- आयड़ जैन तीर्थ में अनवरत बह रही धर्म ज्ञान की गंगा
- साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की
Aaj Samaj (आज समाज), Sadhvi Prafulla Prabhashree,उदयपुर 27 अक्टूबर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में शुक्रवार को नवपद ओली के तहत विशेष पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।
जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि विशेष महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने श्री नवपद की आराधना के आठवें दिन श्री नवपद की आराधना-साधना उपासना के अंतर्गत सम्यक् चारित्र की आराधना का दिन आता है। साध्वियों ने सम्यक्- चारित्र की आराधना का अत्यन्त ही महत्व पूर्ण विवेचन में बताया कि ये आराधना जीवन में जीवन की बगिया को शुद्ध करके सुगन्ध से सुवासित कर देती है। जीवन सद्गुण की सौरभ से सुरभित हो जाता है, महकने लग जाता है।
सम्यक् चारित्र की आराधना से कर्म- कपाय दुर्बल होने लगते हैं। मानव जीवन को आत्म साक्षात्कार की आत्म दर्शन की सच्ची राह मिल जाती है। जैन आगम में चारित्र दो प्रकार से बताये है।- सर्वविरति चारित्र, और देश विरति चारित्र। इसके द्वारा ही कर्मों का संचय खाली होता है। ज्ञानियों ने कहा है इस चारित्र की आराधना के द्वारा ही जो कोई भी भूतकाल में, वर्तमान काल में, भविष्य काल मँ मोक्ष में गये हैं वे सभी चारित्र भाव से ही मोक्ष में गये हैं यानि चारित्र की आराधना व मोक्ष की आराधना हैं।
सर्व निरति चारित्र में पाप की समस्त प्रवृत्तियों का सर्वथा और संपूर्ण त्याग होता है। तीर्थंकर परमात्मा जगत् के जीवों के कल्याण के लिए सर्वप्रथम सर्व विरति धर्म का उपदेश देते हैं! जो आत्माएं सर्वविरति धर्म का पालन करने में समर्थ है वे इसे स्वीकार करते है।
चारित्र मोहनीय कर्म के उदय के कारण जो आत्माएं सर्व विरति धर्म का पालन कर में असमर्थ है उन आत्माओं के उद्धार के लिए देश विरविचारिग बताया है। सर्व विरतियानि साधु धर्म, संयम चारित्र आदि और देश विरति यानि सामायिक पौषध की आराधना करना। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।
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