Sadhvi Prafulla Prabhashree: परमात्मा की द्रव्य दीपक करके भाव दीपक की याचना करे

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श्री जैन श्वेताम्बर महासभा
  •  साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की

Aaj Samaj (आज समाज), Sadhvi Prafulla Prabhashree, उदयपुर 16 अक्टूबर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में सोमवार को विविध आयोजन हुए। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।

आयड़ जैन तीर्थ में अनवरत बह रही धर्म ज्ञान की गंगा

जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि विशेष महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने परमात्मा की अष्ट प्रकारी पूजा के विधान में पांचवें दीपक पूजा के विवेचन में बताया कि परमात्मा के समझ दीपक पूजा करते समय ये भावना भानी है कि दीपक उजाले का प्रतीक है। हे भाव दीपक परमात्मा! आपने तो ऐसा दीपक जलाया है जिसके प्रकाश में आप लोकालोक को देख सकते हैं। एकदम नन्हा सा दीपक लेकर आपके सामने आया हूँ। जिस प्रकार यह छोटा सा दीपक आसपास में प्रकाश फैलाता है उसी प्रकार कृपा करके मेरे अंतर में केवलज्ञान का ऐसा दीप प्रगटाईये जिसके प्रभाव से समस्त लोकालोक में प्रकाश फैले।

यह द्रत्य दीपक तो चंचल है, अस्थिर है- हवा के झांके से इसकी ज्योत हिलने लगती है। परन्तु केवल ज्ञान का दीपक तो ऐसा अनुपम है कि चाहे जितने झोंके क्यों न भाये यह कभी चलायमान नहीं होता। हे परमात्मा ! मेरी आपसे एक यही प्रार्थना है कि में तो आपके सामने द्रव्य दीपक प्रगराया है परन्तु आप कृपा करके जल्दी से मेरे अन्तर में भाव दीपक प्रगराईये/दीपक पूजा करते समय हमें ध्यान रखना है कि दीप को थाली में रखकर उसे दोनों हाथों से पकडऩा चाहिये और प्रभु की दायीं ओर खड़े रहकर दीपक पूजा करनी चाहिए ।

दीपक को जिनालय में ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहाँ किसी के कपरो आदि न जलने पाए। अधिक समय तक रखे जाने वाले दीपक को चिमनी आदि से ढंकना आवश्यक है भी शुद्ध होना चाहिए। शुद्ध घी के दीये में से आने वाली सुहानी सुगंध चित्त को प्रसन्न बनाती है। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर पर्युषण महापर्व के तहत प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

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