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हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार के सदस्य पितृ पक्ष में श्राद्ध करते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे परिवार को आशीर्वाद देते हैं। 10 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो गया है और 15 दिनों तक चलने वाला यह श्राद्ध 25 अक्टूबर को समाप्त होगा। शास्त्रों में कई जगह पितृ पक्ष का उल्लेख किया गया है और यह भी बताया गया है कि श्राद्ध कौन कर सकता है और कौन नहीं कर सकता। आइए जानते हैं श्राद्ध से जुड़े कुछ ऐसे नियम, जिनके बारे में जानना जरूरी है।
कौन कर सकता है श्राद्ध
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध का पहला अधिकार बड़े पुत्र को होता है। यदि बड़ा बेटा जीवित न हो तो छोटा पुत्र श्राद्ध कर सकता है। बड़े बेटे की शादी हो गई है तो उसे अपनी पत्नी के साथ मिलकर ही श्राद्ध करना चाहिए। इससे पूर्वज खुश होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति का पुत्र नहीं है तो उसका श्राद्ध भाई भी कर सकता है।
पितृ पक्ष में क्या करें और क्या नहीं
- श्राद्ध में दौरान ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन कराना चाहिए।
- पिंडदान सदैव चढ़ते सूर्य के समय में करें. सुबह या अंधेरे में पिंडदान नहीं किया जाता।
- पिंडदान कांसे या तांबे या चांदी के बर्तन, प्लेट या पत्तल में करें।
- श्राद्ध के समय मुख दक्षिण दिशा की ओर हो।
- श्राद्ध के दौरान घर में कलह नहीं होनी चाहिए।
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