आरक्षण व धारा 370 भारतीय संविधान की जुड़वां संताने तो हैं ही। इन दोनों में कई और समानताएं भी हैं। जैसे दोनों को हो अस्थाई तौर पर माना गया था जहां 370 में शब्द अस्थाई जुड़ा है। वहीं आरक्षण को भी तब तक लागू रहना था जब तक उन लोगों का जिनके लिए आरक्षण लगाया गया सामाजिक व आर्थिक स्तर सुधर नहीं जाता। इसीलिए इसे दस साल के लिए लगाया गया था हां हर दस साल के बाद इसकी समीक्षा किये जाने व समीक्षा के बाद इसे लागू रखा जाए या नहीं या कुछ जातियों समूह जो स्तर प्राप्त कर चुके हैं उन्हें इससे बाहर निकाला जाए का प्रावधान है। दोनों ही चुनावी मुद्दे भी रहे हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि इनका चोली दामन का साथ है जी एक 370 जहां भारत के सिरमौर कहे जाने वाले प्रदेश कश्मीर से सम्बन्धित है अर्थात चोली या उपरी वस्त्र माना जा सकता है वहीं आरक्षण का सम्बन्ध समाज के दलित पिछड़े वर्ग से होने के कारण चोली दामन कहावत में चोली का स्थान पाता है। एक और भी सम्बन्ध है इन दोनों में जहां 370 से कश्मीर व जम्मू को विशेष दर्जा तरजीह प्राप्त हुआ वहीं आरक्षण से कुछ जातियों को भी विशेष दर्जा प्राप्त हुआ। यानी देश दो तरह से बंट दोनों के कारण कश्मीर अलग शेष भारत अलग वहीं आरक्षित व अनार्क्षित ने भी समाज को दो हिस्सों में बांट दिया जिसके कारण गुजर, जाट, पटेल आरक्षण हेतु आन्दोलन जारी हैं। वहीं अल्पसंख्यक ही नहीं सवर्ण जातियां भी आरक्षण की मांग करने लगी हैं ेयुवाओं में आरक्षण के खिलाफ व पक्ष के धड़े हो गए हैं जिस तरह 370 देश के गले की फांस थी वैसे ही आरक्षण उससे भी बड़ी फांस बन गया है।
कुछ दिन पहले 70 साल बूढ़ी धारा 370 बी व सी जी केवल बीसी हटाई गयी 370 अ अभी जिन्दा है और अ वेंटिलेटर पर है 370 को मैं भी राष्ट्रभक्ति मोड़ में आकर ठीक ठहरा रहा हूं चलो अच्छा हुआ देश के नेताओं के गले में पड़ा एक मरा सांप गया। भाजपा के जनक आरएसएस के चार मुख्य मुद्दे रहे हैं एक तो यही मरी 370 दूसरा कॉमन सिविल कोड हालांकि मोदी शाह ने उसके लघु संस्करण तीन तलाक पर आजमा कर शायद कॉमन सिविल कोड की तरफ कदम बढ़ा दिया है। तीसरा मुद्दा आरएसएस का सदा से रहा है राम मंदिर े लगता है अगले संसदीय चुनाव से पहले या तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले या आर्डिनेंस / कानून के द्वारा मंदिर बन जाएगा आखिर चुनाव जीतना है। चौथा मुद्दा रहा है आरक्षण।जी खुलकर न कहें लेकिन दबे सुर में शाखाओं में आरक्षण को देश व समाज के एक रस होने में बाधा माना जाता रहा है। संभवत यह इसलिए भी कि अब तक आरएसएस व भाजपा को स्वर्ण जातियों की पार्टी माना जाता है। बिहार चुनाव से पहले आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत ने इस 70 साल पुराने मुद्दे पर आरक्षण की समीक्षा की बात की थी े समीक्षा की बात या उल्लेख तो स्पष्ट रूप से हमारे संविधान में मौजूद है, जिसके अनुसार हर दस साल बाद समीक्षा होनी चाहिए थी लेकिन वोट की राजनीति के चलते यह समीक्षा कभी नहीं हुई। बिहार में भाजपा की हार का बड़ा कारण श्री भागवत के बयान को माना गया