कार्रवाई और राहत के फैसले अटके, कैबिनेट बैठक से थी उम्मीद
Haryana News Chandigarh (आज समाज) चंडीगढ़: लोकसभा चुनावों के परिणामों के बाद अधिकारियों और कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा चुकी हरियाणा सरकार अब कर्मचारियों से संबंधित फैसले लेने में पेशोपेश में हैं। चेतावनी दिए जाने के बावजूद हरियाणा सरकार ने न तो उन अधिकारियों और कर्मचारियों की कोई सूची जारी की जिन्होंने विपक्ष बोगस वोटिंग में मदद की और न ही ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकी। इसके अल्ट, कर्मचारियों की नाराजगी को देख पक्के और कच्चे कर्मचारियों को सरकार से राहत के फैसलों की आस है, लेकिन इस प्रकार के फैसले लेने में भी सरकार झिझक रही है। इसका ताजा उदाहरण गुरुवार को हुई हरियाणा मंत्रिमंडल की बैठक है। संभावना जताई जा रही थी कि बैठक में पक्के कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 58 साल से बढ़ाकर 60 साल की जा सकती है। इनके अलावा, कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने को लेकर भी अटकलें थी। लेकिन बैठक में न तो ऐसा कोई एजेंडा लाया गया और न ही बैठक में इन मुद्दों पर कोई चर्चा हुई। कर्मचारियों से संबंधित कोई फैसला नहीं लिए जाने से एक बार फिर कर्मचारियों की आस टूट गई है और उनकी नाराजगी बढ़ गई है। हालांकि, कर्मचारियों की आस नहीं टूटी है और कर्मचारी संगठन लगातार मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव राजेश खुल्लर से मुलाकात कर रहे हैं। बता दें कि हरियाणा में 2.70 लाख पक्के कर्मचारी हैं और 1.30 लाख कच्चे कर्मचारी हैं, इनको हरियाणा कौशल रोजगार निगम के तहत समायोजित किया गया है। इनके अलावा, 12500 अतिथि अध्यापक हैं और डीसी और एडहाक रेट पर भी करीब 7 हजार कर्मचारी तैनात हैं। पहले सरकार की योजना था कि एडहाक और डीसी रेट पर तैनात कर्मचारियों को पक्का किया जाए, लेकिन अब बताया जा रहा है कि अतिथि अध्यापकों की तर्ज पर इनको समान वेतन और 58 साल तक सेवारत रहने के नियम बनाए जा रहे हैं, लेकिन इनको पक्का नहीं किया जाएगा। हालांकि, अंतिम फैसला मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को लेना है।
सीएमओ में दो प्रकार की राय
सूत्रों का दावा है कि सीएमओ में कर्मचारियों को लेकर दो प्रकार की राय है। एक राय ये है कि कर्मचारियों पर अगर कार्रवाई की गई तो यह बड़ा मुद्दा बनेगा और इससे विधानसभा चुनावों में सरकार और अधिक नाराजगी झेलनी पड़ेगी। इसलिए कर्मचारियों को मनाने के लिए उनको राहतें दी जाएं, ताकि उनकी नाराजगी दूर हो सके। दूसरी राय है कि कर्मचारियों ने लोकसभा चुनावों में खुलकर भाजपा की मुखालफत की है, इसलिए एकदम से राहत देकर सरकार कर्मचारियों के दबाव में कोई फैसला नहीं लेना चाहती। सरकार चाहती है कि फैसले से पहले कर्मचारी संगठनों से बैठक हों और इसके लिए सरकार से मांग रखें। लेकिन एक आशंका है कि ये भी है कि तमाम राहतें देने के बाद भी कर्मचारी भाजपा के साथ नहीं आएंगे। इसलिए तमाम पहलूओं को देखने के बाद ही सरकार कर्मचारियों को लेकर फैसला लेगी।