चूंकि आरएसएस की संकल्पना के बारे में यह पुस्तक आरएसएस के ही एक प्रचारक द्वारा लिखी गयी है। इसलिए इसमें आरएसएस की अंदरूनी संरचना को समझते हुए ही ऐसा कहा गया है। पुस्तक के अनुसार इस सदी में आरएसएस के प्रयासों से अयोध्या में राम मंदिर बन जाएगा, समान आचार संहिता लागू होगी तथा संविधान के अनुसार ही रूढ़ हो चुके जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 का उच्छेद कर दिया जाएगा। यह पुस्तक एक अक्टूबर को रिलीज होगी, और संघ के मौजूदा सर संघचालक मोहन भागवत इसका लोकार्पण करेंगे। लेकिन इसके पूर्व ही अनुच्छेद 370 को हटा लिया गया है। तथा जम्मू-कश्मीर राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है। लद्दाख को अब इसमें से अलग कर नया केंद्र शासित क्षेत्र बनाया गया है। समान आचार संहिता की दिशा में मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति मिल गयी है।
इस पुस्तक के एक अध्याय ‘हिस्ट्री आॅफ भारत’ में बताया गया है, कि आरएसएस फैजाबाद को अयोध्या, इलाहाबाद को प्रयागराज तथा महाराष्टÑ के जिला औरंगाबाद को संभाजी नगर नाम देने के लिए प्रयासरत है। मालूम हो, कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने फैजाबाद और इलाहाबाद जिलों के नाम क्रमश: अयोध्या और प्रयागराज कर दिए हैं। लेखक सुनील आंबेकर के अनुसार आरएसएस ‘हिन्दुत्त्व’ और ‘हिंदू राष्टÑ’ जैसे शब्दों को व्यापक गरिमा प्रदान करना चाहता है। उनके अनुसार ‘हिंदू राष्टÑ’ का मतलब मुस्लिम विरोधी होना नहीं है। यह एक तरह से उदारता, उदात्तता, समृद्धि तथा अहिंसा का प्रतीक है, जो महिलाओं समेत सभी को पूजा व उपासना का समान अधिकार देगा। श्री आंबेकर के अनुसार हिंदुत्व और हिंदू राष्टÑ की अवधारणा मुस्लिम और ईसाई भी जल्द ही स्वीकार कर लेंगे, क्योंकि यह राष्टÑीय एकता का प्रतीक है। वे इसके लिए संघ की स्थापना के बाद बने दूसरे सर संघचालक एमएस गोलवलकर की पुस्तक ‘बंच आॅफ थॉट्स’ के हवाले से बताते हैं, कि हिन्दुओं के पुरखों ने मातृभूमि के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना इसी हिन्दुत्त्व के जरिये पैदा की थी।
‘जाति और सामाजिक न्याय’ शीर्षक अध्याय में वे लिखते हैं कि आरएसएस वंचित वर्गों के कल्याण के लिए कार्यरत है। संघ अब अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़ी जातियों के बीच काम कर रहा है, और उनके बीच उसकी व्यापकता को स्वीकायर्ता मिली है। पुस्तक में संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं की उन्नति की बात भी की गयी है। अम्बेडकर का कहना है कि संघ की शतवार्षिकी 2025 के लिए आरएसएस के कार्यकर्ता जोर-शोर से जुटे हैं। उनका मानना है, कि इक्कसवीं सदी में बहुत कुछ नया देखने को मिलेगा। तब स्पष्ट हो जाएगा, कि आरएसएस कोई राजनीतिक दल नहीं अपितु एक सामाजिक संगठन है।