था। तब से ही सत्ता पक्ष के सुर बदल गए यहां तक की श्री मोदी को बार बार कहना पड़ा की आरक्षण का खात्मा मेरी लाश पर ही हो सकता है। उसके बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट के न्याय संगत फैसले जिस के तहत जातिसूचक शब्द के प्रयोग पर बिना जांच कैद करने के कानून को निरस्त किया गया था क्योंकि जिस तरह दहेज विरोधी कानून का गलत इस्तेमाल होता पाया गयाऔर अनेक बेकसूर लोगों को बेवजह जेल में रहना पड़ा उसी तरह अनेक कोर्ट केसिज में जातिसूचक कानून का दुर्पयोग भी कोर्ट के संज्ञान में आया तब यह फैसला आया था। वैसे भी नेचुरल जस्टिस है कि बिना जांच किसी भी अपराध में अरेस्ट करना गलत होता है े लेकिन दलित नेताओं की धमकी से आसन्न चुनाव में हार के भी ने संसद द्वारा इस न्याय संगत फैसले को निरस्त कर दिया गया। इसके बाद तो स्पष्ट हो गया कि आरक्षण रक्तबीज की तरह सदैव रहेगा। चलिए राजनेता तो समीक्षा नहीं करेंगे कम से कम निकट भविष्य में ऐसी आशा रखना बालू से तेल निकालना ही होगा हम खुद समीक्षा कर देख लें। यहाँ यह सपष्ट कर दूं कि मेरे दोनों बेटे अमेरिका के नागरिक हैं अत: मेरे परिवार या आने वाली पीढ़ी पर इसके प्रभाव की कोई संभावना नहीं है।
समीक्षा से पहले हमें आरक्षित व अनारक्षित जातियों को परिभाषित करना होगा वह भी आरक्षण के कोण से । दलित व आदिवासी समुदाय के अलावा मंडल आयोग लागू होने के बाद अनेक जातीय समूह, सवर्ण समूह से निकल चुके हैं, निकल रहे हैं । आर्थिक रूप से ग्रामीण परिवेश में धनिक कहीं जा सकने वाली जातियां जैसे बिहार से यादव (अहीर) हरियाणा तथा राजस्थान में जाट जातियां आदि भी अब आरक्षण का कवच पहन चुकी हैं । उत्तर भारत में तो मात्र तीन जातियां ही आरक्षण विहीन हैं वे है ब्राह्मण क्षत्रिय एवं वैश्य (पाकिस्तान से विस्थापित लोग इन्ही जातियों के हैं हालांकि व्यवसाय की दृष्टिद्द से वे वैश्य जाति से अधिक समीप हैं)। वैश्य जाति व्यापार में लिप्त है अत: आरक्षण से बहुत कम प्रभावित है फिर भी सरकारी आरक्षण का असर इन तीनों जातियों पर सबसे अधिक पड़ा है । इनमें भी ब्राह्मण क्योंकि आरम्भ से ही शिक्षा के व्यवसाय से। जैसे गुरुकुलों के शिक्षक वर्ग तथा पुरोहिती । पुरोहित कर्म लगभग समाप्त है तथा क्षत्रीय परम्परागत रूप से सैनिक रहा है इन दोनों जातियों पर आरक्षण का प्रभाव सर्वाधिक पड़ा है। आरक्षण के इस प्रभाव से न केवल आर्थिक रूप से ये दोनों जातियां पिछड़ी है अपितु आर्थिक अभाव ने इनकी शिक्षा की स्थिति पर भी बुरा असर डाला है । आर्थिक शिक्षा एवं रोजगार अवसरों में कमी आने से इनमें आत्महीनता एवं कड़वाहट तथा परिवार सीमित होने के कारण जनसख्या में कमी आई है । इन जातियों के युवाओं में शिक्षा प्रति आग्रह इसलिए भी कम हो रहा है क्योंकि वे जानते हैं कि शिक्षा पर आधारित रोजगार के अवसर उनके पास बहुत कम हैं ।
