Aaj Samaj (आज समाज),Sant Rajinder Singh Maharaj,पानीपत : 15 अगस्त भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है जबकि पूरे विश्व में हर देश का स्वतंत्रता दिवस इस बात का प्रतीक है कि एक देश खुद को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करता है। इसके साथ-साथ एक स्वतंत्रता हमारी आत्मा की आजादी और मुक्ति की ओर भी संकेत करती है। जैसे कि एक देश दूसरे देश के अधीन होता है, वैसे ही हमारी आत्मा भी दिमाग और शरीर के इस बंधनों में कैद हो चुकी है। हममें से कई लोग खुद को केवल शरीर और दिमाग ही समझते हैं। जबकि कुछ ही लोग ऐसे हैं जो यह अनुभव करते हैं कि इस जीवन के अलावा हमारा एक आध्यात्मिक पहलू भी है जोकि हमें जान दे रहा है – और वह है हमारी आत्मा।
अंदरूनी आँख से परमात्मा का अनुभव करते हैं तो वही हमारी सच्ची स्वतंत्रता है
ध्यान-अभ्यास के दौरान जब हमारी आत्मा एक पूर्ण गुरु की सहायता से इस शरीर से ऊपर उठकर उड़ान भरती है, तब वह असीम आनंद व प्रेम को महसूस करती है जोकि इस भौतिक संसार से बहुत आगे है। संत, चिंतक और धर्मगुरु इतिहास के पन्नों से आगे उन मंडलों की खोज कर अंततः एक ही निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि हम शरीर और दिमाग से आगे भी कुछ और हैं। हम एक आत्मा हैं जोकि आध्यात्मिक मंडलों की यात्रा कर सकती है और अपने वास्तविक स्त्रोत में जाकर मिल सकती है जोकि सृष्टि-कर्त्ता या पिता-परमेश्वर के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने इसका अनुभव ध्यान-अभ्यास द्वारा किया। संत-महापुरुष बताते हैं कि जब हम एकांत में अपनी आँखों को बंद कर अपना ध्यान अंतर में लगाते हैं और अपनी अंदरूनी आँख से परमात्मा का अनुभव करते हैं तो वही हमारी सच्ची स्वतंत्रता है।
आओ हम आध्यात्मिक स्वतंत्रता को पाने का भी प्रयास करें
आत्मिक आजादी की यह यात्रा तब प्रारम्भ होती है जब हमारे अंदर की आँख व कान खुलते हैं और हम प्रभु की ज्योति व श्रुति को सुनने लग जाते हैं। इसको अनुभव करने के साथ ही हमारी आत्मा भौतिक शरीर से ऊपर उठकर अंतर के रूहानी मंडलों जैसे कि पिंड, अण्ड व ब्रह्मांड को पार करती हुई पिता-परमेश्वर में लीन हो जाती है, जिसके फलस्वरूप हम परमानंद, खुशी और दिव्य-प्रेम का अनुभव करते हैं। हम अपने-अपने देशों में बाहरी रूप से स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं चाहे वह भारत में 15 अगस्त का आयोजन हो या फिर अन्य देशों में अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाए। आज के दिन आओ हम आध्यात्मिक स्वतंत्रता को पाने का भी प्रयास करें। हम ध्यान-अभ्यास द्वारा ही यह पहचान सकते हैं कि हम भौतिक शरीर और बुद्धि से आगे भी अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व रखते हैं। हम आत्मा हैं जोकि परमात्मा का एक अंश है और वास्तव में यह प्रेम, आनंद व शांति से भरपूर है।