संत रविदास एक महान संत थे। उनके बारे में एक रोचक कथा भी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक बार एक पंडित जी गंगा स्नान के लिए उनके पास जूते खरीदने आए। उन्होंने पंडित महोदय को बिना पैसे लिए ही जूते दे दिए और निवेदन किया कि उनकी एक सुपारी गंगा मैया को भेंट कर दें। संत की निष्ठा इतनी गहरी थी कि पंडित जी ने सुपारी गंगा को भेंट की तो गंगा ने खुद उसे ग्रहण किया। संत रविदास के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग यह है कि एक साधु ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर, चलते समय उन्हें पारस पत्थर दिया और बोले कि इसका प्रयोग कर अपनी दरिद्रता मिटा लेना। कुछ महीनों बाद वह वापस आए, तो संत रविदास को उसी अवस्था में पाकर हैरान हुए। साधु ने पारस पत्थर के बारे में पूछा, तो संत ने कहा कि वह उसी जगह रखा है, जहां आप रखकर गए थे। संत रविदास बहुत प्रतिभाशाली थे तथा उन्होंने विभिन्न प्रकार के दोहों तथा पदों की रचना की। उनकी रचनाओं की विशेषता यह थी कि उनकी रचनाओं में समाज हेतु संदेश होता था। उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा जातिगत भेदभाव को मिटा कर सामाजिक एकता को बढ़ाने पर बल दिया। उन्होंने मानवतावादी मूल्यों की स्थापना कर ऐसे समाज की स्थापना पर बल दिया जिसमें किसी प्रकार का भेदभाव, लोभ-लालच तथा दरिद्रता न हो। संत रविदास पूरे भारत में बहुत लोकप्रिय थे। उन्हें पंजाब में रविदास कहा जाता था। उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में उन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता था। बंगाल में उन्हे रूईदास के नाम से जाना जाता है। साथ ही गुजरात तथा महाराष्ट्र के लोग उन्हें रोहिदास के नाम से भी जानते थे। संत रविदास बहुत दयालु प्रवृत्ति के थे । वह बहुत से लोगों को बिना पैसे लिए जूते दे दिया करते थे। वह दूसरों की सहायता करने में कभी पीछे नहीं हटते थे। साथ ही उन्हें संतों की सेवा करने में भी बहुत आनंद आता था। उत्तर प्रदेश के बनासर शहर में संत रविदास का भव्य मंदिर है तथा वहां सभी धर्मों के लोग दर्शन करने आते हैं।