खिन्न व्यक्ति आपको दुखी बना देते हैं

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swami sukhbodhanand ji
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स्वामी सुखबोधनंद

मैं कैसे प्रेरित हो सकता हूँ? मेरे बॉस मेरे साथ रोजाना बहुत दुर्व्यवहार करते हैं। जिसके पास जो होता है वह केवल वही दूसरे को दे सकता है। इसके मर्म को समझने के बाद आप विनम्र होने लगेंगे। आप अपने अंदर विष नहीं भर सकते हैं। आस-पास के लोगों की दुर्भावना दूसरों के लिए पीड़ा देने वाली होती है। उनके दिमाग अत्याधिक अशांत होते हैं इस कारण वह अशांति फैलाते हैं। कईं बार हम इस पीड़ा को हफ्तों, महीनों तक झेलते रहते हैं और यह हमें आंतरिक रुप से दुखी कर देता है। हम इसे एक झटके में यादों से निकाल नहीं सकते हैं। यह आंतरिक दुख हमारी खुशियों को नष्ट करना शुरू कर देता है। इससे दुर्व्यवहार का अनुभव दोबारा जीवित हो उठता है और जिससे आंतरिक रुप से हम खोखले हो जाते हैं। उन पलों का दोबारा अनुभव करते हुए हमें उन दुर्व्यवहारों को अपने अंदर पालने या उनको निकाल सकने में से किसी एक को चुनना होगा।

उन पलों के एक-एक करके दोबारा जीवित होने पर हम पीड़ा क्यों महसूस करते हैं?

विचार ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। नकारात्मक विचार से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है और यह पीड़ादायक होती है। एक दुखात्मा दुनिया को कष्ट के नजरिए से ही देखती है। अपने कष्ट को थामने के लिए दुखात्मा हर संभव प्रयास करेगी। यह उसके अस्तित्व का प्रश्न जो है। इसलिए यह पीड़ा को आकृष्ट व रोकना पसंद करती है। इसकी सुरक्षा के लिए तर्क गढ़ेगी। दुखी लोगों की ओर देखने को कहती है। वे आपको कष्टमय होने के लिए प्रेरित करते हैं। इन सबके पार जाने के लिए आप अपने अंदर के परमानंद भाव को उत्पन्न कर सकते हैं। आपके अंदर भौतिक शरीर के अतिरिक्त प्राणिक तत्व, श्वसन तत्व, मानसिक तत्व, बौद्धिक तत्व और परमानंद तत्व के रुप में पांच परतें हैं। हमारे भीतर मौजूद सभी परतों में ऊर्जा है। यह अंतनिर्हित शक्ति के रुप में है। ठीक वैसे ही जैसे लकड़ी में अप्रकट आग होती है और केवल घिसने मात्र से वह जल उठती है। इसी प्रकार आपको व्यायाम, योग, नृत्य और संतुलित भोजन के जरिए भौतिक शरीर को जगाना होगा। शरीर को चैतन्य व जागृत रखिए। तभी आप अपने पूरे शरीर में प्रसन्नता की ऊर्जा को प्रज्वलित कर पाएंगे। प्राणिक या श्वसन तत्व को जगाना होगा। प्राणायाम करते समय गहरी सांस लीजिए और अपने भीतर एक अलग तरह के आनंद की लहर का अनुभव करें। किसी के धीरे से सांस लेने से ऊर्जा के निचले स्तर का निर्माण होता है, वहीं गहरी सांस से चैतन्यता में वृद्धि होती है। यदि आप मस्तिष्क को शांत कर लेते हैं तो यह मानसिक तत्व को जगा सकता है। एक शांत मस्तिष्क का अलग ही आनंद है वहीं एक अशांत मस्तिष्क ऊर्जा नाश का साधन है। जब आपका बोध जागृत और ग्रहणशील हो तभी दूसरे आयाम की परमानंद पूर्ण ऊर्जा प्रकट होती है। कोई जो निष्कपट और ग्रहणशील हो वह
हमेशा सीखता है। इसीलिए बच्चे बहुत जल्द सीखते हैं। गहन निद्रा की अवस्था में परमानंद तत्व प्राकृतिक रुप से स्वंय जागृत हो उठता है। जागने पर यदि कोई प्रसन्न दिख रहा हो और जीवन को एक उत्सव की तरह मान रहा हो, इसका मतलब है, उसका परमानंद केन्द्र जागृत हो गया होगा।

क्या इन पांचों तत्वों के जागृत होने से वैवाहिक संबंधों के सुधार में सहायता मिल सकेगी?

यदि हम कमजोर हैं, अर्थात ऊर्जा में कहीं कमी है। तब हम अपने साथी से ऊर्जा पाने की कोशिश करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे की ऊर्जा को अवशोषित करने लगते हैं और हम एक दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं। इससे दोनों ही कष्ट महसूस करते हैं। तब आप एक दूसरे पर नियंत्रण करने लगते हैं। जब इस नियंत्रण या आजादी पर लगे प्रतिबंध का प्रतिरोध होता है तब साथी को अवहेलना और उदासी का अनुभव मिलता है। आपको इन सबको सुलझाने के लिए सही समय का इंतजार करना है। यह एक तरह से फूलों की लड़ाई है। हालाँकि यदि आप स्वंय में मौजूद सभी पांचों परतों को जागृत कर चुके हैं तो आप आनंद के अतिरेक में होंगे। आप अपने साथी की ऊर्जा को अवशोषित नहीं करेंगे क्योंकि आप स्वंय ही अतिरेक में रहते हैं। आप दूसरे पर निर्भर नहीं होंगे बल्कि इससे आप परस्पर निर्भरता को संबंधो के आनंद के रुप में समझ सकते हैं। जब आप शरीर, प्राण, मानस, बोध और परमानंद के केन्द्रों को जागृत कर लेंगे तब संबंध एक नई ऊचाँई पर पहुंच जाएंगे