Same Sex Marriage संविधान पीठ 9 मई को फिर बैठेगी, सरकार ने कहा, समलैंगिक जोड़ों की चिंताएं दूर होंगी

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Aaj Samaj, (आज समाज),Same Sex Marriage, नई दिल्ली:
लीला एंबियंस होटल-मनी लॉंड्रिंग केसः हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा सुनवाई से हुए अलग*

दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की उस याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें बैंक कर्ज से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एंबिएंस ग्रुप के प्रमोटर कारोबारी राज सिंह गहलोत को जमानत दी गई थी।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की पीठ ने बुधवार को इस मामले को अपने रोस्टर से हटा दिया और मामले को 10 मई के लिए एक अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर दिया। राज सिंह गहलोत को पिछले महीने दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने जमानत दे दी थी। यह मामलापूर्वोत्तर दिल्ली के शाहदरा में एंबियंस होटल के निर्माण के लिए बैंकों के एक संघ द्वारा दिए गए कर्जों से संबंधित है।

28 जुलाई, 2021 को गिरफ्तार, गहलोत को पहले दिल्ली की एक अदालत ने चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत दी थी, जिसे समय-समय पर बढ़ाया गया था और आज तक जारी रखा गया था।ट्रायल कोर्ट में गहलोत का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता तनवीर अहमद मीर, शिखर शर्मा, वैभव सूरी, कार्तिक वेणु, सऊद खान, फहद खान, स्वाति खन्ना और यश दत्त ने किया। गहलोत को जम्मू और कश्मीर बैंक कंसोर्टियम के खिलाफ बैंक धोखाधड़ी करने के आरोप में धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तार किया गया था।

जांच एजेंसी के अनुसार, उसने राज्य एसीबी, जम्मू द्वारा अमन हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड (एएचपीएल) और उसके निदेशकों के खिलाफ फाइव-स्टार के निर्माण और विकास में मनी लॉन्ड्रिंग के लिए दर्ज प्राथमिकी के आधार पर पीएमएलए के तहत एक जांच शुरू की थी। यह माममला दिल्ली में यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के पास स्थित ‘लीला एंबियंस कन्वेंशन होटल से संबंधित है।
ईडी ने पहले कहा था कि पीएमएलए के तहत एक जांच से पता चला है कि होटल परियोजना के लिए बैंकों के एक संघ द्वारा स्वीकृत 800 करोड़ रुपये से अधिक की ऋण राशि का एक बड़ा हिस्सा एएचपीएल और राज सिंह गहलोत और उनके सहयोगियों द्वारा गबन किया गया था।
*सड़क दुर्घटना में मारे गए शख्स के परिजनों को MACT ने दिया 1 करोड़ 19 लाख का मुआवजा देने का आदेश*

महाराष्ट्र के मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) ने 2019 में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए 33 वर्षीय व्यक्ति के मुंबई स्थित परिवार को 1.19 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है।

एमएसीटी के सदस्य एम एम वालिमोहम्मद ने अपने आदेश में कहा है कि वाहन के मालिक  गुलनार प्लास्टिक प्राइवेट लिमिटेड सिलवासा और इसकी बीमा कंपनी टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी  को संयुक्त रूप से 1 करोड़ 19 लाख रुपये का भुगतान मृतक के परिजनों को क्षतिपूर्ति के रूप में करना होगा।

एमएसीटी ने के आदेशों में कहा गया है कि यदि प्रतिवादी गुलनार प्लास्टिक प्राइवेट लिमिटेड और टाटा एआईजी इंश्योरेंस भुगतान करने में विफल होते हैं, तो उन्हें बुधवार को उपलब्ध कराए गए आदेश की प्रति के अनुसार, मुआवजे की राशि की वसूली तक आठ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज का भुगतान भी करना होगा। क्षतिपूर्ति के लाभार्थियों में  मृतक शैलेश मिश्रा की पत्नी, एक नाबालिग बेटी और वृद्ध माता-पिता हैं।

क्षतिपूर्ति के लाभार्थियों के वकील एसएल माने ने एमएसीटी को बताया कि मिश्रा एक गारमेंट्स कंपनी में मैनेजर के तौर पर काम करते थे और हर महीने 60,000 रुपये कमाते थे।

दावेदारों ने कहा कि कि 17 जून, 2019 को, मिश्रा मुंबई में वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर कांदिवली से अंधेरी तक एक कार में यात्रा कर रहे थे। एक अन्य कार गलत साइड से तेज रफ्तार में आई और गोरेगांव में दुर्गादी के पास मिश्रा की कार को टक्कर मार दी। मिश्रा गंभीर रूप से घायल हो गए और मौके पर ही उनकी मौत हो गई। दावेदारों ने कहा कि वो परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे।

