Sant Rajinder Singh Ji Maharaj: मन को शांत एवं स्थिर रखने की कला

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Sant Rajinder Singh Ji Maharaj: मन को शांत एवं स्थिर रखने की कला
Sant Rajinder Singh Ji Maharaj: मन को शांत एवं स्थिर रखने की कला

Sant Rajinder Singh On Peace, आज समाज: इस दुनिया के सभी लोग शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं। शांति का अर्थ प्रत्येक के लिए अलग-अलग है। कुछ एक के लिए यह सुरक्षा तथा शारीरिक तकलीफ अर्थात बीमारियों का न होना है। बहुत से लोगों के लिए यह बिना किसी डर और हमले के बिना रहना है। जबकि कुछ के लिए यह आंतरिक संतुष्टि की अवस्था में रहना है। कुछ लोग अपने चारों ओर के लोगों के साथ प्रेम-प्यार से रहने को ही शांति मानते हैं।

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जब हम विश्व स्तर पर शांति को देखते हैं तब हम इसे युद्ध, झगड़े और दंगे-फसाद का न होना मानते हैं। हैरानी की बात यह है कि अनेक लोगों द्वारा लंबे समय से चली आ रही शांति की खोज के बावजूद इसको पाना हमें काल्पनिक सा लगता है क्योंकि बहुत कम लोग ऐसे हैं जिनको अपने आप में शांति प्राप्त हुई है। वैसे इस धरती पर ऐसा कुछ भी प्रतीत नहीं होता जो हमें हमेषा की शांति दे सके। इसलिए हमें लगता है कि शांति को पाना वाकई मुष्किल है?
पहले हमें बारीकी से यह विचार करना है कि शांति है क्या?

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शब्दकोष के अनुसार दु:ख और कलह से निजात पाना ही शांति है और यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें सुकून और खामोषी होती है। इसी परिभाषा में इस प्रष्न का उत्तर भी छुपा हुआ है कि शांति को पाना इतना मुष्किल क्यों है? जबकि हम देखते हैं कि जीवन और दु:ख साथ-साथ चलते हैं, भले ही कोई गरीब हो या अमीर, राजा हो या किसान, सबकी जिंदगी में एक के बाद दूसरी समस्याएं आती ही रहती हैं। तो ऐसी अवस्था में हम शांति को कैसे पा सकते हैं?

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अगर हम अपनी बाहरी जिंदगी में शांति ढूंढते हैं, तब हमें कुछ ही क्षणों की शांति प्राप्त होती है। निष्चित रूप से हमारे जीवन में ऐसे मौके भी आते हैं, जब हम अपने नजदिकियों के साथ आनंद विभोर होते हैं या कुछ ऐसे क्षण होते हैं, जब हम अपनी उपलब्धियों पर खुषी का इजहार करते हैं। अगर देखा जाए तो ऐसे क्षण कुछ समय के लिए ही होते हैं। यह स्वाभाविक है कि हमारी जिंदगी फिर से दु:खों और परेषानियों से भर जाती है। ऐसे में हमें लगता है कि इस जीवन में हमेषा की शांति पाना असंभव है क्योंकि ज्यादातर हम अपनी जिंदगी में बारी-बारी से सुख और दु:ख के क्षणों से गुजरते हैं।

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संतों-महापुरुषों के अनुसार यह पक्का है कि हम सच्ची शांति इसी जिंदगी में पा सकते हैं। शांति हममें से प्रत्येक से शुरू होती है। सिर्फ हमें अपने नजरिये को बदलने की जरूरत है। आमतौर पर हम बाहरी दुनिया में शांति की तलाष करते हैं। हम इसको अपनी भौतिक वस्तुओं, सामाजिक दर्जे और रिष्ते-नातों में ढूंढते हैं पर इनमें से किसी के खो जाने पर हम अाँसू बहने लगते हैं, जिससे कि हमारे मन की शांति भंग हो जाती है। हमें यह समझना होगा कि हम इस संसार को नहीं बदल सकते लेकिन हम अपने जीवन में नया आयाम जोड़ सकते हैं, जिससे कि शांति प्राप्त की जा सके।

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शांति हमारे अंतर में विद्यमान है। हममें से ज्यादातर लोग बाहरी दुनिया को ही हकीकत समझते हैं। संत-महापुरुष जो आध्यात्मिक रूप से जागृत हो चुके हैं, वे इस भौतिक संसार से ऊपर उठ जाते हैं। वे हमें बताते हैं कि यह संसार कुछ और नहीं मात्र मिथ्या है। यह सृष्टि प्रभु की रचना है, जोकि एक चलचित्र और सपने के समान है। हमारी आत्मा इस समय अज्ञानता की अवस्था में है। जब उसका ध्यान अंतर्मुख होता है और वह अंतर के नजारों को देखती है, तब उसे असली सच्चाई का अनुभव होता है।

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तब आत्मा देखती है कि असलियत केवल प्रभु की सत्ता में है, जिसका कि वह स्वयं अंष है। सच्ची शांति तभी शुरू होती है जब हमारी आत्मा पिता-परमेष्वर का अनुभव करती है। पिता-परमेष्वर को केवल ध्यान-अभ्यास के जरिये ही पाया जा सकता है। ध्यान-अभ्यास में हम अपना ध्यान बाहरी दुनिया से हटकार अपने शरीर में दो अाँखों के बीच भू्रमध्य षिवनेत्र पर टिकाते हैं। ध्यान-अभ्यास के द्वारा हम इस शरीर से ऊपर उठते हैं और फिर हमारी आत्मा अंदर के मंडलों की यात्रा करती है। सत्गुरु जो इस विद्या के माहिर होते हैं वे हमें भी इसका अनुभव प्रदान करते हैं। जितना ज्यादा हम आंतरिक अनुभव प्राप्त करते हैं, उतना ही ज्यादा हमें सुकून प्राप्त होता है।

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आंतरिक अनुभव मिलने पर हमारी आत्मा आनंद और खुषी का अनुभव करती है। आत्मा के साथ ये अनुभव हर समय साथ रहता है जोकि उसे शांति और संतुष्टि से भर देता है। हमें इस बात का अनुभव हो जाता है कि जो प्रभु की ज्योति मुझमें है, वही दूसरों में भी है। ऐसी अवस्था में हमारे अंतर में संपूर्ण सृष्टि के लिए प्यार जागृत हो जाता है। अगर हर व्यक्ति इस हकीकत को जान ले तो सही मायनों में इस धरती पर शांति कायम हो जाएगी।

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केवल आंतरिक शांति का अनुभव करके ही हम बाहरी शांति प्राप्त कर सकते हैं। यह इस बाहरी दुनिया में शांति लाने का सबसे असरदार तरीका है। हम न तो अपने सांसारिक जीवन को बदल सकते हैं और न ही इससे जुड़ी समस्याओं को खत्म कर सकते हैं परंतु ध्यान-अभ्यास के जरिये इन समस्याओं को देखने का नजरिया बदल सकते हैं। ध्यान-अभ्यास के द्वारा हम जीवन की समस्याओं का सामना बड़ी ही सरलता से कर सकते हैं क्योंकि तब हम इन्हें एक अलग नजरिये से देखते हैं। हमारे अंदर चेतनता का विकास होने से हम अपने अंदर आंतरिक शांति प्राप्त करते हैं। यहाँ तक कि हम आस-पास के लोगों के लिए शांति का द्भोत बन जाते हैं और हमारा मन हमेषा-हमेषा के लिए शांत व स्थिर हो जाता है।

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