पिछले कुछ वर्षों से हम सड़क से संसद तक एक नारा पूरे जोश से सुन रहे हैं, ह्यबेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओह्ण। यह नारा भारतीय परिवेश के मूल तत्व से भी जुड़ता है, जहां यत्र नार्यस्तु पूज्यंते का भाव कदम-कदम पर हमें नारी सशक्तीकरण की याद दिलाता है। नारे के स्तर पर भले ही बेटियों को बचाने और उन्हें पढ़ाने की बड़ी-बड़ी बातें की जाती हों, किन्तु उनके सम्मान के स्तर पर यह नारा खरा उतरता नहीं दिखता। बेटियों के अस्तित्व पर सवाल उठाने से लेकर उन पर कटाक्ष करने और उनकी इज्जत की परवाह न करने जैसी बातें अब आम हो गयी हैं। पिछले एक महीने में उत्तराखंड में बेटियों को गर्भ में मार देने, संसद में महिला सांसद के खिलाफ अनर्गल प्रलाप करने और फिर उन्नाव में बलात्कार पीड़िता को ट्रक के पहियों तले रौंदने जैसी कुछ घटनाओं ने एक बार फिर देश को झकझोर दिया है। अब लोग कहने लगे हैं, पहले बेटी बचा लो… फिर पढ़ा लेना।
उत्तर प्रदेश की एक घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। राजधानी लखनऊ से महज पचास किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के एक विधायक इस समय बलात्कार के आरोप में जेल में हैं। जिस युवती ने उन पर बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराने का साहस किया है, रविवार को उक्त युवती की कार को एक ट्रक के पहियों तले रौंद दिया गया। तात्कालिक साक्ष्यों के आधार पर इसे महज दुर्घटना नहीं माना जा सकता। समूचा विपक्ष उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा पर आरोपों का ठीकरा फोड़ रहा है। इन आरोपों के बीच यह सच तो खारिज ही नहीं किया जा सकता कि बलात्कार पीड़ित युवती के चाचा को पुलिस जेल भेज चुकी है और अब परिवार सहित उसकी हत्या की कोशिश की गयी है। इसमें सत्ता पक्ष की संलिप्तता हो या न हो, यह तो जांच का विषय है किन्तु इस मामले का इतिहास अलग ही कहानी कहता है। उक्त युवती ने जिस भाजपा विधायक पर बलात्कार का आरोप लगाया है, वहइस समय जेल में हैं। उसके रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज चुनाव जीतने के बाद जेल में उक्त विधायक से मिलने गए थे। भाजपा ने भी बलात्कार के आरोपी से अपने सांसद के जेल जाकर मिलने पर न तो रोक लगाई, न ही बाद में कोई कार्रवाई की। ऐसे में विधायक समर्थकों के हौसले बुलंद होना स्वाभाविक है। सत्ताधारी पार्टी के कुछ नेताओं के अनर्गल प्रलाप व क्रियाकलाप पूरे नेतृत्व को कठघरे में खड़ा करते हैं और उनके खिलाफ समय रहते कार्रवाई न होने से स्थितियां और गंभीर हो जाती हैं। ऐसे में जब बेटियों के उन्नयन की बात की जाती है तो सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब बेटियां सुरक्षित ही नहीं रहेंगी, तो बचेंगी कैसे और बचेंगी नहीं तो पढ़ेंगी कैसे?
बेटियों के साथ सड़क पर होने वाली घटनाएं ही परेशान करने वाली नहीं हैं। अब तो संसद भी बेटियों-महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रह गयी है। जिस तरह पिछले दिनों लोकसभा में चर्चा के दौरान समाजवादी पार्टी सांसद आजम खान ने अध्यक्ष पीठ पर बैठी सांसद रमा देवी पर टिप्पणी की, उससे संसद तक पहुंचने वाले हमारे प्रतिनिधियों के चारित्रिक चिंतन पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। आजम के मुंह से एक महिला के बारे में उनके मन में चल रही राय निकल गयी, किन्तु ऐसे ही कितने सांसद वहां पहुंचने वाली महिला सांसदों के लिए क्या राय रखते होंगे, यह सवाल भी खड़े हो गए। यही कारण है कि सभी दलों की महिला सांसदों ने एक स्वर में आजम का विरोध किया और उन्हें माफी मांगनी पड़ी। यहां दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि आजम से माफी मंगवाने के लिए संसद पहुंचने तक का इंतजार किया गया। इससे पहले यही आजम खान न सिर्फ जयाप्रदा सहित महिला नेताओं पर ऊटपटांग टिप्पणी कर चुके हैं, यहां तक की भारत माता को डायन तक कह चुके हैं। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में पांच साल सरकार चलाने वाली समाजवादी पार्टी न सिर्फ उन्हें तवज्जो देती है, बल्कि पार्टी में उनके कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनका पूरा परिवार राजनीति में है। उनकी पत्नी राज्यसभा सदस्य हैं और बेटा विधायक। जिस समय आजम ने पहले महिलाओं के लिए गलत शब्दों का प्रयोग किया था, यदि उस समय सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव चेत गए होते, तो संसद में उन्हें अपनी पार्टी के सांसद के कारण शर्मसार नहीं होना पड़ता। इन स्थितियों में भी यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब बेटियों का सम्मान नहीं होगा, तो वे स्वाभिमान के साथ जियेंगी कैसे और जियेंगी नहीं तो पढ़ेंगी कैसे?