एमएसीटी ने अपने आदेश में कहा कि प्राथमिकी के बाद मौके पर पंचनामा (निरीक्षण), दुर्घटना में मौत की रिपोर्ट और संदर्भित बयानों से साबित होता है कि आपत्तिजनक वाहन की संलिप्तता और उसके चालक की लापरवाही से गाड़ी चलाना था। “प्रतिद्वंद्वी बीमा कंपनी को मुआवजे का भुगतान करने के लिए निर्देशित किया जाता है और वो वाहन के मालिक से राशि वसूलने के लिए स्वतंत्र है,”

एमएसीटी ने निर्देश दिया कि राशि की वसूली पर, मृतक के बच्चे के नाम पर सावधि जमा में 25 लाख रुपये, उसकी पत्नी के नाम पर 15 लाख रुपये की एफडी और प्रत्येक के माता-पिता को 10 लाख रुपये का भुगतान किया जाए।  शेष राशि का भुगतान मिश्रा की पत्नी को किया जाए।

 *सेम सेक्स मैरिजः संविधान पीठ 9 मई को फिर बैठेगी, सरकार ने कहा, समलैंगिक जोड़ों की चिंताएं दूर होंगी*

सेम सेक्स मैरिज के वैधानिक अधिकार और उनसे होने वाली समस्याओं को लेकर उठने वाले मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के सामने बहस जारी है। यह बहस नौ मई को भी जारी रहेगी। इससे पहले चीफ जस्टिस ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहें तो रेलिवेंट दस्तावेज कोर्ट को मुहैया करवा सकते हैं ताकि कोर्ट इस मुद्दे पर गहराई से विचार कर सके।
सातवें दिन बहस की शुरुआत करते हुए केंद्र सरकार की ओर से सोलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करने के लिए तैयार है जो समलैंगिक जोड़ों की कुछ चिंताओं को दूर करने के लिए उनकी शादी को वैध बनाने के मुद्दे पर विचार किए बिना कदम उठाएगी।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया कि सरकार इस संबंध में प्रशासनिक कदमों का पता लगाने के सुझाव के बारे में सकारात्मक है। मेहता ने कहा, “इस मुद्दे में कुछ वास्तविक मानवीय चिंताएँ हैं और इस पर चर्चा हुई कि क्या प्रशासनिक रूप से कुछ किया जा सकता है। सरकार सकारात्मक है। इसके लिए विभिन्न मंत्रालयों द्वारा समन्वय की आवश्यकता होगी। एक कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जाएगी और सुझाव दिए जाएंगे।” याचिकाकर्ताओं को संबोधित किया जाएगा।”
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
सालिसीटर जनरल मेहता ने पीठ से कहा कि इसके लिए कई मंत्रालयों के बीच समन्वय की जरूरत होगी और इसके लिए कुछ समय की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता इस संबंध में क्या प्रशासनिक कदम उठाए जा सकते हैं, यह पता लगाने के मुद्दे पर अपने सुझाव दे सकते हैं। इस पर CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “याचिकाकर्ता आज और अगली सुनवाई के बीच सुझाव दे सकते हैं ताकि वे इस पर भी अपना दिमाग लगा सकें। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ से कहा कि यह मुद्दा कहीं अधिक जटिल है और इसके लिए कानून की व्याख्या की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति एसके कौल ने यह भी कहा, “यह सभी के अधिकारों के प्रति पूर्वाग्रह के बिना है, भले ही विवाह के अधिकार दिए जाएं लेकिन विधायी और प्रशासनिक क्षेत्र में कई बदलावों की आवश्यकता होगी। सरकार समलैंगिक साहचर्य से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को हल करने में अनिच्छुक नहीं है। याचिकाकर्ताओं की ओर से  अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने हस्तक्षेप किया और कहा, “मैं यहां ज्यादातर छोटे शहरों के युवा लोगों के लिए बोलती हूं जो शादी करना चाहते हैं।
संविधान पीठ के समक्ष आज मध्यप्रदेश सरकार की ओर से एडवोकेट राजेश द्विवेदी ने अपने तर्क रखे और कहा कि अदालत को इस मामले में फैसला नहीं करना चाहिए। बदलते समाज में इस तरह की शादियों को मंजूरी देने के लिए विधायिका द्वारा बहस की जरूरत है। अंत में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अब इस मामले की सुनवाई 9 मई को शुरू होगी। तब तक याचिकाकर्ताओं के पास कोई और तर्क या तथ्य हो तो वो पीठ को उप्लब्ध करा सकते हैं।