Isha Foundation, (आज समाज), नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आध्यात्मिक गुरु सदगुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दो लड़कियों को बंधक बनाने का मामला बंद कर दिया है। शीर्ष अदालत का यह फैसला ईशा फाउंडेशन द्वारा मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के बाद आया, जिसमें तमिलनाडु सरकार को फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था।
- अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही लड़कियां : सीजेआई
शीर्ष कोर्ट ने अपने पास स्थानांतरित किया केस
हाई कोर्ट ने कोयंबटूर स्थित सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की अनुमति दी गई थी। देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को बंद करने का आदेश देने के साथ ही इस केस को अपने पास स्थानांतरित कर लिया है।
पीठ ने कहा, पुलिस हाई कोर्ट के आदेश के निर्देशों के अनुसरण में कोई और कार्रवाई नहीं करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, फाउंडेशन पर लगे आरोपों के संदर्भ में, अधिकार क्षेत्र वाली कोयंबटूर ग्रामीण पुलिस जांच करेगी और इस अदालत (सुप्रीम कोर्ट ) के समक्ष स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगी। अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को होगी।
प्रो. एस कामराज ने दायर की थी याचिका
सुप्रीम कोर्ट का आदेश कोयंबटूर स्थित तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज की याचिका पर आया है। एस कामराज ने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों का ब्रेनवॉश किया गया है और उन्हें ईशा फाउंडेशन आश्रम के योग केंद्र में बंधक बनाकर रखा गया है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने बताया कि प्रोफेसर एस कामराज की बेटियां वर्चुअली मामले की सुनवाई में शामिल हुईं और उन्होंने बेटियों के साथ बात की। सीजेआई ने कहा कि कामराज की बेटियां अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं।
कामराज ने ये लगाए हैं आरोप
कामराज ने याचिका में आरोप लगाया था कि ईशा फाउंडेशन लोगों का ब्रेनवॉश कर रहा है, उन्हें साधु बना रहा है और उन्हें अपने परिवारों से संपर्क बनाए रखने से रोक रहा है। हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने कोयंबटूर में ईशा फाउंडेशन में जांच की। कामराज की याचिका पर सुनवाई करते हुए, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी 42 और 39 वर्षीय दो बेटियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध केंद्र में रखा जा रहा है।
हाई कोर्ट ने फाउंडेशन की प्रथाओं पर उठाए थे सवाल
मद्रास हाई कोर्ट ने फाउंडेशन की प्रथाओं पर सवाल उठाए थे। हाई कोर्ट ने सवाल किया कि सद्गुरु ने महिलाओं को साधु के रूप में रहने के लिए क्यों प्रोत्साहित किया, जबकि उनकी अपनी बेटी विवाहित और घर बसा चुकी है। याचिका में फाउंडेशन के खिलाफ लंबित कई आपराधिक मामलों का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें ईशा योग केंद्र से जुड़े एक डॉक्टर के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत हाल ही में दर्ज मामला भी शामिल है।
ईशा फाउंडेशन ने आरोप निराधार बताए
ईशा फाउंडेशन ने एक बयान जारी कर आरोपों को निराधार बताया। बयान में कहा गया है, ईशा फाउंडेशन की स्थापना सद्गुरु ने लोगों को योग और आध्यात्मिकता प्रदान करने के लिए की थी। हमारा मानना है कि वयस्क व्यक्तियों को अपना रास्ता चुनने की स्वतंत्रता और बुद्धि है। फाउंडेशन ने व्यक्तियों पर विवाह या संन्यास लेने के लिए दबाव डालने से इनकार किया और कहा कि ये व्यक्तिगत पसंद हैं। फाउंडेशन ने कहा, जो कोई भी फाउंडेशन के खिलाफ गलत सूचना फैलाने में लिप्त होगा, उसके खिलाफ देश के कानून के अनुसार सख्ती से निपटा जाएगा।
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