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Worship Of Mahadev Gives Salvation : हिन्दू पुराण के अनुसार देवो की भूमि भारत माता पर जन्म लेना ही सब से महत्व रखने की बात है। शिव को जानना, उनके जाने बिना इस लोक को जानना असंभव है। उनकी आराधना से मोक्ष मिलता है। असुरों के सहायक हैं और मानवों के आदर्श हैं। वे ज्ञान का वेद हैं, वे रामायण के प्रणेता हैं, संगीत के स्वर हैं, उनमें नृत्य वास करता है, जीवन को गति मिलती है। वे प्रेमी हैं, ऋषियों के गुरु हैं, देवताओं के रक्षक है। शिव और पार्वती विज्ञान के धरातल पर काल चिंतन करते है। ज्ञान के शिखर पर बैठकर संतुलन एवं सत्य के विविध रूपों को खोजना कोई महायोगी और योगिनी ही कर सकते हैं।
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जागरण के लिए शिवतत्त्व की जरूरत है Worship Of Mahadev Gives Salvation
शिव जो बोलते हैं, वह जीवन के सूत्र हैं। शिव के हृदय में संसार नहीं हैं, वासना नहीं है और अंधेरा भी नहीं है। उनका जीवन ही प्रकाश है। अब प्रकाश होगा, तो सदैव ही प्रेम, करुणा, साधना एवं भक्ति रहेगी। अंतस के जागरण के लिए शिवतत्त्व की जरूरत है। अंतस एक बार चैतन्य हो गया, तो सब कुछ बदल जाता है। आचरण ही साधना बन जाती है। हरेक शब्द प्र्रेमपूर्ण एवं कर्म के प्रत्येक चरण करुणापूर्ण हो जाते हैं। साधुता ही स्वभाव बन जाता है। भीतर जब आलोकित हो, तो बाहर सदैव ही प्रकाश रहेगा। शिव का आकार शून्य व ज्योति स्वरूप है।
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शिव ने माता पार्वती को विधियां बताईं Worship Of Mahadev Gives Salvation
शिव जी का हमारे अंदर वास है। शिव वर्तमान हैं, उनको पाने के लिए बस स्वयं को पलटना है। शरीर के बदले मन एवं बुद्धि को उघाड़ना है। जो शरीर पर सिमट कर रह गया, वह शिव को प्राप्त नहीं कर सकेगा। शिव साधना हैं, ध्यान हैं और योग भी हैं। शिव को समझने का अर्थ है खुद का रूपांतरण। योगी शिव भौतिक से आत्मिक यात्रा का संदेश देते हैं। शरीर, मन और बुद्धि से आत्मा की यात्रा हैं शिव। खुद को धवल और शुद्ध करना ही शिवत्व है।
इन सवालों के जवाब में योगी शिव ने माता पार्वती को विधियां बताईं जिनसे व्यक्ति सत्य का साक्षात्कार करता है। शिव अनेक सूत्र, उपाय और विधि के माध्यम से इस अस्तित्व के समस्त अंतद्र्वंद्व, हरेक सवाल का जवाब देते हैं। इसके बाद भी माता को शांति नहीं मिलती है, तो फिर माता पार्वती पूछती हैं- हे प्रभु! कोई ऐसी कथा सुनाएं, जो हरेक प्रकार के कष्ट में सांत्वना दे सके। (Worship Of Mahadev Gives Salvation)
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शरीर के बदले मन एवं बुद्धि को उघाड़ना है Worship Of Mahadev Gives Salvation
शिव ने राम-सीता की कथा रामायण सुनाई। इस कथा को एक जिज्ञासु कौआ काकभुसुण्डी सुन लेते हैं और जगत में विचरण करने वाले नारद मुनि को वह कथा सुनाते हैं। नारद मुनि इसे वाल्मीकि को सुनाते हैं, जो खुद इसे लिपिबद्ध कर लव-कुश को कंठस्थ कराते हैं। फिर लव-कुश के माध्यम से यह कथा आमजन तक पहुंचती है। शिव वर्तमान हैं, उनको पाने के लिए बस स्वयं को पलटना है। शरीर के बदले मन एवं बुद्धि को उघाड़ना है। आदि योगी, भोलेनाथ, शिवशंकर, महादेव, आदि। हम उन्हें अनेक नामो से जानते और पहचानते है। लेकिन शिव शंकर वह जिनकी किरपा हमपे सदैव हे और जो हमारे हिरदे में वास करते ह। शिव चालीसा के द्वारा आप महादेव के आशीर्वाद को अपनी और आकर्षित कर सकते हे, एवंम अपने जीवम में सुख और समृदि का वस् ला सकते हे। (Worship Of Mahadev Gives Salvation)
शिव शंकर का आशीर्वाद हमपे सदैव है Worship Of Mahadev Gives Salvation
आदि योगी, भोलेनाथ, शिवशंकर, महादेव, आदि। हम उन्हें अनेक नामो से जानते और पहचानते है। लेकिन शिव शंकर वह जिनकी किरपा हमपे सदैव हे और जो हमारे हिरदे में वास करते ह। शिव चालीसा के द्वारा आप महादेव के आशीर्वाद को अपनी और आकर्षित कर सकते हे, एवंम अपने जीवम में सुख और समृदि का वस् ला सकते हे।
Worship Of Mahadev Gives Salvation
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शिव चालीसा पाठ Worship Of Mahadev Gives Salvation
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान। अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
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शिवजी की आरती Worship Of Mahadev Gives Salvation
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
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