गो, 5. देवस्य, 6. धीमहि, 7. धियो, 8.योन: 9. प्रचोदयात् में समाहित हैं। इन्हीं नौ शब्दों की महिमा से भू: भुव: स्व: के रूप में स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण इन तीन शरीरों की सभी शक्तियों का जागरण होता है और इसी के फलस्वरूप ॐकार के परम पद की प्राप्ति होती है। पर ऐसा होता उन्हीं के जीवन में है, जो अपने जीवन के क्षण-क्षण में शक्ति के कण-कण का संचय करते हैं और साथ ही सत्कर्मों के रूप में इसका सद्व्यय करके विश्व-व्यापिनी मां जगदम्बा गायत्री की अर्चना-आराधना करते हैं।
-डॉ. प्रणव पण्ड्या