Same-Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को मान्यता देना भारतीय समाज की भावनाओं पर आघात- प्रीति राणा

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बड़े पैमाने पर समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध किया जा रहा है
बड़े पैमाने पर समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध किया जा रहा है

Aaj Samaj, (आज समाज), Same-Sex Marriage,करनाल, 27अप्रैल, इशिका ठाकुर
विदेशों की तर्ज पर अब हिंदुस्तान में भी समलैंगिक विवाह का प्रचलन बढ़ता जा रहा है जिसे मान्यता देने का मामला अभी विचाराधीन है, लेकिन समाज में बड़े पैमाने पर समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध किया जा रहा है। इसके विरोध में करनाल की सामाजिक संस्था जीजामाता न्यास समिति के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम वीरवार को एसडीएम को ज्ञापन सौंपा।

इस मौके पर बोलते हुए जीजामाता न्यास समिति की सदस्य प्रीति राणा ने कहा की भारत में विवाह, पुरूष व स्त्री के बीच एक पवित्र बंधन माना जाता है।

विवाह शब्द विपरीत लिंग में समागम का घोतक है व सोलह संस्कारों में से एक संस्कार है। भारत के संविधान- अनुच्छेद (246) के अन्तर्गत विवाह को सामाजिक कानूनी संस्था, बताया गया है- जिसे संसद में विद्यायिका द्वारा मान्यता दी गई है व विनियमत किया जाता है, जिसे न्यायालिका किसी भी तरह परिवर्तित नहीं कर सकती। विशेष विवाह अधिनियम (1954) में भी विवाहजैविक पुरुष व महिला पर ही लागू होता है। इस अधिनियम से छेड़छाड़ करने की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जा रही है जो कि उन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

भारत में समलैंगिक विवाह के प्रश्न से पहले की समस्याएं-

जैसे कि पर्यावरण समस्या, जनसंख्या वृद्धि समस्या, गरीबी उन्मूलन, निशुल्क शिक्षा व चिकित्सा सुविधा पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोई भी तत्पर सुधार के प्रति उदासीन रहीं है।

यदि अब सर्वोच्च न्यायालय से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलने पर, भारतीय संस्कृति व सामाजिक व्यवस्था पर कठोर आधात होगा। विधान सभा द्वारा किये गये कार्यों में हस्तक्षेप होगा, भारतीय समाज के मूल आधार परिवार पर प्रहार होगा एक संस्कारित संतान का निर्माण असभव होगा। अतः समलैंगिक विवाह को विधि मान्यता देने पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जा रही शीघ्रता व तत्परता से समाज के लोग दुखी हैं।

समिति के सदस्यों ने सर्वोच्च न्यायपालिका से अनुरोध किया है कि समलैंगिक विवाह भारतीय परम्परा के विरूद्ध होने है, इसलिए विषय पर समाजहित में जुड़ी संस्थाओं के साथ परामर्श करने व इसे न्यायपालिका द्वारा वैध न घोषित करने का आदेश दिया जाए ताकि भारतीय समाज की कोमल भावनाओं का आदर रखा जा सके।

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