हरियाणा में जहाँ एम.बी.बी.एस के दाखिलों ने सवर्ण हेतु सौ में से मात्र पैतींस स्थान उपलब्ध तथा शेष पैसंठ प्रतिशत आरक्षित है । तीन सौ अंकों की पी.एम.टी. परीक्षा में सवर्ण को न्यूनतम अंक संख्या माने पैंतीसवें स्थान वाले की एक सौ चौसंठ थी वही हरिजन आरक्षित विद्यार्थी तीन सौ में से मात्र तीन अंक प्राप्त करके भी दाखिला पा गया था ।वहीँ पिछले दिनों राजस्थान में एक आरक्षित पद पर चयन परीक्षा में मात्र आधा प्रतिशत प्राप्त महिला को लेक्चरर पद पर चयनित होने की खबर सुर्खियों में रही है े ऐसे में आक्रोश एवं हीनता पनपेगी ही ।
अब आरक्षण का प्रभाव आरक्षित जातियों पर देखें
1. युवा कहते हैं की आरक्षण के चलते अधिकांश अयोग्य व्यक्ति दाखिले नौकरी व पदोन्नित प्राप्त कर देश की उन्नति में बाधक हो रहे हैं ।
2. आरक्षण ने आरक्षित जातियों में एक (क्रीमीलेयर) अभिजात्य वर्ग खड़ा कर दिया है जो न केवल अपनी जाति के गरीबों से दूर रहना चाहते हैं । अपितु इन जातियों के उच्च नौकरी प्राप्त अधिकतर युवा लड़के सवर्ण लड़कियों से विवाह का प्रयत्न करते हैं । लड़कियों में ऐसा बहुत कम है क्योकि जाति पुरुष से चलती है अत: लड़के अगर सवर्ण लड़की से विवाह भी करते हैं तो उनकी संतान को आरक्षण मिलेगा ही। मगर लड़कियों के मामले में ऐसा नहीं है । ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे अगर सर्वेक्षण करवाया जाए तो ।
3. आरक्षण का तीसरा भंयकर परिणाम इन जातियों में जनसंख्या विस्फोट हुआ है । जहाँ शिक्षित धनिक सवर्ण अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा रोजगार दिलाने हेतु परिवार सीमित कर रहा है वहीं आरक्षण कवच की वजह से आरक्षित जातियों के राजपत्रित अफसरों के भी तीन या अधिक बच्चे मिल जाएंगे ।
4 केवल आदिवासी जातियों में अगर आरक्षण का लाभ उठाने वाली जातियों पर शोध की जाए तप पता चल सकता है कि राजस्थान की एक जाती व एक जाती हिमाचल से लगभग 70 प्रतिशत लाभ उठाकर अनारक्षित जातियों से भी आगे निकल गई हैं े और आर्थिक व शिक्षा प्राप्त कर ये अन्य आदिवासी जातियों को लाभ से वंचित कर रही हैं े कमोबेश ऐसी ही स्थिति अनुसूचित जातियों में भी देखी जा रही है े
फिलहाल वोट की राजनीति की वजह से आरक्षण खत्म होता तो नजर नहीं आता । मगर कुछ उपाय आजमाए जा सकते हैं ।
किसी एक निश्चित (तयशुदा) तिथि जैसे 15 अगस्त 2019 के बाद झ्र
जिस दम्पति के
दो या दो से कम बच्चे दो या दो से अधिक बच्चे
– आरक्षण मिलेगा – आरक्षण नहीं मिलेगा
– बैंक में ब्याजदर 1 प्रतिशत अधिक मिलेगी – नहीं मिलेगी
– ऋण में ब्याजदर एक प्रतिशत कम – सुविधा नहीं
– रेलवे व विमान किरायों में रियायत – रियायत नहीं
– आयकर में विशेष छूट – आयकर पर सरचार्ज
– चुनाव लड?े हेतु योग्यत ा – चुनाव लड?े हेतु अयोग्य घोषित
– दो पीढिय़ों तक आरक्षण लाभ प्राप्त करने वालों को यह लाभ नहीं मिलेगा।
– राज पत्रित अधिकारी या आयकर देने वालों की सन्तान का आरक्षण लाभ नही मिलेगा ।
– दो पीढिय़ों तक चुनावी आरक्षण लाभ उठाने के बाद उनकी सन्तान अनारिक्षित क्षेत्र से ही चुनाव लड़ सकेगी ।
– विदेशों में शिक्षा प्राप्ति या मंहगे, पब्लिक विद्यालयों से शिक्षा प्राप्त लोग भी आरक्षण के हकदार न रहें तभी आरक्षण के असली हकदारों को लाभ पहुँच सकता है ।-वरिष्ठ चिकित्सक एवं वरिष्ठ साहित्यकार विवेचक
डॉ श्याम सखा श्याम