सड़क से संसद तक महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के बीच बेटियों के खिलाफ संगठित मुहिम आज भी जारी है। हाल ही में उत्तराखंड से एक चौंकाने वाली खबर आई है। वहां के उत्तरकाशी जिले के 132 गांवों में तीन माह में एक भी बेटी पैदा नहीं हुई। इस दौरान यहां पैदा हुए 216 बच्चों में सभी लड़के थे। चिकित्सक भी इसे असंभव मान रहे हैं। इससे तय है कि आज भी गर्भ में बेटियों को मारने का सिलसिला देश में चल रहा है। पढ़े लिखे डॉक्टर्स का पूरा नेटवर्क इसमें बेटियों का हत्यारा है। एक डॉक्टर पहले अल्ट्रासाउंड से पेट में बेटी होने की जानकारी देता है, फिर दूसरा एबॉर्शन कर देता है। ऐसे में भी सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब बेटियां गर्भ में ही मार दी जाएंगी, तो पैदा कैसे होंगी और पैदा ही नहीं होंगी तो पढ़ेंगी कैसे?
बेटियों के साथ सड़क पर होने वाली घटनाएं ही परेशान करने वाली नहीं हैं। अब तो संसद भी बेटियों-महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रह गयी है। जिस तरह पिछले दिनों लोकसभा में चर्चा के दौरान समाजवादी पार्टी सांसद आजम खान ने अध्यक्ष पीठ पर बैठी सांसद रमा देवी पर टिप्पणी की, उससे संसद तक पहुंचने वाले हमारे प्रतिनिधियों के चारित्रिक चिंतन पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। आजम के मुंह से एक महिला के बारे में उनके मन में चल रही राय निकल गयी, किन्तु ऐसे ही कितने सांसद वहां पहुंचने वाली महिला सांसदों के लिए क्या राय रखते होंगे, यह सवाल भी खड़े हो गए। यही कारण है कि सभी दलों की महिला सांसदों ने एक स्वर में आजम का विरोध किया और उन्हें माफी मांगनी पड़ी। यहां दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि आजम से माफी मंगवाने के लिए संसद पहुंचने तक का इंतजार किया गया। इससे पहले यही आजम खान न सिर्फ जयाप्रदा सहित महिला नेताओं पर ऊटपटांग टिप्पणी कर चुके हैं, यहां तक की भारत माता को डायन तक कह चुके हैं। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में पांच साल सरकार चलाने वाली समाजवादी पार्टी न सिर्फ उन्हें तवज्जो देती है, बल्कि पार्टी में उनके कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनका पूरा परिवार राजनीति में है। उनकी पत्नी राज्यसभा सदस्य हैं और बेटा विधायक। जिस समय आजम ने पहले महिलाओं के लिए गलत शब्दों का प्रयोग किया था, यदि उस समय सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव चेत गए होते, तो संसद में उन्हें अपनी पार्टी के सांसद के कारण शर्मसार नहीं होना पड़ता। इन स्थितियों में भी यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब बेटियों का सम्मान नहीं होगा, तो वे स्वाभिमान के साथ जियेंगी कैसे और जियेंगी नहीं तो पढ़ेंगी कैसे?
सड़क से संसद तक महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के बीच बेटियों के खिलाफ संगठित मुहिम आज भी जारी है। हाल ही में उत्तराखंड से एक चौंकाने वाली खबर आई है। वहां के उत्तरकाशी जिले के 132 गांवों में तीन माह में एक भी बेटी पैदा नहीं हुई। इस दौरान यहां पैदा हुए 216 बच्चों में सभी लड़के थे। चिकित्सक भी इसे असंभव मान रहे हैं। इससे तय है कि आज भी गर्भ में बेटियों को मारने का सिलसिला देश में चल रहा है। पढ़े लिखे डॉक्टर्स का पूरा नेटवर्क इसमें बेटियों का हत्यारा है। एक डॉक्टर पहले अल्ट्रासाउंड से पेट में बेटी होने की जानकारी देता है, फिर दूसरा एबॉर्शन कर देता है। ऐसे में भी सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब बेटियां गर्भ में ही मार दी जाएंगी, तो पैदा कैसे होंगी और पैदा ही नहीं होंगी तो पढ़ेंगी कैसे?