पुस्तक में धर्मांतरण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा गया है, कि शुरू में कांग्रेस ऐसे मुद्दों को लेकर गैर हिन्दुओं को भड़काने का काम करेगी, लेकिन धीरे आम लोगों तक सही बात पहुंच ही जाएगी। लेखक सुनील आंबेकर के अनुसार नेहरू-गांधी परिवार और कांग्रेस यह मिथ गढ़ती रही है, कि आजादी की लड़ाई सिर्फ उसने लड़ी। जबकि यह सच नहीं है। सत्य तो यह है, कि सभी विचारधाराओं के लोग ब्रिटिश शासन से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। आरएसएस के संस्थापक हेडगवार जी ने स्कूल में अंग्रेज निरीक्षक के सामने ही ‘वंदे मातरम’ का जयघोष किया था, जिस वजह से उन्हें स्कूल से निष्काषित कर दिया गया था। हेडगवार जी कोलकाता में पढ़ाई के समय ‘अनुशीलन समिति’ से जुड़े। बाद में कांग्रेस के पदाधिकारी भी रहे। 1921 में सत्याग्रह आंदोलन में गिरफ्तारी भी दी। साल भर बाद जब वे रिहा हुए, तो उनकी स्वागत सभा को संबोधित करने वालों में मोतीलाल नेहरू और हकीम अजमल खां जैसे लोग शामिल थे। लेकिन कांग्रेस के बंगाल अधिवेशन में तत्कालीन अध्यक्ष मोहम्म्द अली ने वंदे मातरम गाये जाने का विरोध किया था, और मंच छोडकर चले गए थे। उसी समय से हेडगवार जी का मन कांग्रेस से टूटने लगा था। बाद में श्री अरविंद ने उन्हें देश के नौजवानों को जागृत करने के लिए काम करने को कहा। काफी सोच-विचार के बाद 1925 में विजयादशमी के दिन उन्होंने संघ की शुरूआत की। इस पुस्तक के बारे में कुछ बातें उल्लेखनीय हैं, जैसे यह पुस्तक राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के ही एक प्रचारक ने लिखी है, इसलिए आरएसएस के बारे में लिखी गई सारी पुस्तकों की तुलना में यह ज्यादा प्रामाणिक और अधिक जानकारी देने वाली है। इस पुस्तक में आरएसएस के संगठन की अंदरूनी संरचना, हायरारिकी, संगठन में महिलाओं की भूमिका, अनुच्छेद 370, राम मंदिर समेत समलैंगिकता पर आरएसएस के विचारों का खुलासा किया गया है। एक तरह से यह पुस्तक 21वीं सदी के सभी सवालों से रूबरू होती है। और 21वीं सदी की संभावनाओं को तलाशती है।
पुस्तक में कई संवेदनशील मुद्दों पर भी चर्चा है। इसलिए यह उन सभी लोगों के लिए उपयोगी है, जो खुले दिमाग से से चीजों को समझना चाहते हैं। हालांकि आरएसएस के बारे में आरएसएस से बाहर के और भीतर के लोगों ने भी कई पुस्तकें लिखी हैं, पर यह पुस्तक आरएसएस के अपने ही प्रकाशन संस्थान से प्रकाशित है। और जिसने लिखी है, वह खुद ही संगठन का पूर्णकालिक कार्यकर्ता है। पर यह पुस्तक किसी पुस्तक का जवाब नहीं है, न ही किसी के द्वारा आरएसएस की कार्यशैली पर उठाए गए प्रश्नों का उत्तर है। इसमें सिर्फ आरएसएस के कार्यों और भविष्य में संगठन की राजनीति का ही वर्णन है। लेखक ने अपने बचपन का बड़ा हिस्सा डॉ. हेडगेवार भवन के प्ले-ग्राउंड में गुजारा है, इसलिए उसने अपने अनुभवों का विस्तार से वर्णन किया है। पुस्तक में भारत की स्वतंत्रता और सामाजिक आंदोलनों में देश की जनजातियों की भूमिका का विस्तार से वर्णन है। यह पुस्तक समस्याओं पर चर्चा नहीं करती, बल्कि समाज की सकारात्मक कहानियों को बताती है। तथा भारत के विकास में भारतीयता के बारे में स्पष्ट करती है। इस पुस्तक में आरएसएस के अंदर की सभी शाखाओं (संगठन की संरचना) पर विस्तार से अध्याय हैं।
(लेखक वरिष्ठ संपादक रहे हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)