- आयड़ जैन तीर्थ में बह रही है धर्म ज्ञान की गंगा
Aaj Samaj (आज समाज), Sadhvi Vairagyapurnashri उदयपुर 26 जुलाई:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में बुधवार को विशेष प्रवचन हुए। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।
चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने अपने प्रवचन के माध्यम से छ: आवश्यक के संदर्भ में आज तीसरा आवश्यक वंदन नाम के आवश्यक में बताया गया कि भक्ति भाव से गुरुदेव को इच्छामि खमासमणों के पाठ से वंदन किया जाता है। वंदन करने का अर्थ है स्तवना अभिवादन मन, वचन काया का वह प्रशस्त व्यापार जि
ससे गुरु के प्रति भक्ति और बहुमान का भाव प्रकट हो। जैनधर्म गुणपूजक धर्म है। द्रव्य और भाव दोनों प्रकार के चारित्र से संपन्न त्यागी, वीतरागी, आचार्य उपाध्याया स्थवीर गुरुदेव ही वंदनीय है। वंदनीय को ही वंदना करने से वंदन आवश्यक के फल का अधिकारी हो सकता है। वंदन आवश्यक का यथाविधि पालन करने के पांच लाभ है। अहंकार और गर्व का नाश होता है गुरुजनों की पूजा होती है। तीर्थकरों की आज्ञा का पालन होता है। खाश्रुत “धर्म की आराधना होती है और यह श्रुत धर्म की भागधना आत्म शक्तियों का क्रमिक विकास करती हुई मोक्ष का कारण बनती है।
गुरु वंदन की क्रिया बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। साधक को इसमें उदासीनता या उपेक्षा का भाव नहीं रखना चाहिए। पवित्र भावना से किया गया वंदन ही फलदायी है। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।
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