हमारी पृथ्वी पर बहुत से जंगली पेड़-पौधे व बाग-बगीचे प्रकृति के संरक्षण में फलते-फूलते है किंतु इनकी सुंदरता कायम रखने के लिए एक बागवान अर्थात माली की जरूरत होती है। फूलों से भरे बगीचों और औषधियों से भरी वनस्पतियों, सार्वजनिक एवं घरेलू बगीचों को भी उनकी खूबसूरती को कायम रखने के लिए एक कुशल माली की प्यार भरी देखभाल की आवश्यकता होती हैं ताकि वहां आने वाले व्यक्तियों को एक खुशगवार व मनमोहक वातावरण मिले और वे इसका आनंद उठा सकें। ठीक इसी प्रकार अगर हम सदा-सदा के आनंद को पाना चाहते हैं तो हमें अपने शरीर के अलावा अपनी आत्मा को भी हरा-भरा रखना होगा। अपनी आत्मा के संरक्षण व देखभाल के लिए हमें एक कुशल माली अर्थात सत्गुरु की आवश्यकता होती है क्योंकि हमारी आत्मा युगों-युगों से पिता-परमेश्वर से बिछड़ने के कारण मुरझा गई है। हमारी आत्मा के सत्गुरु रूपी माली जिन्हें हम संत-महापुरुष कहते हैं, वे हमें समझाते हैं कि हम अपनी आत्मा रूपी बीज को कैसे एक भव्य और खूबसूरत फूल के रूप में खिला सकते हैं, जैसा कि प्रभु चाहते हैं।
इसके लिए वे हमें सद्गुणों को अपनी जिंदगी में ढालने की प्ररेणा देते हैं ताकि हमारी आध्यात्मिक उन्नति की जमीन तैयार हो और हमारे अंदर प्रेम, करूणा व दयाभाव के फूल खिलें जिससे कि इनकी खुशबू से औरों का जीवन भी महका उठे। माली रूपी ऐसे संत-महापुरुष हमारी आत्मा को प्रभु के पास वापिस ले जाने का रास्ता सिखाने के लिए हमेशा आते रहे हैं। वे स्वयं प्रभु से एकमेक होते हैं और हमें ध्यान-अभ्यास के द्वारा प्रभु से जुड़ने का रास्ता सिखाते हैं जिसके द्वारा हम भी वही अनुभव प्राप्त कर सकें जिससे कि हमारी आत्मा सदा-सदा के लिए हरी-भरी हो जाए और उसमें कभी कोई पतझड़ न आए। केवल एक सत्गुरु रूपी माली ही हमारी आत्मा को अपनी दयामेहर से उसकी सुंदरता को बरकरार रखता है ताकि हम अपने अंदर प्रभु-प्रेम का अनुभव करें और अपनी आत्मा को परमात्मा में लीन कराने के वास्तविक उद्देश्य को इसी जीवन में पूरा कर सके।